
ललित गर्ग
‘कबाड़ से जुगाड़’ सिर्फ़ एक तरीका नहीं, बल्कि एक रचनात्मक दर्शन है जो संसाधनशीलता और नवाचार को बढ़ावा देता है। यह अपसाइकल की गई रचनाओं और सरल समाधानों के माध्यम से अपरंपरागत सोच की शक्ति का प्रमाण है। ‘कबाड़ से जुगाड़’ का दर्शन बेकार वस्तुओं को उपयोगी बनाने और संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने पर जोर देता है। यह दर्शन हमें नए और रचनात्मक समाधान खोजने के लिए प्रेरित करता है, जो मौजूदा समस्याओं को हल करने में मदद करते हैं और इससे कचरे को कम करने और पर्यावरण को बचाने में मदद मिलती है। यह आत्मनिर्भरता का भी दर्शन है, जो हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खुद पर निर्भर रहने के लिए प्रोत्साहित करता है, यह दर्शन जटिल समस्याओं के लिए सरल और व्यावहारिक समाधान खोजने पर जोर देता है।
जुगाड़ एक बोलचाल का हिंदी शब्द है जिसका मतलब है अपरंपरागत, किफायती नवाचार। कबाड़ से बने म्यूरल, पार्क और अन्य कलाकृतियां ‘कबाड़ से जुगाड़’ के उपक्रम को दर्शाती हैं। कबाड़ से बनाए गए टेलीस्कोप, लेजर लाइट ब्लोइंग कार, वाटर प्यूरीफायर आदि कबाड़ से जुगाड़ के उदाहरण है। चंडीगढ़ का रॉक गार्डन, जुन्नारदेव जनपद पंचायत के बरेलीपार गांव के ग्रामीणों का कबाड से बना स्वच्छता पार्क एवं मेरठ का ‘कबाड़ से जुगाड़’ अभियान ऐसे विरल एवं अनुकरणीय उदाहरण हैं जो राष्ट्रीय फलक पर चमक रहे हैं। कबाड़ से जुगाड़ बेकार की वस्तुओं से उपयोगी वस्तुएं बनाने की एक प्रक्रिया है। कबाड़ से जुगाड़ ना केवल हमारे पर्यावरण के संरक्षण के लिए बहुत सहायक है बल्कि यह अनुपयोगी वस्तुओं के निपटान का भी एक सटीक उपाय है। इसके माध्यम से हम ऐसी अनुपयोगी वस्तुओं को फेंकने की जगह उनसे कुछ उपयोगी वस्तुएं बना सकते हैं। कबाड़ से जुगाड़ के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम दिया जा सकता है, जो़ रचनात्मकता एवं सृजनात्मकता की दिशा में उठाया गया एक सार्थक कदम है। हम भारतवासी वैसे भी जुगाड़ू होते हैं जो अपना काम बनाने के लिए हर जगह कुछ ना कुछ जुगाड़ कर लेते हैं। यदि हम अपनी रचनात्मकता कबाड़ से जुगाड़ में लगाएं तो दिनों दिन बढ़ते जा रहे कचरे के निपटान में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। इससे प्लास्टिक एवं ई-कचरे में निरंतर कमी आती जाएगी और पर्यावरण संरक्षण भी बढ़ेगा। संसाधनों पर वह भी बोझ कम पड़ेगा।
मेरठ का ‘कबाड़ से जुगाड़’ अभियान अब राष्ट्रीय फलक तक चमका, एक सकारात्मक सोच एवं सृजन का अनूठा उदाहरण बन गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात के 93वें संस्करण में योगी आदित्यनाथ सरकार के इस प्रयास की काफी सराहना की। शहरों को संवारने के प्रदेश सरकार के सपनों को साकार करते हुए मेरठ नगर निगम ने निष्प्रयोज्य वस्तुओं से कम लागत में ही शहर की आभा में चार चांद लगा दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह प्रयास पर्यावरण की सुरक्षा और शहर के सुंदरीकरण से जुड़ा है। निष्प्रयोज्य वस्तुएं स्क्रैप, पुराने टायर, कबाड़, खराब ड्रम से भी कम खर्चे में कैसे शहर को संवारा जा सकता है, मेरठ इसकी बानगी है। कम खर्चे में सावर्जनिक स्थलों का सुंदरीकरण कैसे हो, यह अभियान इसकी मिसाल है। खराब पड़ी चीजों का प्रयोग कर शहर को सजाया गया। गांधी आश्रम चौराहा, गढ़ रोड पर लोहे के स्क्रैप, पुराने पहियों से फाउंटेन निर्मित कराया गया। सर्किट हाउस चौराहे पर लाइट ट्री, पुराने बेकार ड्रमों से स्ट्रीट इंस्टलेशन, हाथ ठेली के बेकार पहियों से बैरिकेडिंग कर मिनी व्हील पार्क, जेसीबी के पुराने टायरों से डिस्प्ले वॉल, पार्कों में बैठने के लिए स्टूल मेज आदि की व्यवस्था की गई। मेरठ नगर निगम ने शहर को चमकाने के लिए अनोखे प्रयोग किए, जो काफी सफल रहे। दरअसल नगर निगम में बने गोदाम में पड़े कबाड़ की न तो उचित कीमत मिल रही थी और न ही इसका सही उपयोग एवं निपटान हो रहा था, पर योगी सरकार की पहल पर नगर आयुक्त अमित पाल शर्मा ने शहर को जगमगाने का निर्णय लिया। लाइटिंग वाला कृत्रिम पेड़ भी न सिर्फ लोगों को आकर्षित कर रहा है, बल्कि शहर की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है। इसकी आभा देख लोग निहाल और अचंभित हो रहे हैं।
कबाड़ से जुगाड़ का मतलब है बेकार पड़ी चीजों से कुछ उपयोगी या रचनात्मक बनाना, जैसे कि कचरे से सुंदर सजावटी वस्तुएं, या बेकार प्लास्टिक से जूते-चप्पल बनाना। ग्रामीणों ने कबाड़ से एक सुंदर स्वच्छता पार्क बनाया, जिसमें सजावटी वस्तुएं, आरामदायक बैठने की व्यवस्था और स्वच्छता से संबंधित कलाकृतियाँ शामिल हैं। बच्चों को सिखाने के लिए कबाड़ के सामान से खिलौने बनाए जा सकते हैं, जैसे कि टेलीस्कोप, लेजर लाइट ब्लोइंग कार, रबर बैंड नाव, टेबल लैंप, वाटर प्यूरीफायर आदि। बेकार लकड़ी, प्लास्टिक और अन्य सामग्रियों से फर्नीचर बनाया जा सकता है, जैसे कि टेबल, कुर्सी, और अलमारी। कबाड़ से कलाकृतियाँ बनाई जा सकती हैं, जैसे कि पेंटिंग, मूर्तिकला, और सजावटी वस्तुएं। पुराने कपड़ों से नए कपड़े या बैग बनाए जा सकते हैं। कबाड़ से खाद और अन्य उपयोगी चीजें बनाई जा सकती हैं, जो खेती के लिए उपयोगी हो सकती हैं। जयपुर फुट, यह एक कृत्रिम अंग है जो कम लागत में बनाया जाता है और यह ‘जुगाड़’ मानसिकता का एक बेहतरीन उदाहरण है।
प्लास्टिक के कबाड़ को रिसाइकल करके उपयोगी चीजें बनाई जा सकती हैं, जैसे कि प्लास्टिक दाना जो फुटवियर फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होता है। कबाड़ से विभिन्न उपकरण बनाए जा सकते हैं, जैसे कि पानी फिल्टर, यांत्रिक उपकरण आदि। कबाड़ से सजावटी वस्तुएं बनाई जा सकती हैं, जैसे कि विंड चाइम, फोटो फ्रेम, फूलों के गमले, आदि। जो सामान घर में उपयोग ना हो तो वह कबाड़ में तब्दील हो जाता है। इसके बाद उसे ऐसे ही बाहर फेंक दिया जाता है। अगर यही कबाड़ आपकी सेहत बनाने का काम करने के साथ ही गांव और शहर की सुंदरता में चार चांद लगा दे तो यह अपने आपमें चर्चा एवं अनुकरणीय उदाहरण बन जाता है। कुछ ऐसा ही किया है आदिवासी ग्राम पंचायत बरेलीपार के लोगों ने, खेतों में उपयोग होने वाले औजारों सहित घर की खराब वस्तुओं का उपयोग कर ग्रामीणों ने ऐसा काम किया कि जो भी देखता है तो दंग रह जाता है। कबाड़ से ग्रामीणों ने स्वच्छता पार्क बनाने के साथ ही हेलीकॉप्टर तक बना दिया। कबाड़ के जुगाड़ से ग्रामीणों ने सुंदर पार्क का निर्माण किया तो लोगों की सेहत बनाने में भी कारगर साबित हो रहा है।
आज दुनिया के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं, जिसमें से ई-वेस्ट एक नई उभरती विकराल एवं विध्वंसक समस्या भी है। दुनिया में हर साल 3 से 5 करोड़ टन ई-वेस्ट पैदा हो रहा है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर के मुताबिक भारत सालाना करीब 20 लाख टन ई-वेस्ट पैदा करता है और अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-वेस्ट उत्पादक देशों में 5वें स्थान पर है। दुुनिया डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं की ओर तेजी से बढ़ रही है, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी आधारित सेवाएं एवं इलेक्ट्रोनिक क्रांति ने लोगों के जीवन को आसान बना दिया है, लेकिन अर्थव्यवस्था एवं जीवन का डिजिटल अवतार इलेक्ट्रोनिक कचरे की शक्ल में एक नयी चुनौती एवं जटिल समस्या को लेकर आया है। घरों में इस्लेमाल होनेवाले कूलर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर जैसी वस्तुओं के अलावा कार्यालय में लैपटॉप, कम्पयूटर, मोबाइल, डिजिटल घड़ी, टीवी तय समय के बाद ई-कचरे में परिवर्तित हो जाते हैं। इस ई-कचरे का निपटान बड़ी समस्या है। इसी क्रम में पूर्व दिल्ली सरकार ने घोषणा की थी कि दिल्ली में भारत का पहला ई-कचरा इको-पार्क खोला जायेगा। 20 एकड़ में बनने वाले इस पार्क में बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक सामान, लैपटॉप, चार्जर, मोबाइल और पीसी से अनूठे एवं दर्शनीय चीजों को निर्मित किया जायेगा। इसी कड़ी में कानपुर में ई-वेस्ट प्रबंधन का एक बेहतरीन मॉडल सामने आया है। यहां जयपुर के एक कलाकार ने ई-वेस्ट से 10 फीट लंबी मूर्ति बनाई है। इसे बनाने में 250 डेस्कटॉप और 200 मदरबोर्ड, केबल और ऐसी अनेक खराब इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का इस्तेमाल किया गया है।