बदलती जीवनशैली के साथ बदल गये हैं रसोई के बर्तन !

Kitchen utensils have changed with the changing lifestyle!

सुनील कुमार महला

खान-पान के लिहाज से भारतीय संस्कृति बहुत ही धनवान या यूं कहें कि बहुत ही ‘रिच'(समृद्ध) रही है।जब भी हम खान-पान करते हैं तो किसी न किसी बरतन में करते हैं। दरअसल, बर्तनों और खान-पान के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध पाया जाता है। हम चाहे घर में हों, यात्रा में हों या कहीं भी बाहर, विभिन्न धातुओं और सामग्रियों से बने बर्तनों का प्रयोग खाना खाने-पीने के लिए करते हैं। समय के साथ जैसे जैसे हम विकास की ऊंचाइयों को छूते चले जा रहे हैं, वैसे-वैसे ही हम नये युग में प्रवेश करते हुए अपने खान-पान के बर्तनों को भी बदलते चले जा रहे हैं। प्राचीन काल में मिट्टी, तांबे,कांसे, लोहे, पीतल से बने बर्तनों का प्रयोग किया जाता था, यहां तक जानकारी मिलती है कि प्राचीन काल में लोग लकड़ी तक से बने बर्तनों, जैसे कि कटोरे और प्लेटों का उपयोग भी करते थे,लेकिन आज हम प्लास्टिक, एल्युमिनियम, चीनी मिट्टी (बोन चाइना क्रॉकरी), डिस्पोजेबल आदि का प्रयोग करने लगे हैं। प्राचीन काल में भोजन परोसने और खाने के लिए बड़े पत्तों का प्रयोग किया जाता था। आज भी केले के पत्तों का प्रयोग भोजन परोसने में किया जाता है, लेकिन यह समय के साथ बहुत ही सीमित हो चुका है।सच तो यह है कि जैसे-जैसे सभ्यताएं विकसित हुईं, लोगों ने अनेक प्रकार की धातुओं से बने बर्तनों का उपयोग करना शुरू कर दिया, जो भोजन परोसने और खाने के लिए अधिक सुविधाजनक, सुंदर और अच्छे थे। दरअसल, प्राचीन समय में भोजन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तन और तरीकों में बहुत ही विभिन्नता थी, जो उनकी संस्कृति, जलवायु, और उपलब्ध संसाधनों पर निर्भर करती थी, आज विकास के पथ पर अग्रसर होते हुए आधुनिक जरूर हो गए हैं, लेकिन आज बहुत सी धातुएं ऐसी आ चुकीं हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहीं हैं। मसलन, आज कुकवेयर पर नॉन-स्टिक कोटिंग, एल्युमिनियम के बर्तन, डिस्पोजेबल के बढ़ते उपयोगों से और अन्य रासायनिक उपचारों के स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं और हमें अनेक प्रकार की बीमारियों का शिकार बना रहीं हैं। बढ़ते प्रदूषण, बढ़ती जनसंख्या, औधोगिकीकरण के बीच आज हमारे खान-पान की संस्कृति, हमारे बर्तन बदल चुके हैं, और हम प्रकृति के सानिध्य से दूर केवल अपनी सुख-सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए इन बर्तनों का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन हमें इन बर्तनों के प्रयोग,इनके फायदे और नुकसान आदि के बारे में जानकारी होनी चाहिए, ताकि हम एक सुखी, संतुलित और बेहतर जीवन जी सकें।

मिट्टी: इन बर्तनों में पोषक तत्व नष्ट नहीं होते और भोजन अधिक स्वादिष्ट बनता है। मिट्टी के बर्तन में पके हुए खाने से आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व भी मिलते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से 100% पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते हैं।आयुर्वेद के अनुसार यदि भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है, तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए और ढक्कन को हटाकर ही खुले में पकाना चाहिए, जिससे भोजन को सूर्य और पवन का स्पर्श मिल सके। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में समय थोड़ा ज्यादा लगता है, परंतु इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है।

सोनाः पहले राजा-महाराजाओं/अमीर और शाही लोगों द्वारा सोने के बर्तनों में खाना खाया जाता था, इससे तन मजबूत होता है, हमारे पाचन में सुधार होता है, हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, और मन को शांत रखने में सहायता मिलती है। आयुर्वेद में सोने को सात्विक धातु भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है शुद्ध या योग्य। सोने के बर्तन में खाना खाने से याददाश्त तेज होती है, जो कि अल्जाइमर जैसी बीमारियों में भी फायदेमंद हो सकता है। इतना ही नहीं,सोने के बर्तन में खाना खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। दरअसल,सोने के बर्तन में खाना खाने से शरीर को कोई नुकसान नहीं होता है, क्योंकि सोना एक निष्क्रिय धातु है, लेकिन सोने के बर्तन महंगे होते हैं, इसलिए वे सभी के लिए सुलभ नहीं होते हैं।

चांदी: चांदी के बर्तनों में खाने से मन मजबूत होता है, रक्त का प्रवाह संतुलित रहता है। चांदी के बर्तनों में जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो भोजन को हवा में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया से बचाए रखते हैं।चांदी हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है तथा चांदी में गैर-विषैले गुण होने के कारण, इसके बर्तनों में भोजन सुरक्षित होता है। यह खाने को ताज़ा रखती है।बच्चों को चांदी के बर्तन में खाना खिलाने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता रहता है, इसलिए अन्नप्राशन के समय आज भी गांव घरों में ननिहाल से चांदी के बर्तन आते हैं। इतना ही नहीं ,स्थायित्व के दृष्टिकोण से भी चांदी के बर्तन सिरेमिक और कांच के बर्तनों की तुलना में अटूट व अच्छे होते हैं।

कांसा: ऐसे अनोखे गुण हैं जो इसे आयुर्वेद में मूल्यवान बनाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, कांसा को ‘सात्विक’ धातु माना जाता है, जो शुद्धता, स्पष्टता और समग्र कल्याण को बढ़ावा देता है। कांसे के बर्तनों में खाना पकाने और खाने से तीन दोषों (वात, पित्त और कफ) को संतुलित करने में मदद मिल सकती है, जिससे पाचन में सुधार होता है, प्रतिरक्षा में वृद्धि होती है और अम्लता और सूजन में कमी आती है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं। रक्त शुद्ध होता है।कांसा कुकवेयर अम्लीय खाद्य सामग्री के साथ मिलकर भोजन को थोड़ा क्षारीय बनाता है, जो बदले में पेट के पीएच स्तर को संतुलित करने में मदद करता है। कांस्य में पाए जाने वाले ट्रेस मिनरल, जैसे कि तांबा और टिन, हमारी रक्त वाहिकाओं की लोच बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये मिनरल रक्तचाप को नियंत्रित करने और हृदय रोग के विकास के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं।

तांबा : बुजुर्ग बताते हैं कि ताम्बे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, जठराग्नि शांत रहती है। लीवर सम्बंधी समस्याएं दूर होती है, ताम्बे का पानी शरीर के सभी विषैले तत्वों को नष्ट कर देता है।दरअसल, तांबा हमारे शरीर के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है, जो लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है और पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है। तांबे के बर्तन में रखा पानी एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है, जो शरीर को नुकसान से बचाते हैं और एजिंग प्रोसेस को धीमा करते हैं। यही कारण है कि पुराने जमाने में इन बर्तनों का उपयोग काफी देखने को मिलता था।

पीतलः पीतल के बर्तन तांबे और जस्ते का मिश्रण होता है, जो शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है। इसके अलावा, पीतल में रोगाणुरोधी गुण होते हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करते हैं और पाचन क्रिया को बेहतर बनाते हैं । उपलब्ध जानकारी के अनुसार पीतल के बर्तनों में भोजन पकाने और खाने से कृत्रिम रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती है। शोध बताते हैं कि पीतल के बर्तनों में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं। पीतल हमारे शरीर को ठंडा रखता है,रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है तथा पीतल में पाया जाने वाला मेलानिन, सूर्य की हानिकारक किरणों से त्वचा की रक्षा करता है।

लोहा: लोहे के बर्तनों में खाना पकाने से शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ती है, जैसा कि लोहे के बर्तन में फोलिक एसिड पाया जाता है,जिससे शरीर में आयरन की कमी दूर होती है।लोहे के बर्तन प्राकृतिक रूप से नॉन-स्टिक होते हैं, जिससे खाना चिपकता नहीं है। लोहे के बर्तनों का खाना स्वादिष्ट और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर होता है।

स्टीलः स्टील के बर्तन स्वास्थ्य की दृष्टि से नुकसानदायक नहीं होते हैं, क्योंकि ये न ही गर्म पदार्थों से कोई क्रिया ही करते है और न ही ठंडा होने पर, लेकिन इनका अधिक फायदा(स्वास्थ्य के लिहाज से) भी नहीं होता है। सच तो यह है कि ये टिकाऊ, गैर-प्रतिक्रियाशील और जंग प्रतिरोधी होते हैं।

एल्युमिनियम: एल्युमीनियम के बर्तनों में खाना पकाने से एल्युमीनियम खाने में मौजूद आयरन और कैल्शियम जैसे महत्वपूर्ण तत्वों को अवशोषित कर लेता है, जिससे शरीर में इन तत्वों की कमी हो सकती हैऔर कुछ मामलों में, मानसिक बीमारियाँ भी हो सकती हैं।अधिक एल्युमीनियम के सेवन से टीबी और किडनी,लीवर फेल होने, कैंसर, डायबीटिज आदि का खतरा भी बढ़ सकता है।एल्युमीनियम के संपर्क में आने से त्वचा पर खुजली, डैंड्रफ और एक्जिमा जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यहां तक कि पाचन संबंधी समस्याएं जैसे कि अतिसार, अति अम्लता, खट्टी डकार, पेट में दर्द और कोलाइटिस भी जन्म ले सकतीं हैं। आजकल सभी घरों में कुकर का इस्तेमाल बहुत होता है, जो कि एल्युमिनियम से ही बना होता है।

प्लास्टिकः आज घरों में इसका प्रयोग होता है।प्लास्टिक में मौजूद रसायन और माइक्रोप्लास्टिक भोजन और पानी के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। प्लास्टिक का पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह विघटित नहीं होता है और मिट्टी और पानी को दूषित करता है। वास्तव में हमें प्लास्टिक के बर्तन में खाना खाने से बचना चाहिए और विशेषकर गर्म भोजन उसमें खाने से अवश्य ही बचना चाहिए, क्यों यह कैंसर जैसी घातक बीमारी को जन्म देता है।

नॉनस्टिकः आजकल इनका प्रयोग भी भारतीय रसोई में बहुतायत में होने लगा है। यह ठीक है कि नॉनस्टिक बर्तनों का प्रयोग करने से ऑयल कम लगता है, खाना जलता नहीं है, लेकिन ऐसे बर्तनों के प्रयोग से हमारे स्वास्थ्य को कई प्रकार की गम्भीर समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। दरअसल, नॉन-स्टिक बर्तन अक्सर पॉलीटेट्राफ्लूरोएथिलीन या टेफ्लॉन से बने होते हैं, जो उच्च तापमान पर हानिकारक रसायन छोड़ सकते हैं। इन रसायनों से थायरॉइड डिसऑर्डर, किडनी की समस्या, और कुछ प्रकार के कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है।