
अशोक भाटिया
ऑस्ट्रेलिया में एक बार फिर एंथनी अल्बनीज का जादू चला है। उनकी लेबर पार्टी ने संघीय चुनाव जीत लिया है। इसके साथ ही अल्बनीज लगातार दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री बनने वाले हैं। कुछ समय पहले अल्बनीज ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘दुनिया का बॉस’ बताया था। अब ऑस्ट्रेलिया की जनता ने उन्हें फिर से बॉस चुन लिया है। इसके साथ ही अल्बनीज 21 सालों में दोबारा चुनाव जीतने वाले पहले ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री बन गए हैं।
ऑस्ट्रेलिया में शनिवार को आम चुनाव में महंगाई और आवास की कमी जैसे मुद्दे छाए रहे। मतदान सुबह आठ बजे शुरू हुआ। इससे पहले डाक मतदान 22 अप्रैल को ही शुरू हो गया था। ऑस्ट्रेलिया उन गिने चुने देशों में शामिल है, जहां मतदान करना अनिवार्य है। साल 2022 में हुए पिछले आम चुनाव में 90 फीसदी मतदान हुआ था। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज दूसरा कार्यकाल पाने की कोशिशों में जुटे थे। उनका मुकाबला कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पीटर डटन से था।
ऑस्ट्रेलिया संसद में दो सदन हैं। ऊपरी सदन को सीनेट और निचले सदन को हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (प्रतिनिधि सभा) कहा जाता है। भारत की तरह ही निचले सदन में बहुमत पाने वाली पार्टी या गठबंधन का नेता ही प्रधानमंत्री बनता है। इसकी 150 सीटों के लिए अभी वोटिंग हुई थी। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल की अच्छी-खासी आबादी है। इस बार चुनाव में भारतीय मूल के 8 लाख मतदाता अपने वोट का इस्तेमाल कर रहे है । भारतीय मूल के वोटर्स को लुभाने के लिए सियासी दलों ने अपनी-अपनी रणनीति बनाई थी । प्रधानमंत्री की पार्टी ने भारतीय छात्रों के लिए वीजा की संख्या बढ़ाने का वादा किया है। इतना ही नहीं, वर्क वीजा बढ़ाने का भी मुद्दा चुनाव में छाया हुआ है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री अल्बनीज भारत के साथ संबंधों को और भी बेहतर बनाना चाहते हैं का वायदा किया था ।
विपक्ष के नेता पीटर डटन अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। उन्हें लेबर पार्टी की उम्मीदवार अली फ्रांस ने हरा दिया। चुनाव के नतीजे आने के बाद डटन ने अपनी हार मान ली और अल्बनीज को फोन करके बधाई दी। अगर लेबर पार्टी को बहुमत मिलता है, तो अल्बनीज ही प्रधानमंत्री रहेंगे। वे अपनी पार्टी के नए सदस्यों में से मंत्रियों को चुनेंगे।
अब बात करते हैं एंथनी अल्बनीज की। उन्हें लोग प्यार से ‘अल्बो’ भी कहते हैं। वे 2004 के बाद पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने लगातार दो चुनाव जीते हैं। 61 साल के अल्बनीज को कुत्तों से बहुत प्यार है। वे साधारण परिवार से आते हैं और उनका अंदाज काफी सहज रहता है। स्थानीय मीडिया ने भी मान लिया है कि अल्बनीज और उनकी लेबर पार्टी चुनाव जीत गई है। शुरुआती नतीजों से पता चलता है कि लोगों ने लेबर पार्टी को खूब वोट दिया है।
अल्बनीज का बचपन मुश्किलों भरा रहा। उनका जन्म मार्च 1963 में हुआ था। उनकी मां अकेली थीं और उन्हें पेंशन पर गुजारा करना पड़ता था। वे सिडनी में सरकारी घर में रहते थे। दिलचस्प बात यह है कि उन्हें बचपन में बताया गया था कि उनके पिता मर चुके हैं। लेकिन किशोरावस्था में उन्हें पता चला कि उनकी मां शादीशुदा आदमी से गर्भवती हुई थीं जो शायद अभी भी जिंदा थे। तीस साल बाद उन्होंने अपने पिता कार्लो अल्बनीज को ढूंढा और उनसे मिलने इटली गए।
लेकिन अल्बनीज मानते हैं कि उनकी मां के साथ बिताए शुरुआती सालों ने उन्हें वह इंसान बनाया जो वे आज हैं। वे अपने परिवार में हाई स्कूल पास करने वाले पहले व्यक्ति थे और उन्होंने सिडनी यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की। उनका राजनीति से पहला नाता यूनिवर्सिटी में जुड़ा जहां वे छात्र परिषद में शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने लेबर पार्टी के मंत्री टॉम उरेन के साथ काम किया और फिर एनएसडब्ल्यू लेबर के सहायक महासचिव बने।
अल्बो को लोग ‘छोटी-छोटी बातों पर ज्यादा ध्यान न देने वाला’ मानते हैं, जो एक नेता के लिए अच्छी बात है। वे पार्टियों और चुनावी कार्यक्रमों में ‘डीजे अल्बो’ के नाम से गाने भी बजाते हैं। ऑस्ट्रेलियाई टीवी पर भी वे अक्सर अपने प्यारे कुत्ते ‘टोतो’ के साथ दिखाई दिए थे । 1996 में अपने 33वें जन्मदिन पर अल्बनीज पहली बार संसद के लिए चुने गए। तब से वे लगातार सांसद हैं और ऑस्ट्रेलिया के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सांसदों में से एक हैं। उन्होंने लगभग 30 साल तक सिडनी की सीट का प्रतिनिधित्व किया है।
2007 में जब लेबर पार्टी सत्ता में आई तो अल्बनीज बड़े मंत्री बने और पार्टी के नेताओं को बदलने में उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने केविन रड को हटाकर जूलिया गिलार्ड को प्रधानमंत्री बनवाया और फिर वापस केविन रड को लाए। केविन रड के दूसरे छोटे कार्यकाल में वे उप-प्रधानमंत्री भी रहे। 2013 में उन्होंने विपक्ष के नेता के लिए चुनाव लड़ा।
2019 में जब लेबर पार्टी अप्रत्याशित रूप से चुनाव हार गई तो उन्होंने निराश पार्टी का नेतृत्व किया। लेकिन अल्बनीज ने हार नहीं मानी और अपना काम जारी रखा। आखिरकार 2022 में उन्होंने देश का सबसे बड़ा पद जीत लिया और लिबरल-नेशनल गठबंधन के दस साल के शासन को खत्म कर दिया।
अल्बनीज जल्दी ही शादी भी करने जा रहे हैं। उनकी मंगेतर का नाम जोडी हेडन है। वह प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए शादी करने वाले पहले ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री होंगे। उन्होंने पिछले साल ही शादी करने का इरादा जाहिर किया था। बाद में उन्होंने शादी को टालने का ऐलान कर दिया। अल्बनीज ने कुछ समय पहले कहा था कि वे चुनाव के बाद और साल खत्म होने से पहले (2025 में ही) शादी करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज को ऐतिहासिक जीत के लिए बधाई दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका फिर से चुना जाना ऑस्ट्रेलियाई जनता का उनके नेतृत्व पर “स्थायी विश्वास” को दर्शाता है। अल्बनीज ने उच्च-स्तरीय राष्ट्रीय चुनाव के बाद अपनी जीत का ऐलान किया है, जिसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें बधाई दी।
प्रधानमंत्री मोदी ने अल्बानीज को टैग करते हुए अपने एक्स पोस्ट में कहा, “आपकी शानदार जीत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री के रूप में पुनर्निर्वाचन के लिए बधाई एंथनी अल्बानीज यह जीत आपके नेतृत्व पर ऑस्ट्रेलियाई जनता के स्थायी विश्वास को दर्शाती है।” प्रधानमंत्री मोदी ने दोनों इंडो-पैसिफिक लोकतंत्रों के बीच बढ़ती साझेदारी पर भी जोर दिया और अल्बनीज सरकार के साथ क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। उन्होंने कहा, “मैं भारत-ऑस्ट्रेलिया रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने और इंडो-पैसिफिक में शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए साझा रणनीतियों को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने की उम्मीद करता हूं।”
मार्च 2023 में अल्बनीज ने भारत का दौरा किया था, जहां उन्होंने और प्रधानमंत्री मोदी ने रणनीतिक साझेदारी के तहत सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई थी। ऑस्ट्रेलिया में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी रहते हैं, और दोनों नेताओं ने नियमित रूप से लोगों के बीच संबंधों को द्विपक्षीय संबंधों की प्रमुख धुरी के रूप में उजागर किया है। ऑस्ट्रेलिया की राजनीति में 21 सालों में पहली बार है जब सिटिंग प्रधानमंत्री को लगातार दोबारा में सत्ता में आने का मौका मिला है। ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति में निरंतरता के लिए एक जनादेश के रूप में देखा जा रहा है, खासकर इंडो-पैसिफिक के लिए इस जीत को भारत बेहतर मान रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी व ऑस्ट्रेलिया की नजदीकी के कारण ऑस्ट्रेलिया भारतीय छात्रों का सबसे पसंदीदा स्टडी डेस्टिनेशन बन गया है । एक नई रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया अब भारतीय छात्रों के लिए सबसे पसंदीदा अंतरराष्ट्रीय स्टडी डेस्टिनेशन बन गया है। अंतरराष्ट्रीय शिक्षा प्रदाता द्वारा मार्च 2025 में कराए गए Emerging Futures Seven – Voice of the International Student सर्वे के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए पहला स्थान हासिल किया है।ऑस्ट्रेलिया की इस बढ़त का श्रेय उसकी मजबूत वैश्विक रैंकिंग और भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौते को दिया गया है, जिसने पोस्ट-स्टडी वर्क राइट्स को और आकर्षक बना दिया है। QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स 2025 में ऑस्ट्रेलिया की 15 यूनिवर्सिटीज टॉप 200 में शामिल हैं।
सर्वे में शामिल लगभग 6,000 वैश्विक छात्रों में से 1,400 भारतीय छात्र थे। इनमें से 28% भारतीय छात्रों ने ऑस्ट्रेलिया को अपनी पहली पसंद बताया, जबकि अमेरिका 22% के साथ दूसरे और यूके 21% के साथ तीसरे स्थान पर रहा। कनाडा की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है, जो पिछले वर्ष के 19% से घटकर अब मात्र 13% रह गई है। हालांकि अमेरिका अभी भी उच्च शिक्षा की गुणवत्ता, करियर अवसरों और वीजा नीतियों के चलते मजबूत विकल्प बना हुआ है, लेकिन भारतीय छात्र अब पढाई के खर्च और वित्तीय मदद जैसे कारकों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
सर्वे में 66% छात्रों ने खर्च को सबसे बड़ी चिंता बताया, जबकि 47% ने वीज़ा चुनौतियों, 43% ने हाउसिंग खर्च और 39% ने पार्ट-टाइम नौकरी के साथ पढ़ाई को चुनौतीपूर्ण माना। इसके अलावा, 55% छात्रों ने कहा कि स्कॉलरशिप उपलब्धता से वे अपना डेस्टिनेशन बदल सकते हैं, जबकि 54% ने पार्ट-टाइम वर्क के विकल्प को अहम माना।रिपोर्ट के अनुसार, 77% भारतीय छात्र विदेश में पढ़ाई का मुख्य उद्देश्य बेहतर करियर और आय की संभावनाएं मानते हैं।इन रुझानों के बीच, ऑस्ट्रेलिया की स्टूडेंट-फ्रेंडली नीतियां और शैक्षणिक प्रतिष्ठा उसे भारतीय छात्रों के लिए नई पसंदीदा मंज़िल बना रही हैं। अब यदि प्रधानमंत्री अल्बनीज , जीत के लिए भगवा थाम लिया था तो उन्हें भारतीय वोटरों का महत्त्व भी समझ लिया होगा जो आगे चल कर भारतीय क्षात्रों के लिए लाभ दायी होगा ।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार