
(पेआउट के बदले देशविरोध? अब नहीं चलेगा!)
सोशल मीडिया पर ‘पेआउट’ लेकर भारत को बदनाम करने वालों की अब खैर नहीं। IT एक्ट 2000 और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड 2021 के तहत सरकार ने सख़्त रुख अपनाया है। अब देशविरोधी कंटेंट पर न तो चुप्पी होगी, न छूट। अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अफवाह फैलाने और एजेंडा चलाने वालों पर कानूनी शिकंजा कसेगा। ये तय नहीं होगा कि आप किस पार्टी के समर्थक हैं, बल्कि ये देखा जाएगा कि आपके विचार भारत की अखंडता के साथ हैं या उसके खिलाफ़। अब पोस्ट से पहले सोचिए – देश पहले है, लोकप्रियता नहीं!
प्रियंका सौरभ
आज सोशल मीडिया एक ऐसा हथियार बन चुका है, जिसकी धार किसी तलवार से कम नहीं। यह धार विचारों की है, भावनाओं की है और सबसे खतरनाक — अफ़वाहों की भी। अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर पिछले कुछ वर्षों में एक ऐसा अघोषित बाजार खड़ा हो गया है, जहाँ ‘पेआउट’ के बदले पोस्ट तैयार होती हैं, देश की छवि बिगाड़ी जाती है और एक सुनियोजित रणनीति के तहत राष्ट्रविरोधी एजेंडे को “न्यूज़”, “ऑपिनियन” और “न्याय” का नाम देकर परोसा जाता है।
लेकिन अब चेतावनी जारी हो चुकी है।
“Standing Committee on Information Technology” के हालिया कार्यालय ज्ञापन (Office Memo) ने इस दिशा में गंभीर कदम उठाने की मंशा स्पष्ट कर दी है। अब सिर्फ़ देखा नहीं जाएगा — अब कार्रवाई होगी। आईटी एक्ट 2000 और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड 2021 के तहत ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स और ‘इन्फ्लुएंसर्स’ पर शिकंजा कसा जाएगा, जो देश के खिलाफ़ कंटेंट फैलाकर माहौल खराब करने में लगे हैं।
अभिव्यक्ति बनाम विध्वंस
देश में विचारों की आज़ादी संविधान से संरक्षित है। लेकिन क्या यह आज़ादी इतनी खुली हो कि कोई भी कुछ भी कह दे, और जब सवाल उठे तो ‘डेमोक्रेसी’, ‘फ्री स्पीच’ और ‘डिसेंट’ की आड़ ले ले? क्या राष्ट्रविरोधी कंटेंट को भी अभिव्यक्ति का हिस्सा मान लेना चाहिए?
जब कोई युवा “जॉब नहीं है” कहता है, वह जायज़ पीड़ा है। लेकिन जब वही सोशल मीडिया पर लिखता है — “भारत को जलना चाहिए”, “हिंदुस्तान नर्क है”, “देश तो फासीवादी बन चुका है”, तो ये राय नहीं रह जाती — यह एक सुनियोजित अफवाह बन जाती है, जिसे राजनीतिक या विदेशी ताकतें और हवा देती हैं।
इसलिए अब ये तय नहीं होगा कि पोस्ट करने वाला किस पार्टी का समर्थक है, अब ये तय होगा कि पोस्ट का असर राष्ट्र पर क्या है।
‘पेआउट पत्रकारिता’ का बढ़ता जाल
आजकल कुछ ‘फ्रीलांस’ और ‘इन्फ्लुएंसर्स’ सोशल मीडिया पर हर मुद्दे पर “ज्ञान” दे रहे हैं। लेकिन इन ज्ञानियों के पीछे अक्सर छिपी होती है पेआउट की रणनीति। एक खास विचारधारा के तहत वीडियो बनाए जाते हैं — किसी पर आरोप मढ़ा जाता है, किसी की छवि बिगाड़ी जाती है और अंत में क्लाइमेक्स यह कि “भारत अब रहने लायक नहीं बचा।”
ये सब उस एजेंडा मार्केटिंग का हिस्सा है जहाँ भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल की जाती है — खासकर मानवाधिकार, मुस्लिम विरोध, दलित उत्पीड़न जैसे संवेदनशील विषयों पर। इनकी टाइमिंग भी देखिए — जब UN में कोई भारत पर चर्चा होनी होती है, जब विदेशी रिपोर्ट्स आती हैं, ठीक उन्हीं दिनों ये ‘भारत-विरोधी अभियान’ सोशल मीडिया पर तेज़ हो जाते हैं।
क्या देशद्रोह की पहचान पार्टी से होगी?
बहस का एक हास्यास्पद बिंदु यह भी है कि लोग यह तय करने की कोशिश करते हैं कि कोई विचार देशविरोधी है या नहीं, इस आधार पर कि पोस्ट करने वाला व्यक्ति भाजपा समर्थक है या कांग्रेस का आलोचक। लेकिन क्या भारत की अखंडता की पहचान दल से होनी चाहिए? क्या राष्ट्रहित को भी राजनीतिक चश्मे से देखा जाएगा?
नहीं। अब समय है कि देश और दल के बीच की लकीर स्पष्ट की जाए।
राष्ट्र सबसे ऊपर है — न कि विचारधारा, जाति, धर्म या दल।
जो पोस्ट भारत की सीमाओं पर, उसके सैनिकों पर, उसकी न्याय व्यवस्था या लोकतांत्रिक संस्थानों पर बेबुनियाद आरोप लगाकर उन्हें अस्थिर करने का काम करती है — वो राष्ट्रविरोध है। और अब सरकार ने स्पष्ट कर दिया है — ऐसे कंटेंट को पेल दिया जाएगा, एकदम से तात्कालिक।
IT एक्ट और डिजिटल संहिता: अब छूट नहीं
आईटी एक्ट 2000 और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड 2021 अब सिर्फ़ किताबों तक सीमित नहीं रहेंगे। जो लोग यह मानकर चल रहे थे कि ऑनलाइन की दुनिया ‘नो रूल्स जोन’ है, उन्हें अब ज़मीनी हकीकत से रूबरू होना होगा।
इन कानूनों के तहत:
राष्ट्रविरोधी सामग्री साझा करने पर प्लेटफॉर्म को नोटिस और कंटेंट हटाने का निर्देश
फर्जी न्यूज़ फैलाने पर आपराधिक मामला दर्ज
पेड प्रमोशन को खुलकर दर्शाना अनिवार्य
भारत विरोधी ‘ट्रेंड्स’ को बढ़ावा देने पर आर्थिक जुर्माना और बैन तक की कार्रवाई
इन कानूनी प्रावधानों को अब सरकार सख्ती से लागू करने जा रही है।
देश है कोई स्टोरी पिच नहीं!
भारत कोई प्रोडक्ट नहीं है जिसे ‘इंटरनैशनल आउटलुक’ में बेचने के लिए बदनाम किया जाए। यह देश करोड़ों लोगों की आस्था, आत्मा और संघर्ष से बना है। कोई भी व्यक्ति अगर यह सोचता है कि वो एक ट्वीट या एक रील के ज़रिए देश को नीचा दिखा सकता है, तो वह बहुत बड़ी भूल कर रहा है।
सोशल मीडिया पर चल रही यह “राष्ट्र-विरोधी आउटसोर्सिंग” अब नहीं चलेगी।
कलम अब ज़िम्मेदार हो
साहित्य, पत्रकारिता, मीडिया और सोशल स्पेस — ये सब लोकतंत्र की रीढ़ हैं। लेकिन जब यही प्लेटफॉर्म विदेशी एजेंडों या राजनीतिक नफ़रत से ग्रस्त हो जाएं, तो उन्हें शुद्ध करना ही राष्ट्र की सुरक्षा का हिस्सा बन जाता है।
अब समय आ गया है कि कलम भी ज़िम्मेदारी के साथ चले।
हर पोस्ट से पहले, हर ट्वीट से पहले, हर वीडियो से पहले खुद से पूछिए — क्या ये मेरे देश के पक्ष में है या विपक्ष में?
अगर जवाब स्पष्ट नहीं है — तो पोस्ट मत कीजिए।
समापन में एक बात और —
ये देश बहस से नहीं डरता। लेकिन साजिश से चुप नहीं रहेगा।
अब वो दौर खत्म हो चुका है जब राष्ट्र को गाली देकर लोग ‘लोकप्रियता’ कमा लेते थे।
अब जवाब मिलेगा – कड़ा, कानूनी और तत्काल।