एक सदी दीनबंधु एंड्रूज के ब्रदरहुड हाउस की

A century of Deenbandhu Andrews' Brotherhood House

विवेक शुक्ला

महात्मा गांधी के परम सहयोगी दीनबंधु सी.एफ. एंड्रूज की संस्था दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी के केन्द्र ब्रदरहुड हाउस के लिए चालू वर्ष बेहद खास है। ब्रदरहुड हाउस की स्थापना 1925 में राजधानी में हुई थी। इस तरह यह इस साल अपना एक सदी का सफर पूरा कर रहा है। स्वाधीनता दिवस के करीब आते ही राजधानी के हजारों शरणार्थी परिवारों को उन दिनों की यादें ख्वाबों में भी आने लगती है, जब उनके बुजुर्गों को अपने घरों को छोड़कर राजधानी आना पड़ा था। बहुत सारे परिवार घायल हालत में आए थे। रास्ते में उन पर जानलेवा हमले हुए थे। कई महिलाएं गर्भवती थीं। तब उन्हें ब्रदरहुड हाउस में शरण मिली थी। हाल में दिवंगत हुए प्रसिद्ध अभिनेता मनोज कुमार ने एक बार इस लेखक को बताया था कि 1947 में उनका परिवार सरहद के उस पार से दिल्ली आया था। तब उनके परिवार के कई सदस्य दंगाइयों के हमलों में घायल हो गए थे। उनका छोटा भाई बीमार था। उन सभी को दिल्ली ब्रदरहुड हाउस में कई महीनों तक रहने को छत मिली थी।

दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी से जुड़े और ब्रदरहुड में रहने वालों ने ही 1881 में सेंट स्टीफंस कॉलेज स्थापित किया था, जो अब देश का सबसे बेहतर कॉलेज माना जाता है। भारत के पांचवें राष्ट्रपति डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद भी सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़े। डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद 1974 से 1977 तक देश के राष्ट्रपति रहे। जिन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज की नींव रखी थी उन्होंने ही अब हरियाणा के शहर सोनीपत में सेंट स्टीफंस कैम्ब्रिज स्कूल की स्थापना की है। शिक्षाविद्द ब्रदर सोलोमन जॉर्ज कहते हैं कि हम ब्रदरहुड हाउस में रहने वाले अपने स्कूल में पढ़ाई इस तरह से करवाने का इरादा रखते हैं ताकि बच्चों को आनंद आए। वे स्कूल आने से कतराए नहीं।

ब्रिटेन के किंग चार्ल्स तृतीय और उनकी दिवंगत मां राजकुमारी एलिजाबेथ भी बदरहुड हाउस आए। अगर बात किंग चार्ल्स की करें तो वे जब अपने देश के राजकुमार थे, वे तब 1997 में दिल्ली आए थे। अपनी उस यात्रा के दौरान वे ईस्ट दिल्ली के दिलशाद गॉर्डन के करीब ताहिरपुर में ब्रदरहुड सोसायटी के सेंट जॉन वोकेशनल सेंटर की गतिविधियों को देखने गए थे। यहां पर समाज के कमजोर तबकों से जुड़े सैकड़ों नौजवानों के लिए एयरकंडीशनिंग, मोटर मैक्निक, ब्यूटिशियन, कारपेंटर, टेलरिंग वगैरह के कोर्स चलाए जाते हैं। राजकुमारी एलिजाबेथ अंतिम बार 1997 में अपने भारत दौरे के समय दिल्ली आईं थीं। वह तब ब्रदरहुड हाउस भी गईं थीं।

इस बीच, फादर इयान वेदरवेल ब्रदरहुड सोसायटी की प्राण और आत्मा थे। उनका भारत से पहला रिश्ता तब स्थापित हुआ था जब दूसरा विश्व महायुद्ध चल रहा था। वे ब्रिटेन की फौज में थे। पंजाब रेजीमेंट में थे। भारत के कुछ शहरों में रहे भी थे। विश्व महायुद्ध की समाप्ति के बाद उनका जीवन बदला। उनका सैनिक की नौकरी से मन उखड़ने लगा। वे युद्ध के विरूद्ध बोलने- लिखने लगे। उन्होंने जंग के कारण होने वाली तबाही को अपनी आंखों से देखा था। उससे वे विचलित रहने लगे थे। उन्हें युद्ध की निरर्थकता समझ आ गई थी। तब उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से थीआलजी ( धर्म शास्त्र) की डिग्री ली। वे अपने जीवन में शांति चाहते थे। समाज सेवा करने की उनकी इच्छा थी। कुछ समय तक लंदन में पादरी रहे और फिर भारत आ गए। ये 1951 की बात है। तब तक भारत से अंग्रेजों को गए हुए कोई बहुत समय नहीं गुजरा था। यहां अंग्रेजों के प्रति गुस्से का भाव आम भारतीय के मन में था। वे उन स्थितियों में ब्रदरहुड हाउस में रहने लगे। उन्होंने अपना शेष जीवन गरीब गुरुबा और हाशिये पर धकेल दिए गए लोगों के हक में काम करने में लगा दिया। फादर वेदरवेल की शख्सियत पर महात्मा गांधी का प्रभाव साफ नजर आता था। फादर इयान वेदरवेल ने 2013 में निधन से पहले ही अपने साथियों से कह दिया था कि उन्हें भारत में ही दफन करा जाए। वे इसी पवित्र भूमि में ही मिलना चाहेंगे। उनकी जब मृत्यु हुई तो वे 91 साल के थे। उन्होंने भरपूर जीवन बिताया। उन्हें कश्मीरी गेट के निक्लसन कब्रिस्तान में दफन किया गया। अब भी उनके चाहने वाले उनकी कब्र पर लगातार फूल चढ़ाने पहुंचते रहते हैं।

ब्रदरहुड हाउस से ही देश का सबसे पुराना सीनियर सीटिजंस होम भी चलता है। इसे ब्रदरहुड होम कहा जाता है। ये 1946 में शुरू हो गया था। देश के बंटवारें के बाद जब शरणार्थियों का सैलाब आने लगा तो उनमें से बहुत को ब्रदरहुड़ होम के कैंपस में सिर छिपाने को छत मिली। ब्रदरहुड हाउस में ब्रदर मोनोदीप डेनियल गुजरे तीन दशकों से रहते हैं। वे मूल रूप से लखनऊ से हैं। वे सेंट स्टीफंस कॉलेज में कुछ सालों तक इंग्लिश भी पढ़ाते रहे हैं। ब्रदर डेनियल बताते हैं कि ब्रदरहुड हाउस में रहने वालों का अधिकतर समय चर्च, चर्च से जुड़े कामों और उन स्कूलों-संस्थानों में गुजरता है, जिन्हें वे चलाते हैं। ब्रदर डेनियल उदाहरण के तौर पर दिल्ली से सटे साहिबाबाद के दीन बंधु स्कूल में चले जाते हैं। वहां पर दिल्ली और यूपी के बच्चे पढ़ते हैं। दीन बंधु स्कूल दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी ने स्थापित किया था। सीएफ एंड्रयूज भी ब्रदरहुड हाउस में रहे है, जब यह फतेहपुरी चर्च के पास हुआ करता था। यह 1925 से पहले की बातें हैं।

सी.एफ.एंड्रयूज सेंट स्टीफंस कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे। वे दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी से 1916 में मिले थे। उसके बाद दोनों घनिष्ठ मित्र बने। उन्होंने 1904 से 1914 तक सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ाया। उन्हीं के प्रयासों से ही गांधी जी पहली बार 12 अप्रैल-15 अप्रैल, 1915 को दिल्ली आए थे।

अब जब सारी दुनिया में अपना हित ही सर्वोपरि हो गया है, तब हमारे बीच ब्रदरहुड हाउस का होना सुकून देता है कि अब भी कुछ लोग और संस्थाएं जनता के कष्ट में उनका साथ देती हैं।