अरुण चौबे
जब किसी भी दल के नेता को सत्ता का भरपूर स्वाद लेना हो वो तुरंत भाजपा में सम्मिलित हो जाता है. किसी भी दल के नेता का भाजपा में सम्मिलित होना भाजपा के प्रति समरपण नहीं है बल्कि लोभ लालच और सत्ता के मोह के वशीभूत होकर वो भाजपा में सम्मिलित होता है, बल्कि भाजपा में सम्मिलित होने के लिये नेता सौदेबाजी करके भी भाजपा में सम्मिलित होते हैं कि “मैं भाजपा में इस शरत पर सम्मिलित हो रहा हूँ कि मुझे चुनाव में भाजपा का प्रत्याशी बनाया जाना चाहिए. मुझे मंत्री बनाना चाहिए. इसी के कारण से किसी भी दल का नेता भाजपा में सम्मिलित होता है. नेता भ्रष्टता का पर्याय होता होता है कुबेर के खजाने से भी कई गुना ज्यादा धन (पाप की कमाई) किसी भी भ्रष्ट नेता के खजाने में होती है वो करोड़ों रुपया देकर भाजपा में सौदेबाजी करके भाजपा में सम्मिलित हो जाता है. जनसंघ और आज की भाजपा में जमीन आसमान का अन्तर है. आज कोई भी नेता/अपराधी भाजपा में सम्मिलित होकर अपने आपको सबसे ज्यादा सुरक्षित मानता है. क्योंकि जब वो किसी भी दूसरे राजनीतिक दल में होता है तब सबसे ज्यादा भाजपा ही उसे आरोपित करती है. भाजपा के आरोप किसी तीर से भी ज्यादा तीखे होते हैं. इसलिये किसी भी दूसरे दल का नेता रोज-रोज अपनी खाल नुचवाने की अपेक्षा भाजपा में सम्मिलित होना ज्यादा अच्छा मानता है. भाजपा का संगठन अपने कार्यकर्ताओ की वजह से मजबूत है जब लोकसभा में भाजपा की मात्र दो सीटें थी. तब भी भाजपा का संगठन मजबूत था आज भी मजबूत है. किसी भी भ्रष्ट नेता/अपराधी के भाजपा में सम्मिलित होने पर जब भाजपा के महान क्षेत्रप ये कहते खुश होते हैं कि इनके भाजपा में आने से पार्टी मजबूत हुई है तो ये बात गले नहीं उतरती है. जिसे आज तक आप पानी पी-पी कर कोसते रहे हैं, जो आपको महापापी नजर आ रहा था वो भाजपा में आने से अचानक पुण्यात्मा कैसे हो जाता है? जो लोग अपने बाप-दादा के युग से जनसंघ/भाजपा के प्रति समर्पित होकर भाजपा का ही काम करते हैं विपरीत वातावरण में भी पार्टी का पक्ष मजबूती से रखते आ रहे हैं. उनका का क्या है? वो भाजपा के अनुशासन को मानते चल रहे हैं क्या उनके आगे दलबदल करके आने वाला ज्यादा महत्पूर्ण है? भाजपा एक मजबूत राजनीतिक संगठन है. क्या भाजपा ऐसे मापदण्ड तय नहीं कर सकती है कि किसी भी दूसरे राजनीतिक दल का नेता यदि पार्टी में सम्मिलित होता है तो उसे किसी भी निकाटतम चुनाव में पार्टी उसे अपना प्रत्याशी नहीं बनाएगी. यदि वो भाजपा की रीति-नीति में विश्वास करके भाजपा में एक साधारण कार्यकर्ता के तौर पर सम्मिलित हुआ है तो उसे कम से कम पाँच साल तक पार्टी के संगठन में काम करना अनिवार्य है. उसके बाद देखा जाएगा कि उसे किसी भी चुनाव में प्रत्याशी बनाना चाहिए या नहीं? किसी भी दूसरे राजनीति दल के नेता अपने स्वार्थ और वर्चस्व के लिये भाजपा में आ रहे हैं. जब कोई भी दल बदलू भाजपा में सम्मिलित होता है तो ये मानने लग जाता है कि मैं चाहे जो करूं सब जायज है. किसी को भी भाजपा में सम्मिलित करने से पहले उसके आचरण को देखना क्या पार्टी की जवाबदारी नहीं है. दूसरे दल के नेताओं ने तो भाजपा को अपना चरागाह मान लिया है इसलिये वो भाजपा में सम्मिलित हो जाता है. भाजपा को किसी भी दूसरे दल से सम्मिलित होने वाले नेताओं के लिए मानदण्डों का
निर्धारित नहीं करना चाहिए?