क्या खोया क्या पाया हमने, उम्मीदों के गुलाब से वादों के कमल तक

पंडित संदीप

आधी रात को उम्मीदों का सूरज लेकर जागा हिंदुस्तान गुलाब की महक, सांसों की दहक, धड़कनों के तूफान, अरमानों के उफान, भावनाओं के ज्वार से घिरे जान सैलाब के अथाह भीड़ में लालकिले के प्राचीर से सबसे बड़े त्यौहार का आगमन करते हुए जवाहर बोले “जब सारी दुनिया सो रही है, तो भारत जाग रहा है”। इस जागते भारत को जगाने वाली कई पीढ़ियां बेशक समय से पहले ही सो गई हो,फांसी के फंदो पर झूला दी गई हो, गोलियों की बौछार में भून दी गई हो,असमय काल के गाल में समा गई हो। काला पानी की कहानी तो हम आप जानते ही हैं पर जब आजादी आई तो मानो सब जख्म भर गए,गम गुम हो गए, आशाएं आंखों में नाचने लगी। दर्द भले ही तब भी धर्म ही था उसी धर्म की लकीर खींच सरहदों में बंटी सीमाएं एक वतन के दो नाम बना दंगों में सुलग,धधक रही थी। वक्त नाजुक था हिंदू मुसलमान में घमासान, लहू से रंगा हिंदुस्तान-पाकिस्तान, खजाने में रुपयों का अकाल सब को संभालने, बचाने,बसाने,सुरक्षित रखने,भरोसा देने, रोजगार के अवसर देने,विकाश की राह दिखाने,दुनिया को समझाने,नया हिंदुस्तान बनाने लगाने देश बनाने में की कमान गुलाब की खुशबू वाले पंडित जी ने सहज संभाल ली। मजहबी उन्माद के तूफान में घिरे भारत को भारत से बचा भारत को विश्व पटल पर स्थापित करने का संयम साहस प्रभाव प्रयत्न कोई साधरण शख्श कर लेगा यह सोच ही बेचैन कर देती है। धार्मिक महाभारत से भारत को बचा गुटनिरपेक्ष की दृढ़ता पंचशील की पावनता दें पंडित जी ने जहां दुनिया को साफ साफ बता दिया सुन लो दुनिया वालों अब हिंद उठ खड़ा हुआ है, वहीं आधुनिक भारत को मंदिर मान भाखड़ा नांगल बांध, रिहंद बांध, बोकारो इस्पात कारखाना, भाभा परमाणु संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)भारतीय अनुसंधान संस्थान (इसरो) को साकार कर स्वर्णिम भारत के आधार बनाया। पंडित जी का कौशल बड़े मजबूत दो धडे में खड़े संसार के बीच भारत का मस्तक मान सहित ऊंचा कर दिया ये कह कर भारत किसी गुट का पिछलग्गू नही निर्गुट का मुखिया होगा। पंडित जी ने दुनिया को दूसरे देशों में विवादों में झांकने का झरोखा बंद कर समाधान का दरवाजा खोल दिया। पंचवर्षीय योजना देश को समर्पित कर विकास दर 3.6% बढ़ा प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया तो वही मुद्रास्फीति को दस साल तक बढ़ने नहीं दिया। राजनीति नहीं नेहरू जी को राष्ट्र नीति प्रिय थी यही वजह थी कि अपने मंत्रिमंडल में नेहरु जी ने अपने तीन- तीन धुर विरोधियों को मंत्री बना उन का मान बढ़ाया और देश का सम्मान बढ़ाने का काम सौंपा। वित्त मंत्रालय तत्कालीन जाने-माने अर्थशास्त्री आरके षणमुखम सेठी को सौप देश के खजाने की चाबी दे दी, तो वही उद्योग लगा रोजगार सृजन करने की कमान आज के भारतीय जनता पार्टी के अगुआ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कंधे पर तब ही छोड़ दी थी, वहीं कानून की कमान संविधान के निर्माता बाबा साहेब के हाथों में रख नेहरु जी ने सपनों के भारत को बनाने में एक एक सांस, एक-एक पल समर्पित कर साधना भारत निर्माण की आरधना शुरू कर दी। ऐसी उदारता, ऐसी महानता, ऐसी स्वीकार्यता इतिहास ने न देखी होगी न ही भविष्य कभी देख पाएगा रही बात वर्तमान के तो उसके बुते की तो यह बात ही नहीं।

राजनीति की मर्यादा काश हम नेहरु जी से सीखे तो देश के विभिन्न विवादों को संभव है विराम लग जाए। प्रचंड बहुमत से 1952, 1957, 1962 की जीत के बाद 1963 में विपक्ष सदन में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया तो पूरी कांग्रेस एक तरफ खड़ी हो गई जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए,अपने ही दल के घोर वरोध बावजूद पहाड़ सम विशाल ह्रदय वाले पंडित जी ने उसे स्वीकार कर चर्चा कराई। यह एक गुलाब की महक का जादू था जिसमें सबको अपना माना, सबको अपना जाना अपने गले लगाया। महान अटलने एक बार जोश जोश में अपने भाषण में नेहरू पर निशाना साध बोला आप मे चर्चिल भी हक़ी चेम्बरलिन भी है। उसी शाम नेहरू अटल आमने सामने हुए पंडित जी ने कहा आज तो बड़ा जोरदार भाषण दिया और पीठ थपथपा के आगे बढ़ गए। क्या आज ऐसा सोचना भी सम्भव है क्या? देश आज गुलाब की महक से दूर कमल खिलाएं खड़ा है, खड़ा है एक विशालकाय मूर्ति तले वायदों के भवर सौ स्मार्ट सिटी के इंतजार,काले धन की वापसी की राह देखता, दो करोड़ प्रतिवर्ष रोजगार के शिगूफे को सच मान टकटकी लगाए, महंगाई मिटाने की बात को सच मान, कसम मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं बिकने दूंगा की शपथ को ब्रह्म वाक्य मान कमलदार बन गया। पर बायदा पलट कर उसे जुमला करार दे बेकरार देश को रार की राह पर धकेल दिया गया।गुलाब की महक छीन हमने कीचड़ वाला कमल देश के पटल पर हमने दूसरी बार भले खिला दिया पर 1947 के नेहरू के गुलाब और 2022 के मोदी के कमल के बीच हमने क्या खोया क्या पाया? सोचना लाजमी है आजादी के अमृत महोत्सव में धर्म के नाम पर कटते गले,राम भक्तों पर बरसते पत्थर, घरों पर दौड़ते बुलडोजर, राम जादे या हरामजादे के बुलंद नारे और मंच से नेताओं की जहरीली जुबान देश के गद्दारों को गोली मारो…को। रोजगार की कोई राह नही, महंगाई पर लगाम नही, दुश्मन मुल्क से एक के बदले दस सिर आए नही,काला धन देश के किसी कोने में प्रकट हुआ नही, देश के उद्योग रेल जहाज नवरत्न को बिकने से कोई रोक पाया नही नए उद्योगों का सृजन करना तो दूर जमे जमाए पुराने सैकड़ों से ज्यादा उद्योग पलायन कर गए। दुर्भाग्य पेट्रोल डीजल आसमान छू रहे हैं और लाडला रुपया पाताल में झांक सहम रहा है। कीचड वाला कमल और खुशबू वाले गुलाब अंतर साफ है। 1947 में हिंदू मुसलमान के नियन्त्रित दंगे को नेहरू जी ने शांत कर भव्य भारत बनाया और आज हिंदू मुसलमान की कड़वाहट देश की भावनाओं को जहरीला बना रही हैं। नेहरू दर्शन और मोदी के पवादों के बीच अंतर साफ है वो साफ साफ नजर भी आ रहा है बशर्ते देखने का नियत नजर और नजरिया भी साफ हो।