जन सहभागिता से ही सफल होगा सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबंध

पुष्पेन्द्र दीक्षित

बीती 1 जुलाई से भारत सरकार द्वारा सिंगल यूज प्लास्टिक को देश में पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है | हालाँकि इसका मसौदा बीते वर्ष अगस्त 2021 में ही तैयार कर लिया गया था | जब केंद्रीय पर्यावरण ,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधित नियम 2021 की अधिसूचना जारी की जिसका उद्देश्य चिन्हित किये गए 19 सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों पर 2022 के अंत तक रोक लगाना है | यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया के अन्य देश काफी पहले ही सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा चुके हैं | हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश वर्ष 2002 में ही इस प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा चुका है | इसके साथ केन्या ,यूके,ताइवान,न्यूजीलैंड ,कनाडा ,और अमेरिका समेत देशों ने भी कुछ शर्तों के साथ सिंगल यूज़ प्लास्टिक को प्रतिबंधित कर रखा है |

सिंगल यूज़ प्लास्टिक के तहत कैंडी का रेपर ,ईयर वड ,केक काटने वाला चाक़ू सिगरेट के पैकेट पर चढ़ाई जाने वाली प्लास्टिक की फिल्म प्लेट, ग्लास, चम्मच, कप, कांटे, एपी फ्रिज या फ्रूटी की स्ट्रा , ट्रे, मिठाई के डिब्बे समेत 19 उत्पाद 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पाद में आते हैं | सिंगल यूज़ प्लास्टिक से बने उत्पाद पर्यावरण के साथ -साथ स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत हानिकारक है | इन्हें न तो दुबारा प्रयोग किया जा सकता है और महँगे रिसाइकल होने की बजह से न ही रिसाइकल किया जाता है | जिसका नतीजा यह होता है कि नालियों ,नदियों व अन्य जगह यह प्लास्टिक ऐसे ही सालों साल पड़े रहने से हानिकारक गैस का उत्सर्जन होता है जिससे सभी प्राणियों के स्वास्थ्य का खतरा बढ़ जाता है | केन्दीय प्रदूषण बोर्ड के सर्वे के मुताबिक़ , देश में रोजाना 26000 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है ,जिसमें से सिर्फ 60 फीसदी का ही निस्तारण हो पाता है | वहीं अगर बीते वर्षों की बात करें तो केंद्र सरकार की एक रपट के मुताबिक़ देश में 2018 -19 में 30.59 लाख टन और 2019 -20 में 34 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा जनरेट हुआ था | सिंगल यूज़ प्लास्टिक में जो रसायन होता उसका असर प्राणियों के स्वास्थ्य के साथ -साथ पर्यावरण पर भी बुरा असर डालता है | जिससे मिट्टी का कटाव जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है | नदियों के रास्ते या समुद्र के किनारे पिकनिक स्पॉट होने से यह प्लास्टिक समुद्र में पहुँच जाती है | जिससे समुद्र में रहने वाले जीव इसको निगल जाते हैं और धीमी मौत का असमय शिकार हो जाते हैं |

यह बात अपनी जगह बिल्कुल सही है कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक बेहद हानिकारक है।कुछ लोग तर्क दे सकते हैं, इसके बंद होने बेरोजगारी की समस्या पैदा हो जाएगी | इसके जबाव हेतु हमको लगभग चार दशक पीछे 80 के दशक से सीख लेनी होगी, जब सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उत्पाद चलन में नहीं थे | लोग जूट या कपडे के थैले ,प्लास्टिक प्लेट के स्थान पर पेड़ के पत्तों की पत्तलों व दोनों का प्रयोग करते थे | हमको अपनी पुरानी हानिरहित पद्धति को अपनाते हुए जूट के थैलों ,बाँस व पेड़ की पत्तों को प्लास्टिक का विकल्प बनाना होगा | जिससे इन क्षेत्रों में रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं विकसित हो सकेंगी। सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद इस क्षेत्र में अंतिम समाधान तब तक नहीं मिल सकता जब तक कि इसमें जन सहभागिता नहीं होगी। लोगों के जुड़ाव और अपने पर्यावरण के प्रति जागरूकता के चलते ही हम इस समस्या का स्थाई समाधान तलाश सकते हैं।