छह माह में राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुए हादसों में 26,770 लोगों की जान गई

26,770 people lost their lives in accidents on national highways in six months

रफ्तार के साथ बढ़े हादसे

प्रमोद भार्गव

देशभर में इस साल जनवरी से जून के बीच केवल राश्ट्रीय राजमार्गों पर हुई दुर्घटनाओं में 26,770 लोगों ने प्राण गंवा दिए हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नीतिन गडकरी ने संसद के चालू सत्र में राज्यसभा में लिखित जानकारी सांसद संबित पात्रा के प्रश्न के उत्तर में दी है। गडकरी ने बताया कि सरकार 2022 से प्रत्येक वर्श राज्यों और केंद्र षासित प्रदेशों से मिले आंकड़ों के आधार पर भारत में ‘सड़क दुर्घटनाएं‘ षीर्शक से रपट प्रकाशित करती है। देशभर में हुई सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों के प्रबंधन और विश्लेशण के लिए ‘इलेक्ट्रोनिक डिटेल‘ एक्सिडेंट रिपोर्ट (ई-डार) पोर्टल विकसित किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में 53,372 लोगों ने और 2024 में 52,609 लोगों के प्राण चले गए थे और 2025 के बीते छह माह में 26,770 लोगों की मौंते हुई हैं।

देश में सड़कों पर एक्सप्रेस हाइवे, चौड़ीकरण और ग्रामों में सड़कों के विस्तार के चलते जिस अनुपात में रफ्तार की सुविधा बढ़ी है, उसी अनुपात में दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं। पूरे देश में एक्सप्रेस-वे पर निरंतर दुर्घटनाएं घट रही हैं। यह चिंता की बात है कि आखिर ये हादसे क्यों हो रहे हैं ? केंद्र सरकार ने नवंबर 2022 में जानकारी दी थी कि देशभर में हई कुल सड़क दुर्घटनाओं में 32.9 प्रतिशत एक्सप्रेस-वे पर घटी हैं। इनकी वजह तेज गति रही है। दुर्घटनाओं के बढ़ने का एक बड़ा कारण देश को कार और दो पहिया वाहनों से पाट देना भी है। ऐसे में जल्दी मंजिल पाने की होड़ में वाहनों की गति बढ़ा दी जाती है और जब सामने कोई जानवर या वाहन आ जाता है तो रफ्तार को नियंत्रित करना संभव नहीं रह जाता। षराब पीकर वाहन चलाना भी दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण है।

अब तक यह आम धारणा बनी हुई है कि सड़क हादसे राजमार्गों पर अधिक होते हैं। किंतु सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने सड़क दुर्घटनाओं को लेकर एक नई तस्वीर पेश की है। इससे पता चला है कि राजमार्गों से कहीं अधिक हादसे भीतरी सड़कों पर भी होने लगे हैं। यह वाकई हकीकत है। ग्रामीण इलाकों में जबसे ट्रेक्टर, बाइक और कार-जीपों की संख्या बढ़ी है, तब से इन छोटे समझे जाने वाले मार्गों पर दुर्घटनाएं बढ़ी हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत बीते दो दशकों के भीतर गांव-गांव सड़कें पहुंची हैं और उसी तादाद में वाहन भी बढ़े हैं। विडंबना यह भी रही कि इसी दौरान गांव-गांव षराब की वैध-अवैध बिक्री भी षुरू हो गई, जो दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण बन रही है। यही वह दौर रहा है जब आम लोगों में बेफिक्री से वाहन चलाने का चलन बढ़ा हैं। साथ ही इन क्षेत्रों में यातायात नियंत्रण की सुविधा नहीं होना भी हादसों का एक कारण है।

सड़क हादसों में भारत को हर साल मानव संसाधन का सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ता है। अंतरराश्ट्रीय सड़क संगठन (आईआरएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में सड़क हादसों में होने वाली मौतों में भारत की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से ज्यादा हैं। इस जानकारी के अनुसार 12.5 लाख लोगों की दुनिया में प्रतिवर्श सड़क हादसों में मौतें होती हैं, इनमें सर्वाधिक भारत में होती है। जो परिवार हादसे में अपने परिजन को गंवाता है, उस पर पांच लाख रुपए का औसतन अतिरिक्त बोझ पड़ता है। सड़कों पर बढ़ती दुर्घटनाओं में षराब पीकर वाहन चलाना, नाबालिग बाइकर्स का सड़कों पर बेलगाम होना भी हैं, वहीं देश में बढ़ते सड़क हादसों के कारण राश्ट्रीय राजमार्गों में भी तलाशे जा रहे हैं। दरअसल देश में हरेक साल करीब डेढ़ लाख लोग मारे जाते हैं और चार से पांच लाख घायल होते हैं, उनमें ज्यादातर युवा होते हैं।

दूसरी तरफ सरकार राजमार्गों पर ऐसे स्थल तलाश रही है, जहां अधिकतम दुर्घटनाएं होती हैं। इसके बाद इन स्थलों पर ऐसे सुधार किए जाएंगे,जिससे घटनाएं कम हों। राजमार्ग लंबे व तेज गति के सफर के लिए होते हैं। इसलिए अक्सर वाहनों की गति तेज रहती है। भारी मालवाहक वाहन राजमार्गों से ही गुजरते हैं। ऐसे में यदि वाहन चालकों को आसानी से षराब की उपलब्धता दिखाई दे तो उसके प्रति स्वाभाविक रूप से लालच पैदा हो जाता है। इसके सेवन के साथ ही खतरे की आशंका बढ़ जाती है। राजमार्गों पर हर पांच किलोमीटर की दूरी पर औसतन षराब की तीन दुकानें हैं। इस बाबत पूर्व प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने शराब लॉबी के दबाव में अंधाधुंध परमिट बांटने की प्रवृत्ति पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि, ‘षराब के भयावह सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर खूब चर्चा की जाती है, लेकिन संवैधानिक निर्देश के बावजूद सरकारें शराब पर अंकुश लगाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाती हैं। शराब कारोबारी भी धन के बूते ऐसी पहलों को व्यर्थ कर देते है और सरकारें राजस्व कमाई की दुहाई देकर शराब बिक्री जारी रखती हैं।‘

पिछले डेढ़ दशक में देशभर की सड़कों पर क्षमता से अधिक वाहन आए हैं। अतएव उसी अनुपात में हादसे भी बढ़े हैं। इन हादसों में ज्यादातर मरने वाले लोगों में 40 फीसदी, 26 से 45 आयुवर्ग के होते हैं। यही वह महत्वपूर्ण समय होता है, जब इन पर परिवार के उत्तरदायित्व के निर्वहन का सबसे ज्यादा दबाव होता है। ऐसे में दुर्घटना में प्राण गवां चुके व्यक्ति के परिजनों पर सामाजिक, आर्थिक और आवासीय समस्याओं का संकट एक साथ टूट पड़ता है। इन हादसों में 19 से 25 साल के इतने युवा मारे जाते हैं, जितने लोग कैंसर, टीबी और मलेरिया से भी नहीं मरते। ये हादसे मानवजन्य विसंगतियों को भी बढ़ावा दे रहे हैं। आबादी में पीढ़ी व आयुवर्ग के अनुसार जो अंतर होना चाहिए, उसका संतुलन भी गड़बड़ा रहा है। यदि सड़क पर गति को नियंत्रित नहीं किया गया तो सड़क हादसों में मरने वाले लोगों की संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि षायद आबादी नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन की जरुरत ही नहीं रह जाएगी ?

यातायात सुचारु रूप से संचालित हो, इसके लिए जापान, अमेरिका और सिंगापुर के यातायात कानून से भी सीख लेने की बात कही जा रही है। खासतौर से यूरोपीय देशों में अंतरराश्ट्रीय स्तर पर एक आचार संहिता लागू है, जिसका ज्यादातर देश पालन करते हैं। इस संहिता के मुताबिक यदि किसी कार की गति 35 किमी प्रति घंटा है, तो दो कारों के बीच की दूरी 74 फीट होनी चाहिए। 40 मील प्रतिघंटा की रफ्तार होने पर यह अंतर 104 फीट और 45 फीट की गति पर यह अंतर 132 फीट होना चाहिए।

संहिता में चालकों के नियम भी तय किए गए हैं। यदि चालक की मुट्ठी बंद करने की ताकत पौने सोलह किलोग्राम से कम निकलती है तो माना जाना चाहिए कि यह व्यक्ति वाहन चलाने लायक नहीं है। संहिता की षर्त के मुताबिक वाहन चलाने लायक उस व्यक्ति को माना जाएगा जो 20 मीटर आगे चल रहे वाहन का नंबर आसानी से पढ़ ले। हमारे यहां तो 80 साल के षक्ति और दृश्टि से कमजोर हो चुके बुजुर्ग भी सड़कों पर वाहन चलाते खूब देखे जाते हैं। फिर वाहनों के अनुपात में हमारी सड़कों पर जगह भी नहीं है। 74 फीट दूरी बनाएं रखने की बात तो छोड़िए, देश के महानगरों में 2 से 5 फीट की दूरी वाहनों के बीच बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। जाहिर है, हम लायसेंस प्रणाली को श्रेश्ठ बनाने के लिए बात भले दुनिया के देशों का अनुकरण करने की करें, लेकिन नतीजे कारगर निकलें ऐसी उम्मीद कम ही है ? लिहाजा सड़कों से वाहन कम किए बिना दुर्घटनाआें से छुटकारा मुश्किल है। दूसरी तरफ कार एवं बाइक लॉबी हमारे यहां इतनी मजबूत है कि वह कारों के उत्पादन में कमी लाने नहीं देगी, बल्कि उसकी तो कोशिश है कि कारें सड़कां पर निर्बाध चलें। इसके लिए पदयात्री, साइकिल, तांगा और साइकिल रिक्शा को ही सड़कों से हटा दिया जाए ?