कैसे भारत सहेजे पांडुलिपियों का खजाना, सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने की चुनौती

How can India save the treasure of manuscripts, the challenge of saving cultural heritage

विवेक शुक्ला

बेशक,भारत की पांडुलिपियाँ हमारी संस्कृति, इतिहास और बौद्धिक विरासत का अनमोल हिस्सा हैं। ये प्राचीन दस्तावेज़ साहित्य, विज्ञान, दर्शन और धर्म से जुड़े हैं, जो हमारी विविध परंपराओं और ज्ञान की गहराई को दर्शाते हैं। ये हमें हमारे ऐतिहासिक जड़ों से जोड़ते हैं और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करते हैं। संस्कृत, तमिल, फारसी जैसी भाषाओं में लिखी ये पांडुलिपियाँ गणित, खगोलशास्त्र और आयुर्वेद जैसे क्षेत्रों में भारत के योगदान को दिखाती हैं। इन्हें बचाना ज़रूरी है, वरना ये समय के साथ खराब होकर हमेशा के लिए खो सकती हैं। डिजिटाइज़ेशन और संरक्षण के ज़रिए इन्हें भविष्य के लिए सुरक्षित किया जा सकता है, ताकि लोग इनका अध्ययन कर सकें और भारत की इस धरोहर की वैश्विक सराहना हो।

शोध की दुनिया में एक छोटे से ख्याल को पक्की, छपने लायक पांडुलिपि में बदलना किसी बड़े रोमांच जैसा है। नए शोधकर्ता, पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट्स और यहाँ तक कि अनुभवी शिक्षाविद भी इस प्रक्रिया की मुश्किलों से जूझते हैं। डॉ. आर.सी. गौड़, जो लाइब्रेरी और सूचना विज्ञान के बड़े नाम हैं, ने अपनी किताब फ्रॉंम मेनू स्क्रिप्ट टू मेमोरी (स्मृति से पांडुलिपि तक) में मयंक शेखर के साथ मिलकर इन मुश्किलों को हल करने की हरचंद कोशिश की है। भारत की पांडुलिपि परंपरा दुनिया में सबसे विशाल और टिकाऊ है। ये पांडुलिपियाँ कई भाषाओं, लिपियों और ज्ञान प्रणालियों को समेटे हुए हैं, जो हमारी सभ्यता के दर्शन, चिकित्सा, विज्ञान, संगीत, कला और शासन के विकास को दर्शाती हैं।

निश्चित रूप से स्क्रिप्ट टू मेमोरी हर कदम पर शोधकर्ताओं का मार्गदर्शन करती है। शुरूआत में ये बताती है कि शोध की समस्या कैसे ढूँढें, एक मजबूत परिकल्पना कैसे बनाएँ, और सही तरीके से मेथडोलॉजी कैसे तैयार करें। इसके बाद ये शोध पत्र या थीसिस लिखने के गुर सिखाती है—एक दमदार शुरुआत से लेकर निष्कर्ष तक। ये तर्कों को सुसंगत बनाने, सबूतों का सही इस्तेमाल और साफ-सुथरी भाषा में लिखने की सलाह देती है।

डॉ. गौड़ और मयंक शेखर की किताब पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक से जोड़ती है। भारत में लाखों पांडुलिपियाँ हैं, जो पाली, प्राकृत, शारदा, ब्राह्मी जैसी लिपियों में लिखी गई हैं। ये ताड़पत्र, भोजपत्र, हस्तनिर्मित कागज़, कपड़े और ताम्रपत्रों पर हैं। पर्यावरण, लापरवाही और दस्तावेज़ीकरण की कमी से इन्हें ख़तरा है। किताब इनके कैटलॉगिंग, संरक्षण और डिजिटाइज़ेशन का तरीका बताती है।

प्रो.गौड़ और मयंक शेखर ने किताब की प्रस्तावना में लिखा, “दस्तावेज़ी धरोहर का संरक्षण सिर्फ़ आर्काइविंग नहीं, बल्कि एक गहरा बौद्धिक और सांस्कृतिक प्रयास है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली संस्था इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (IGNCA) जैसी संस्थाएँ, जो यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम का हिस्सा हैं, हमारी साझा सभ्यता के ज्ञान को बचाने में अहम भूमिका निभाती हैं।” पांडुलिपियाँ सिर्फ़ ऐतिहासिक वस्तुएँ नहीं, बल्कि आज के समाज को इसके बौद्धिक और आध्यात्मिक जड़ों से जोड़ने वाली जीवंत कड़ियाँ हैं।

स्क्रिप्ट टू मेमोरी भारत की पांडुलिपि धरोहर को बचाने की ज़रूरत को रेखांकित करती है, साथ ही आधुनिक तकनीक को अपनाने की बात करती है। ये किताब लेखकों के दशकों के अनुभव का निचोड़ है और सामूहिक प्रयासों के ज़रिए भारत की सांस्कृतिक विरासत को बचाने की दिशा में एक मज़बूत रास्ता दिखाती है।

अगर बात स्क्रिप्ट टू मेमोरी से हटकर करें ये याद रखा जाना जरूरी है किभारत की सांस्कृतिक धरोहर विश्व की सबसे प्राचीन और समृद्ध विरासतों में से एक है, जो हज़ारों वर्षों के इतिहास, परंपराओं, कला, संगीत, नृत्य, साहित्य, और दर्शन का अनूठा संगम है। यह धरोहर न केवल भारत की पहचान है, बल्कि यह देश की एकता, विविधता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक भी है। इसे सहेजना इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह हमारी जड़ों से जोड़ता है, सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है, और भावी पीढ़ियों को उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों से अवगत कराता है। सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण राष्ट्रीय गौरव को मजबूत करता है और वैश्विक मंच पर भारत की विशिष्ट छवि को बनाए रखता है। यह पर्यटन को बढ़ावा देकर आर्थिक विकास में भी योगदान देता है, क्योंकि ताजमहल, अजंता-एलोरा, और खजुराहो जैसे स्थल विश्व भर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इसके अलावा, अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर जैसे लोक संगीत, नृत्य, और हस्तशिल्प हमारी सांस्कृतिक विविधता को जीवित रखते हैं, जो सामाजिक समरसता और सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करती है।

सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण केवल भौतिक स्मारकों तक सीमित नहीं है; यह हमारी भाषाओं, परंपराओं, और जीवन शैली को भी शामिल करता है। यदि हम इसे संरक्षित नहीं करेंगे, तो हम अपनी सांस्कृतिक पहचान और इतिहास के महत्वपूर्ण हिस्सों को खो देंगे। यह न केवल हमारी राष्ट्रीय अस्मिता को कमजोर करेगा, बल्कि वैश्वीकरण के दौर में हमारी अनूठी सांस्कृतिक विशेषताएं भी लुप्त हो सकती हैं। इसलिए, इसे सहेजना न केवल हमारी ज़िम्मेदारी है, बल्कि यह भविष्य के लिए एक निवेश भी है।

मोदी सरकार ने सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और प्रचार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सबसे उल्लेखनीय है धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का पुनरुद्धार, जैसे अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का विकास, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम का सौंदर्यीकरण, और उज्जैन में महाकाल मंदिर का विस्तार। ये परियोजनाएं न केवल आध्यात्मिक महत्व की हैं, बल्कि ये सांस्कृतिक पुनर्जागरण और पर्यटन को बढ़ावा देने में भी योगदान दे रही हैं। इसके अलावा, सरकार ने यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में भारत के स्थानों को शामिल करने के लिए प्रयास किए हैं।

संस्कृति मंत्रालय के तहत विभिन्न योजनाएं, जैसे कला प्रदर्शन अनुदान योजना, युवा कलाकारों के लिए छात्रवृत्ति, और टैगोर राष्ट्रीय सांस्कृतिक अनुसंधान अध्येतावृत्ति योजना, अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों का रखरखाव और संरक्षण किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, ‘अमृत भारत’ और ‘स्वदेश दर्शन’ जैसी योजनाएं सांस्कृतिक स्थलों को पर्यटन के लिए विकसित कर रही हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में डिजिटल पहलें, जैसे डिजिटल मीडिया और दूरदर्शन पर सांस्कृतिक धरोहरों को प्रदर्शित करने वाली डॉक्यूमेंट्री, जन जागरूकता बढ़ाने में सहायक रही हैं। ये प्रयास न केवल धरोहरों के प्रति गर्व की भावना को बढ़ाते हैं, बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने में भी मदद करते हैं। इस प्रकार, मोदी सरकार का दृष्टिकोण सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के साथ-साथ इसे वैश्विक मंच पर उजागर करने का भी है, जिससे भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और गौरव को नई ऊंचाइयों तक ले जाया जा सके।