शिक्षक: सम्मान और सुरक्षा की अनिवार्यता

Teachers: Respect and safety are essential

मुनीष भाटिया

शिक्षक को सदियों से समाज का मार्गदर्शक और अंधकार में प्रकाश का दीपक माना जाता रहा है। भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी उच्च स्थान प्राप्त है, क्योंकि वही मानव को अज्ञान से ज्ञान की ओर, भ्रम से सत्य की ओर और निराशा से आत्मविश्वास की ओर ले जाता है। शिक्षक केवल पुस्तकीय जानकारी नहीं देते, बल्कि जीवन का दर्शन, मूल्य और जिम्मेदारी का भाव भी प्रेरित करते हैं।

किन्तु आज की वास्तविकता इस आदर्श से काफी भिन्न है। समाज में जिस शिक्षक को आदर और सम्मान का प्रतीक माना जाना चाहिए, वही शिक्षक कई बार सड़कों पर अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करता हुआ दिखाई देता है। कहीं अस्थायी नियुक्ति के कारण भविष्य असुरक्षित है, कहीं वर्षों तक पदोन्नति का अभाव है, तो कहीं समय पर वेतन और सुविधाएं न मिलने से पारिवारिक जीवन प्रभावित होता है। यह विडंबना है कि जो वर्ग राष्ट्र का भविष्य गढ़ने का कार्य करता है, वही स्वयं अपने वर्तमान को सुरक्षित करने के लिए संघर्षरत हो।

आज शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शिक्षक को केवल एक “नौकरीपेशा कर्मचारी” मान लिया गया है। उनकी भूमिका को पाठ्यपुस्तक तक सीमित कर दिया गया है, जबकि वास्तविकता यह है कि शिक्षक भविष्य निर्माण की सबसे अहम कड़ी हैं। यदि वे प्रेरित, आत्मनिर्भर और सम्मानित होंगे तो ही विद्यार्थी आत्मविश्वास और संस्कारों से संपन्न हो पाएँगे। लेकिन यदि शिक्षक निराशा और असुरक्षा में जीवन जिएंगे तो समाज के सामने कैसी पीढ़ी खड़ी होगी, यह सवाल गंभीर है। यह भी ध्यान रखना होगा कि शिक्षक केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक संघर्ष भी कर रहे हैं। उनका आंदोलन केवल अपने लिए नहीं, बल्कि शिक्षा प्रणाली की बेहतरी के लिए है। जब वे स्थायी नियुक्तियों की मांग करते हैं तो उसका सीधा असर विद्यालयों की स्थिति और विद्यार्थियों के भविष्य पर पड़ता है। जब वे न्यायपूर्ण नीतियों की मांग करते हैं तो इसका लाभ पूरे समाज को मिलता है।

ऐसे समय में समाज और सरकार दोनों की जिम्मेदारी है कि शिक्षकों की आवाज़ को गंभीरता से सुना जाए। उन्हें केवल कर्तव्य-निष्ठा का पाठ पढ़ाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें वह गरिमा, स्थायित्व और सुरक्षा भी देनी होगी जो उनके कार्य के अनुरूप है। सच्चा सम्मान वही है, जब समाज और व्यवस्था मिलकर यह सुनिश्चित करें कि कोई भी शिक्षक सड़क पर संघर्ष करने को विवश न हो।