एससीओ 2025 और भारत की तीन-स्तंभ रणनीति : सुरक्षा, संपर्क और अवसर

SCO 2025 and India's three-pillar strategy: Security, Connectivity and Opportunity

भारत की भूमिका और तियानजिन घोषणा की उपलब्धियों का मूल्यांकन

तियानजिन में आयोजित 25वें एससीओ शिखर सम्मेलन 2025 ने भारत की सक्रिय भूमिका को रेखांकित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की तीन-स्तंभ रणनीति—सुरक्षा, संपर्क और अवसर—प्रस्तुत करते हुए आतंकवाद पर शून्य-सहनशीलता, संप्रभुता-सम्मानजनक संपर्क और तकनीक व संस्कृति में अवसरों को बढ़ावा देने पर बल दिया। तियानजिन घोषणा में “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” का भारत-प्रस्तावित दृष्टिकोण शामिल किया गया, साथ ही आतंकवादी हमलों की निंदा और वैश्विक सुधारों का समर्थन भी किया गया।

डॉ. प्रियंका सौरभ

शंघाई सहयोग संगठन, जिसकी स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी, मूल रूप से सुरक्षा केंद्रित मंच के रूप में अस्तित्व में आया। चीन, रूस और मध्य एशियाई देशों के लिए यह संगठन आतंकवाद और सीमाई स्थिरता का साझा मंच था। किंतु दो दशकों में यह संगठन धीरे-धीरे बहुआयामी स्वरूप ग्रहण कर चुका है, जिसमें सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक सहयोग, संपर्क, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की स्थापना जैसे मुद्दे प्रमुख हो गए हैं। भारत, जिसने 2005 में प्रेक्षक के रूप में इसमें प्रवेश किया और 2017 में पूर्ण सदस्यता प्राप्त की, इस संगठन में एक ओर अवसर देखता है तो दूसरी ओर चुनौतियों का सामना भी करता है। वर्ष 2025 का तियानजिन शिखर सम्मेलन, जो संगठन की 25वीं वर्षगांठ भी था, इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर भारत की भागीदारी की रूपरेखा तीन स्तंभों—सुरक्षा, संपर्क और अवसर—के रूप में प्रस्तुत की। यह केवल भाषणबाज़ी नहीं थी, बल्कि एक स्पष्ट और संतुलित रणनीति थी, जिसके द्वारा भारत ने अपनी सुरक्षा चिंताओं को रेखांकित किया, संगठन में असंतुलनों को संतुलित करने का प्रयास किया और स्वयं को भविष्य-निर्माता शक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश की। इन तीन स्तंभों की गूंज तियानजिन घोषणा में स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुई, जहाँ पहली बार “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” का भारत-प्रस्तावित दृष्टिकोण औपचारिक रूप से शामिल किया गया।

पहला स्तंभ, सुरक्षा, भारत की प्राथमिक चिंता है। मोदी ने आतंकवाद के प्रति “शून्य सहनशीलता” का सिद्धांत दोहराते हुए दोहरे मानदंडों को अस्वीकार किया। यह स्पष्ट संदेश पाकिस्तान की ओर निर्देशित था, जो आतंकवादी संगठनों को शरण और समर्थन देने के बावजूद स्वयं को आतंकवाद-रोधी शक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है। भारत ने सुनिश्चित किया कि तियानजिन घोषणा में कश्मीर के पुलवामा-पहलगाम हमले सहित पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हाल के बड़े आतंकवादी हमलों का स्पष्ट उल्लेख हो। यह भारत की कूटनीतिक जीत थी, क्योंकि पहले की घोषणाएँ अक्सर सामान्य शब्दों में ही सीमित रहती थीं। भारत ने क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS) को सशक्त बनाने, खुफिया साझाकरण बढ़ाने, आतंक वित्तपोषण पर रोक और डिजिटल कट्टरपंथ पर नियंत्रण के उपायों की आवश्यकता पर जोर दिया। अफगानिस्तान की अस्थिरता को लेकर भी भारत ने चेतावनी दी कि यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो पूरा क्षेत्र असुरक्षा की चपेट में आ जाएगा।

दूसरा स्तंभ, संपर्क, भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। मध्य एशिया ऊर्जा-संपन्न और रणनीतिक रूप से अहम क्षेत्र है, किंतु भारत का सीधा भौगोलिक संपर्क सीमित है। मोदी ने चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे जैसे परियोजनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने वाले संपर्क ढांचे का समर्थन करता है। यह चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की अप्रत्यक्ष आलोचना थी, विशेषकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, जो भारतीय क्षेत्र गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है। भारत ने यह स्पष्ट किया कि विकास का मार्ग किसी देश की संप्रभुता से समझौता करके नहीं बनाया जा सकता।

तियानजिन शिखर सम्मेलन में भारत-चीन संबंधों में आंशिक संवाद भी देखने को मिला। मोदी और शी जिनपिंग की संक्षिप्त मुलाकात में सीमा स्थिरता, वीज़ा बहाली और कैलाश-मानसरोवर जैसी तीर्थयात्राओं के पुनः प्रारंभ की संभावनाओं पर चर्चा हुई। यह इंगित करता है कि भारत के लिए संपर्क केवल भौतिक अवसंरचना तक सीमित नहीं है, बल्कि लोगों के बीच संबंध, व्यापार सामान्यीकरण और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

तीसरा स्तंभ, अवसर, भारत की दूरदर्शिता और रचनात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है। मोदी ने कहा कि एससीओ केवल सुरक्षा और भू-राजनीति तक सीमित न रहकर नवाचार, युवाओं के सशक्तिकरण और सतत विकास का मंच बने। भारत ने एससीओ स्टार्टअप फोरम को सशक्त बनाने, समावेशी डिजिटल शासन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जिम्मेदार उपयोग पर सहयोग का प्रस्ताव रखा। पर्यावरणीय स्थिरता, हरित ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संयुक्त प्रयासों की भी वकालत की। साथ ही, भारत ने एससीओ में “सभ्यतागत संवाद मंच” स्थापित करने का सुझाव दिया ताकि एशियाई देशों की साझा सांस्कृतिक धरोहर को उजागर किया जा सके। यह स्तंभ भारत को मात्र सुरक्षा केंद्रित राष्ट्र से आगे बढ़ाकर सांस्कृतिक और नैतिक नेतृत्वकर्ता की भूमिका प्रदान करता है।

तियानजिन घोषणा में भारत की इन पहलों की गूंज साफ दिखाई दी। पहली बार घोषणा में “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” जैसे भारतीय दृष्टिकोण को अपनाया गया। यह वही विचार है जिसे भारत ने अपने जी20 अध्यक्षता काल में भी प्रस्तुत किया था। घोषणा में आतंकवादी घटनाओं की स्पष्ट निंदा की गई और एससीओ विकास बैंक की स्थापना पर सहमति बनी, जिसमें चीन ने 1.4 अरब डॉलर की प्रारंभिक पूंजी देने का वादा किया। यद्यपि इससे चीन की आर्थिक प्रभुत्व की आशंका बनी रहती है, किंतु यह एससीओ को एक ठोस आर्थिक मंच बनाने की दिशा में कदम है। घोषणा में बहुध्रुवीयता, संयुक्त राष्ट्र सुधार और विकासशील देशों की अधिक भागीदारी का समर्थन किया गया। शिक्षा, संस्कृति और सभ्यतागत संवाद को बढ़ावा देने का संकल्प भी इसमें शामिल था, जो भारत की पहल से मेल खाता है।

भारत की इन उपलब्धियों के बावजूद चुनौतियाँ बनी हुई हैं। पाकिस्तान लगातार कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करता है, हालांकि उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिलती। चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना अब भी कई देशों को आकर्षित करती है, जिससे भारत का असहमति का रुख संगठन में अंतर्विरोध पैदा करता है। अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर कोई ठोस सामूहिक रणनीति अब भी नहीं बन पाई है। साथ ही, भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए पश्चिमी मंचों जैसे क्वाड और हिंद-प्रशांत पहलों के साथ संतुलन साधना पड़ता है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, एससीओ की प्रासंगिकता तेजी से बढ़ रही है। यह संगठन विश्व की लगभग आधी आबादी और पाँचवें हिस्से की अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे समय में जब रूस-यूक्रेन युद्ध, अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा और पश्चिम एशिया की अस्थिरता अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर छाई हुई है, एससीओ बहुध्रुवीयता का प्रतीक बनकर उभरा है। भारत की सक्रिय भूमिका इस संगठन को लोकतांत्रिक और विकासोन्मुखी आयाम प्रदान करती है।

भविष्य की राह में भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकवाद-रोधी सहयोग केवल कागज़ी न रहे, बल्कि खुफिया साझा करने और वित्तीय निगरानी जैसी ठोस व्यवस्थाओं में परिणत हो। चाबहार और उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे जैसे वैकल्पिक संपर्क ढाँचों को शीघ्र लागू करना होगा। आईटी और स्टार्टअप क्षेत्र में भारत की ताक़त एससीओ को वैश्विक मंच पर प्रासंगिक बना सकती है। योग, आयुर्वेद, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से भारत अपनी सॉफ्ट पावर और मज़बूत कर सकता है। सबसे अहम चुनौती चीन और रूस के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की होगी, ताकि भारत अपनी संप्रभुता सुरक्षित रखते हुए स्वतंत्र भूमिका निभा सके।

अंततः, तियानजिन शिखर सम्मेलन केवल एससीओ की वर्षगांठ भर नहीं था, बल्कि भारत की कूटनीति की परिपक्वता का प्रतीक भी था। सुरक्षा, संपर्क और अवसर—ये तीन स्तंभ मिलकर भारत की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और क्षेत्रीय अपेक्षाओं को जोड़ते हैं। तियानजिन घोषणा में भारत की दृष्टि का शामिल होना इसका प्रमाण है। चुनौतियाँ चाहे जितनी भी हों, भारत अब केवल सहभागी नहीं, बल्कि एससीओ की दिशा तय करने वाला एक प्रमुख वास्तुकार बन चुका है।