आकांक्षा त्यागी
इसमें कोई सन्देह नहीं कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति में उसके नागरिकों का बड़ा योगदान रहता है। नागरिकों में महिलाएं, पुरुष, वृद्ध, जवान और बच्चे — सभी शामिल होते हैं। अगर यही सब कुछ फैलाव का रूप ले ले, तो खुद के लिए ही समस्याएँ बढ़ सकती हैं। भारत के लिए जनसंख्या विस्फोट एक ऐसी समस्या है, जिसका समाधान तत्काल रूप से खोजना होगा।
इस मामले में चीन जैसे देश ने इसी जनसंख्या को अपनी ताकत बनाया है, लेकिन अगर हमने इसे अनियंत्रित रहने दिया, तो ये अच्छे संकेत नहीं हैं। भारत दुनिया का नम्बर वन जनसंख्या वाला देश बन चुका है। दुनिया में अगर अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे देशों की बात करें, तो हम विकसित राष्ट्र बनने की राह पर चल रहे हैं, लेकिन इस लक्ष्य को सहजता से पाना सम्भव नहीं। सरकारों को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि जमीनी स्तर पर भी अभियान चलाने होंगे।
अगर हम अतीत में झांकते हैं तो परिवार नियोजन का वह नारा “हम दो, हमारे दो” याद आता है। आज की तारीख में जब हम भौतिक सुखों की तलाश में आगे बढ़ रहे हैं, तो देश में समान विकास, समान जातियों और समुदायों की बात करते हैं। इसे संविधानधर्मी समानता की विशेषता से भी जोड़ा जाता है। लेकिन विचारधारा का ज़मीनी पहलू जब जाति और मजहबी विभाजन में दिखाई देता है, तो जनसंख्या का संतुलन गड़बड़ाने लगता है।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि आज़ादी के बाद से लेकर आज तक भारत ने जीवन विकास के हर क्षेत्र में अपनी नई पहचान बनाई है। कृषि, उद्योग, आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया जैसे नए-नए आयाम स्थापित करते हुए देश ने प्रगति को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं — आपदाएँ, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपत्तियाँ, बेरोजगारी जैसी समस्याएँ कदम-कदम पर देश के सामने खड़ी हैं।
इन सबके पीछे कहीं न कहीं बढ़ती आबादी का ही प्रभाव दिखाई देता है। अब जापान, कनाडा, सिंगापुर जैसे विकसित देशों से आपसी रिश्ते सुधारने और सबके साथ मिलकर काम करते हुए सरकारी योजनाओं को क्रियान्वित करना होगा। यह सच है कि औसत प्रजनन दर हमारे यहाँ कम हुई है, लेकिन ज़मीन पर हालात वहीं के वहीं बने हुए हैं।
हालांकि नब्बे के दशक के बाद शिक्षा, आर्थिक उदारीकरण और वाटर सप्लाई जैसी सुविधाओं में इज़ाफ़ा हुआ है, फिर भी बिहार, झारखंड, यूपी जैसे राज्यों में ऊँची प्रजनन दर एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। “अतिथि देवो भव” की परम्परा पर चलते हुए भारत ने म्यांमार और बांग्लादेश जैसे देशों से बाहरी लोगों के प्रवेश द्वार चौड़े किए हैं, जो चिंतनीय है।
बेरोजगारी की दर देश में हर साल सुरसा के मुख की तरह बढ़ती जा रही है। हर साल सवा करोड़ युवाओं का नौकरी बाज़ार में प्रवेश हो चुका है। यद्यपि ‘आयुष्मान भारत’, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाएँ और ‘स्किल इंडिया’ अभियान चल तो रहे हैं, लेकिन लक्ष्य अभी दूर है।
हमें दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र के रूप में ऐसा कोरा भारत बनाना होगा, जहाँ देश की युवा शक्ति देश का बोझ नहीं, बल्कि उसकी ताकत बने। हमें अपनी नई पीढ़ी को एक ऐसा भारत देना है जो सुरक्षित और गौरवशाली हो, जिसमें भीड़-भाड़ के तंत्र की जगह सम्मानपूर्वक जीवन और आगे बढ़ने वाले भारत तथा भारतीयता की झलक दिखाई दे।





