डा0 संजय कुमार श्रीवास्तव
अमेरिकी संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी के ताइवान की यात्रा से चीन जबरदस्त गुस्से में हैं ऐसा लग रहा है जैसे नैंसी पेलोसी की इस यात्रा ने आग में घी डालने का काम कर दिया है और इसी गुस्से में चाइना ताइवान का गला चारो तरफ से दबाने की पूरजोर कोशिश कर रहा है। अबतक चाइना ताइवान को 6 तरफ से घेर चुका है साथ ही 4 से 7 अगस्त तक मिसाइलों की टेस्टिंग अर्थात फायर ड्रिल को अंजाम दिया जायेगा। खतरे को भांपते हुये ताइवान ने भी लेवल 2 का अर्लट जारी कर दिया है। दोनो की तरफ सायरनो की आवाज गूंज रही है। चाइना के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भी दावा किया है कि इस युद्धाभ्यास में पीएलए के फाइटर जेट भी हिस्सा लेंगे और अगर ऐसा होता है तो इस सैन्य अभ्यास से ताइवान के बड़े बंदरगाहों और जहाजी रास्तों को खतरा पैदा हो सकता है।
दूसरी तरफ अब अमेरिका भी चीन से दो-दो हाथ करने के पूरी मूड में दिखायी दे रहा है। इसी के मद्देनज़र अमेरिका अपने परमाणु एयरक्राफ्ट कैरियर, किलर पनडुब्बियों से लेकर अत्याधुनिक सैनिक साजो-सामान को तैनात कर दिया है।
अब सवाल उठता है कि आखिर चाइना और ताइवान के बीच विवाद क्या है और कब से शुरूआत हुआ? इन सवालों का जवाब ये है कि सन 1949 में चीन में गृहयुद्ध हुआ था। तब इसमें क्यूओमिनटैंग लोगों की हार हुई और वे ताइवान चले गये। गृहयुद्ध में चीन और ताइवान के विभाजन के बाद चीन गणराज्य सरकार को ताइवान में स्थानांतरित कर दिया गया था। दूसरी ओर] चीन की कम्यूनिरूस्ट पार्टी ने मुख्य भूमि में पीपुप्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की। साथ ही पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना द्वारा चीन गणराज्य को सयुक्त राष्ट्र में अधिकारिक प्रतिनिधि के रूप् में विस्थापित कर दिया गया।
वहीं कम्यूनिस्टों ने मुख्य भूमी पर राज किया। इसी समय वन चाइना वन पॉलिसी लाई गई। इसके तहत चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है] लेकिन ताइवान खुद को स्वतंत्र देश बताता है। और यही कारण है कि चीन ताइवान को स्वतंत्र देश न मानकर उसे अपने देश का हिस्सा मानता है। इसलिए चीनी विशेषज्ञों का भी दावा है कि इस तरह का कदम चीन का ताइवान को अपने कब्जे में लेने की दिशा में एक सम्भावित कदम हो सकता है।
हांलाकि अंतरराष्ट्रिय स्तर पर ज्यादातर देश चीन की चाइना वन पॉलिसी को स्वीकारते हैं जिससे ताइवान के अन्य देशों से राजनयिक संबंध नहीं बन पाये हैं और कुछ देश ऐसे हैं जो चाइना की वन पॉलिसी को नकारते हैं जिसमें अमेंरिका प्रमुख है और ताइवान को स्वतंत्र देश मानता है और इसी वजह से ताइवान की राष्ट्रपति ने यूएस स्पीकर नैंसी पेलोसी को ताइवान आने के लिए शुक्रिया कहा और साथ देने के लिए अमेरिका को धन्यवाद दिया। अमेरिका ने भी प्रत्युत्तर में कहा ’’लोकतंत्र पर हमले के खिलाफ हमें साथ आना ही होगा। वहीं नैंसी ने भी कहा ’ताइवान के समर्थन के लिए पूरा अमेरिका एकजुट है। अमेरिका हमेशा ताइवान का साथ देगा। इम हर स्तर पर ताइवान का साथ देंगे। हम अपने वादे से पीछे नहीं हटेंगे।
अब दूसरी तरफ देखा जाये रूस चीन का समर्थन किया है। रूस ने यूएस की स्पीकर नैंसी पेलोसी की यात्रा को लेकर चीन के रूख का सर्मथन किया है। रूसी राष्ट्रपति कार्यालय क्रेमलिन ने कहा कि रूस इस मुद्दे पर चीन के साथ है साथ ही ये भी कहा कि मामले को सम्मान और संवेदनशीलता के साथ निपटाने के बजाय अफसोसजनक रूप से अमेरिका ने संघर्ष का रास्ता चुना। इससे अच्छा होने वाला नहीं है।
अमेरिका और चाइना के बीच ताइवान को लेकर मतभेद क्यूं है। इसका उत्तर तलाशने की कोशिश की। शंघाई कम्युनिक (1972), नॉर्मलाइज़ेशन कम्युनिक (1979) और 1982 कम्युनिक ताइवान के संबंध में अमेरिका-चीन की आपसी समझ को रेखांकित करने वाले तीन दस्तावेज़ हैं।
1979 की विज्ञप्ति के अनुसार] अमेरिका ताइवान को चीन का एक हिस्सा मानते हुए ’एक चीन सिद्धांत’ को स्वीकार करता है। हालाँकि अमेरिका ने दोनों देशों के लोगों के नाम पर ताइवान के साथ अनौपचारिक संबंध बनाए रखना शुरू कर दिया। 1982 की विज्ञप्ति में चीन ने ताइवान संबंध अधिनियम] 1979 के प्रावधानों के अनुसार, अमेरिका द्वारा ताइवान को हथियारों की निरंतर आपूर्ति की संभावना पर अपनी चिंता व्यक्त की। इस तरह अमेरिका ने ताइवान की चिंताओं के साथ-साथ पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की अपनी मान्यता को संतुलित किया है।
धीरे-धीरे ताइवान में डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी स्वतंत्र निर्वाचन क्षेत्र का समर्थन करने वाली ताइवान की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक पार्टी बन गई है। डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी ताइवान में चीन के प्रभाव रहित स्वयं के आर्थिक संबंधों का विस्तार करना चाहती है। दूसरी तरफ चीन, ताइवान को उच्च भू-राजनीतिक महत्त्व वाला क्षेत्र मानता है क्योंकि यह जापान और दक्षिण चीन सागर के बीच प्रथम द्वीप शृंखला में केंद्रीय रूप से स्थित है। अगर देखा जाये तो इस पूरे क्षेत्र में अमेरिका की सैन्य चौकियांँ हैं। अगर ताइवान चाइना से अलग स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता ले लेता है तो यह चीन के लिए घातक हो सकता है ऐसा चीन का मानना है। क्यों कि ताइवान पर नियंत्रण न रहने से अमेरिका को अपना स्थायी सैन्य बेस बनाने का रास्ता साफ हो जायेगा। इसलिये चीन ताइवान पर नियंत्रण बनाये रखने के लिए पूरजोर कोशिष कर रहा है। ताइवान पर चीन के नियंत्रण की कोशिश चाइना-वन-पॉलिसी को के लिये एक महत्त्वपूर्ण सफलता होगी।