
संदीप ठाकुर
‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान’..इसका उल्लेख 15 अगस्त,
2022 काे लाल किला के प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
अपने भाषण में किया। मीडिया में खूब वाहवाही हुई। कहा गया कि
प्रधानमंत्री ने लाल बहादुर शास्त्री के ‘जय जवान, जय किसान’ के
ऐतिहासिक नारा में जय अनुसंधान पहली बार जोड़ उसे मुकम्मल बना दिया है।
लेकिन यह सच नहीं है। जनवरी,2019 में यह बात (नारा) प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने खुद पंजाब के फगवाड़ा स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी
में आयोजित 106 वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में भी कही
थी । चार साल बीत गए। लेकिन अनुसंधान के क्षेत्र में कुछ उल्लेखनीय ताे
हुआ नही। नारा दाेहराया जरुर गया। नारा और हकीकत में फर्क आंकड़े बताते
हैं। साफ पता चलता है कि मोदी सरकार अनुसंधान के साथ वैसी प्रतिबद्धता से
नहीं जुड़ी हुई है। अलबत्ता इस सरकार में अनुसंधान के बजट में लगातार
कटौती की जा रही है। लाख टके का सवाल यह है कि बिना अनुदान, कैसे होगा
‘जय अनुसंधान’ ?
‘जय जवान, जय किसान’ के नारा में अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘जय विज्ञान’
जोड़ा था और अब नरेंद्र मोदी ने इसके आगे ‘जय अनुसंधान’ जोड़ दिया। जोड़
ताे दिया लेकिन अब आगे क्या ? देश के हर प्रधानमंत्रियों का यह शगल होता
है कि वे कुछ ऐसा नारा दें, जो अमर हो जाए, जिसे लोग याद रखें।
प्रधानमंत्री मोदी का यह प्रयास भी कुछ ऐसा ही है। आंकड़े ताे यही बयां
कर रहे हैं। भारत में अनुसंधान पर निवेश में लगातार कमी आ रही है। जीडीपी
के मुकाबले सिर्फ 0.66 फीसदी रकम इस क्षेत्र में निवेश की जाती है। इसमें
भी साढ़े 61 फीसदी के करीब डीआरडीओ, इसरो और एटॉमिक एनर्जी को चला जाता
है। सिर्फ 38 फीसदी जनरल रिसर्च के लिए जाता है, जिसमें आईसीएआर,
सीएसआईआर, आईसीएमआर, डीएसटी, डीबीटी आदि सब शामिल हैं। विज्ञान व
प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंदर रिसर्च के तीन विभाग आते हैं- डिपार्टमेंट
ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (डीबीटी), डिपार्टमेंट ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल
रिसर्च (डीएसआईआर ) व डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी)। इस
साल के बजट में इन तीनों के खर्च में कटौती की गई है। पिछले वित्त वर्ष
यानी 2021-22 में इनका बजट 14,793 करोड़ रुपए था, जिसे वित्त वर्ष
2022-23 में घटा कर 14,217 करोड़ कर दिया गया था। यानी 576 करोड़ की
कटौती हुई है।
आरएंडडी पर खर्च में भारत की कमजोर स्थिति का आकलन इससे किया जा सकता है
कि वह सबसे निचले पायदान पर है। ब्रिक्स के साथी देश उससे कहीं आगे हैं।
दक्षिण अफ्रीका भी 0.8 प्रतिशत के साथ भारत से ऊपर है। दुनिया में हम
कहां हैं, इसका आकलन भी हम इससे कर सकते हैं कि आरएंडडी पर विश्व के
देशों का औसत खर्च 1.8 प्रतिशत है। इसका अर्थ है कि भारत में आरएंडडी पर
औसत का आधा हिस्सा भी खर्च नहीं किया जा रहा है। इसी कारण पेटेंट के
मामले में भी हम बहुत पीछे हैं। इक्का-दुक्का सरकारों को छोड़ दें तो
दुनिया की अधिकतर सरकार अनुसंधान में लगने वाले पैसे को बर्बादी मानती
हैं। इसलिए लोकप्रियता के लिए अपने सारे काम करने वाली सरकार शोध व विकास
के काम में निवेश नहीं करती है। अमेरिका, कोरिया व इजराइल तीन ऐसे देश
हैं जो अनुसंधान पर अच्छा खासा खर्च करते हैं। अमेरिका में यह जीडीपी का
2.8 फीसदी, इजरायल में 4.3 और कोरिया में 4.2 फीसदी है। चीन में यह कुल
जीडीपी का 2.1 प्रतिशत है।