लिव इन : आधुनिकता के लिबास में संस्कारहीनता

शिशिर शुक्ला

पिछले दिनों दिल्ली में एक 26 वर्षीय महिला की उसके लिव इन पार्टनर के द्वारा निर्दयतापूर्वक हत्या के उपरांत शव के पैंतीस टुकड़े करने का हृदयविदारक एवं जघन्य कृत्य हम सबके समक्ष उजागर हुआ है। पुलिस द्वारा की गई जांच पड़ताल के उपरांत यह भी खुलासा हुआ है कि लड़की ने अपने परिवार के विरुद्ध कदम उठाते हुए लिव इन संबंध को अपनाया एवं परिवार से बचने के लिए मुंबई छोड़कर दिल्ली में ठिकाना बनाया। किंतु दुर्भाग्य यह कि वह अपने पार्टनर को पूर्णतया समझने में असफल रही एवं विवाह हेतु दबाव बनाने पर उसे दर्दनाक मृत्यु का भयानक अंजाम भुगतना पड़ा।

एक समय ऐसा भी था जब पूरा विश्व भारतवर्ष का प्रत्येक क्षेत्र में अनुकरण व अनुसरण करता था। इसका कारण यह है कि भारत संस्कृति, सभ्यता, परंपराओं एवं मानवीय मूल्यों की जन्मभूमि है। परंपराओं की सरिता भारत से ही निकलकर पूरे विश्व को सिंचित करती थी। किंतु आज का परिदृश्य प्राचीनकाल से सर्वथा भिन्न है। आज की युवा पीढ़ी पश्चिमी सभ्यता के रंग में पूर्णतया रंग चुकी है। परंपराओं, रीति-रिवाजों, खान-पान, वेशभूषा, रहन-सहन, संस्कारों, आदर्शों इत्यादि प्रत्येक क्षेत्र में भारत का युवा अपनी प्राचीन समृद्ध एवं पवित्र संस्कृति को भूलकर पश्चिम का अंधानुकरण करने पर उतारू है। नवीन पीढ़ी के युवावर्ग के मन मस्तिष्क में यह पूरी तरह से व्याप्त है कि पश्चिमी रीतिरिवाज एवं व्यवस्थाएं आधुनिकता का पर्याय हैं। उन्मुक्तता की लालसा उनके अंतर्मन की गहराइयों में समाहित हो चुकी है। इन्हीं तथाकथित आधुनिक रिवाजों में एक बहुचर्चित रिवाज है- लिव इन रिलेशनशिप, अर्थात एक ऐसी व्यवस्था जिसमें दो बालिग लोग (पुरुष व स्त्री) परस्पर सहमति से एक साथ पति-पत्नी की तरह रहते हैं, किंतु उनके मध्य ‘विवाह’ नाम का कोई समझौता नहीं होता है। ऐसे संबंध या व्यवस्थाएं पश्चिमी देशों में तो आम बात है किंतु पिछले कुछ दशकों में भारत जैसे परंपरावादी देश में भी इस नवीन परंपरा के प्रचलन में तेजी आई है। और तो और, सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा भी लिव-इन संबंधों की मान्यता पर मुहर लगा दी गई है। किंतु यहां पर एक बात अतिमहत्वपूर्ण एवं विचारणीय है कि पश्चिमी देशों एवं भारत की विचारधारा एवं माहौल में जमीन आसमान का अंतर है। पश्चिमी देशों में एक स्त्री व पुरुष के बीच संबंध केवल उन्हीं के बीच का विषय है, इसमें समाज एवं कानून का कोई हस्तक्षेप कदापि नहीं होता। पश्चिमी देशों में एक कुंवारी लड़की का मां बनना बेहद आम एवं आश्चर्यविहीन बात है। भारत जोकि संस्कृति एवं परंपराओं का देश है, वहां इस तथाकथित आधुनिकता, जोकि वास्तव में संस्कारहीनता की एक झलक है, के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

परिवार एवं समाज मानव की सर्वोत्तम पाठशालाएं हैं। इनसे अलग होकर व्यक्तित्व में संस्कारों का समावेश सर्वथा असंभव है। पाश्चात्य अनुकरण की अंधी दौड़ में आज का युवा बंधनमुक्त होकर जीना चाहता है। उसे किसी भी कीमत पर उन्मुक्तता के वातावरण की अभिलाषा रहती है। समाज व परिवार जैसी इकाइयां निश्चित रूप से हमारे ऊपर मर्यादा, संस्कार, रीतिरिवाज एवं परंपराओं के बंधन आरोपित करती हैं। यह सत्य है कि कहीं न कहीं इससे हमारे लिए एक सीमारेखा अवश्य खिंच जाती है, किंतु वही सीमारेखा हमारे व्यक्तित्व एवं चरित्र को पूर्ण सुरक्षा भी प्रदान करती है। दुर्भाग्य यह है कि हमारे देश का युवा अपनी संस्कृति को भुलाकर, ‘लिव इन रिलेशनशिप’ जैसी तथाकथित आधुनिकता का अंधाधुंध अनुसरण करने पर उतारू है, और इसके लिए उसे अपने परिवार एवं माता-पिता को ठुकराने का निर्णय लेने में क्षणभर का भी समय नहीं लगता है।

मानव जाति का धरा पर अस्तित्व बने रहने के लिए यह अत्यावश्यक है कि मृत्यु के साथ-साथ जन्म की प्रक्रिया भी निर्बाध रूप से चलती रहे। जन्म हेतु स्त्री व पुरुष का मिलन अनिवार्य है। हमारे सनातन धर्म में जन्म अथवा सृजन की प्रक्रिया को एक पवित्र परंपरा या रीति के आवरण से ढका गया है और वह है -विवाह। विवाह षोडश पावन संस्कारों में से एक है। किंतु आज की पीढ़ी इस पवित्र परंपरा को उपहास की दृष्टि से देखकर बिना विवाह ही एक छत के नीचे दंपति की भांति रहने को अपना एवं अपने विचारों का आधुनिकतापूर्ण दृष्टिकोण के प्रति झुकाव बताती है। उनके दृष्टिकोण में लिव इन संबंध एक दूसरे को पूर्णतया समझने का जरिया है। यदि ऐसा सत्य होता तो आज दिल्ली में लिव-इन में रह रहे लड़के के द्वारा अपने पार्टनर को 35 टुकड़ों में काटकर फ्रिज में रखने जैसी भयानक घटना सामने न आती। समाज में प्रत्येक स्तर पर लिव इन जैसे संबंधों की असफलता एवं उनके दुष्परिणाम आए दिन सामने आते रहते हैं। इनमें से अधिकांश दुर्घटनाएं महिलाओं के साथ होती हैं, क्योंकि वे लिव इन के जंजाल में फंस तो बहुत शीघ्रता से जाती हैं लेकिन एक सीमा को लांघने के बाद उनके लिए इससे बाहर निकलना असंभव हो जाता है। इसका दुष्परिणाम तनाव, डिप्रेशन और अंततः आत्महत्या के रूप में सामने आता है। येन केन प्रकारेण जो संबंध किसी तरह चल भी जाते हैं, उनमें भी आए दिन लड़ाई झगड़े, सामाजिक अस्वीकृति व तिरस्कार, स्वयं को दूसरे की अपेक्षा श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास इत्यादि दुष्प्रभाव सामने आते रहते हैं।

भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं, नैतिक व सामाजिक मूल्यों के कारण ही विश्व के अन्य देशों से अलग है। विवाह की परंपरा सनातन धर्म में आदिकाल से विद्यमान है और यह परंपरा निश्चित रूप से कर्तव्य एवं दायित्व बोध, समाज व परिवार के रूप में सुरक्षा कवच एवं मर्यादाओं की सीमा रेखा से बंधी हुई है। लिव इन रिलेशनशिप जैसी अपवित्र, दायित्वों से अप्रतिबंधित एवं असामाजिक व्यवस्था हमारे लिए सर्वथा हानिकारक है, लिहाजा हमें इस तथाकथित आधुनिकता को छोड़कर अपनी संस्कृति के साथ दृढ़ता से जुड़े रहना चाहिए ताकि हमारी युवापीढ़ी को पथभ्रष्ट होने से बचाया जा सके।