अशोक गहलोत और सचिन पायलट विवाद का पटाक्षेप करने कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामन्त्री के सीवेणुगोपाल ने राहुल गाँधी की भूमिका को दोहराया
रविवार दिल्ली नेटवर्क
नई दिल्ली : करीब चार वर्ष पहलें कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट के मध्य विवाद को सुलझाने के लिए नई दिल्ली में जो भूमिका अदा की थी उसी तर्ज पर मंगलवार को कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामन्त्री के सी वेणु गोपाल ने जयपुर में राहुल गाँधी की मंशा के अनुरूप मध्यस्थ की अहम भूमिका निभाते हुए अशोक गहलोत और सचिन पायलट के मध्य चल रही तकरार का फिलहाल सीजफायर करते हुए चार वर्ष पहलें जैसी ही तस्वीर जारी कर राजस्थान की सियासी राजनीति में फूटी ज्वालामुखी की आग कोशान्त करने का काम किया है । एक दिन पहलें ही अपनी भारत जोड़ों यात्रा के दौरान राहुल गाँधी ने इंदोर में कहा था कि यह दोनों ही नेता पार्टी के लिए अहम और एसेट हैं। दिसंबर के पहले सप्ताह में राहुल गाँधी काअगला पड़ाव राजस्थान में ही होने वाला है।
चार वर्ष पहलें राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली विजय के बाद नेतृत्व को लेकर चले संघर्ष कापटाक्षेप करते हुए 14 दिसम्बर 2018 को राहुल गाँधी ने ट्विटर पर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथएक तस्वीर साया की थी और उस पर लिखा था “युनाइटेड कलर्स ऑफ राजस्थान”… बावजूद इसकेमहत्वाकांक्षाओं के चलते पिछलें चार वर्षों में गहलोत और पायलट गुटों के मध्य तकरार रुकी नही फिर भी एकसे अधिक बार दोनों गुटों में सुलह के बार बार प्रयास हुए हैं।इसी क्रम में कांग्रेस के संगठन महासचिव केसीवेणुगोपाल ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट में आखिरसियासी सुलह करवा ही दी है। वेणुगोपाल ने राजस्थान के प्रभारी महामंत्री अजय माकन के इस्तीफ़ा से रिक्तहुई कमी को भी बखूबी सम्भाला।
‘गद्दार’ की बात पर उठे विवाद के बाद मंगलवार को पहली बार जयपुर के कांग्रेस वार रूम में भारत-जोड़ोयात्रा की तैयारी बैठक में गहलोत-पायलट के बीच नमस्कार हुई। इसके बाद वेणुगोपाल ने पहले बंद कमरे मेंदोनों को मिलवाया, फिर मीडिया के सामने गहलोत-पायलट के हाथ खड़े करवाकर कहा- “दिस इज राजस्थानकांग्रेस।” हम पूरी तरह एक हैं।
दरअसल इस लड़ाई की शुरुआत सचिन पायलट ने जुलाई 2020 में पार्टी से बगावत कर अपने समर्थकविधायकों के साथ हरियाणा के एक पाँच सितारा होटल में रहने के साथ की थी। गहलोत ने भी अपने समर्थकविधायकों के साथ 34 दिनों तक होटलों में बाड़ाबंदी की थी। इसके बाद सोनिया गाँधी प्रियंका और राहुलगाँधी के बीच बचाव से अगस्त 2020 में सुलह हुई और पायलट को छोड़ उनके समर्थक विधायक पुनःमंत्री बनेलेकिन गाहें बहायें आपसी कलह चलती रहीं और कोई भी पक्ष जब भी मौक़ा मिलता था तब एक दूसरे परव्यंगबाण छोड़ने से नही चुके। गहलोत के पच्चास वर्षों के राजनीतिक जीवन में पहली बार उनके पिछलें चारवर्ष लगातार तनाव और दोहरी तिहरी चुनौतिपूर्ण जिम्मदारियों से भरें रहें लेकिन उन्होंने लोक कल्याणकारीयोजनाओं के लिए अपनी सरकार का ख़ज़ाना खोल जनता की वाहवाही लूटी।
सचिन पायलट ने जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मानगढ़ में अशोक गहलोत की तारीफ़ करने पर गहलोत पर गुलाम नबी आजाद का उदाहरण देते हुए ताना कसा तो गहलोत बहुत ही पीड़ा और उद्वेग से भर उठें। बार-बारदिल्ली पहुँच उनकी शिकायत और आलाकमान एवं मीडिया को भड़काने की सूचनाओं से वे इतने भर गए किप्रायः शिष्टताओं का पालन करने वाले नेता के रूप में जाने वाले गहलोत का दर्द सार्वजनिक रूप से फूट पड़ा।कई नेताओं को इस पर विस्मय भी हुआ लेकिन उनकी सिद्धान्तों पर आधारित लड़ाई और तर्कों को किसी नेनकारा भी नही। क़रीब 102 विधायकों को मुश्किल समय में अपना समर्थन देने का वायदा निभाने के लिएउन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद भी त्यागा और सोनिया गांधी से माफ़ी भी माँगी।
मंगलवार को सचिन से हुई सुलह के बाद अशोक गहलोत ने कहा कि आजादी के पहले और बाद में हमारी पार्टीकी सबसे बड़ी खूबी यह रही है कि हमारे यहाँ जो नंबर वन नेता होता है, उसके डिसिप्लिन में पार्टी चलती है।उनके कहने के बाद में कोई गुंजाइश रहती नहीं है। राहुल गांधी ने कह दिया तो हम सब एसेट ही हैं।
वेणुगोपाल के अनुसार अशोक गहलोत और सचिन पायलट राहुल की राजस्थान में एक पखवाड़ा से अधिक समय तक चलने वाली यात्रा तक ही नहीं, अगले वर्ष होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव तक एकजुट होकर काम करेंगे। हमारे नेता राहुल गांधी ने भी साफ कर दिया है कि गहलोत और पायलट दोनों पार्टी के लिए एसेट हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अब यह देखना होगा कि गहलोत पायलट की यह सुलह आगे कितनेदिनों तक चलेगी और राजस्थान में बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा के चुनाव जीतने की परम्परा को क्या यहजोड़ी तौड पायेंगी? अथवा पार्टी की कलह वर्तमान में वसुन्धरा राजे के नेतृत्व से विहीन कमजोर भाजपा को भी पुनः सत्ता में आने का अवसर दे देंगी।