भारतीय राजनीति में पदयात्रा की सामयिकी

प्रो. नीलम महाजन सिंह

पिछले कुछ महीनों से, राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ों यात्रा’ काफी चर्चा का विषय रही है। प्रधान मंत्री राजीव गांधी के साथ मेरे आत्मिक संबंध होने के कारण मैं प्रत्यक्ष रूप से राहुल पर टिप्पणी करना पसंद नहीं करती, क्योंकि मुझे एहसास है कि उन्हें अपने पिता के साथ बहुत लगाव है। क्योंकि अब ‘भारत जोड़ों यात्रा’, केरल से आरंभ हो कर अपने अंतिम चरण पर है, इसलिए इसके विश्लेषण का औचित्य है। कॉंग्रेस में ही अनेक पदयात्रायें हुईं, फ़िर मीडिया राहुल की यात्रा को एकतरफ़ा क्यों दिखा रहा है? मैं जयराम रमेश, कॉंग्रेस मीडिया प्रमुख से परिचित हूं, काफी रसूखदार हैं। कॉंग्रेस ने ग्राफिक्स, सोशल मीडिया, एडवर्टाइजिंग, अखबारों में इश्तेहार आदि द्वारा, हर प्राचार् माध्यम का प्रयोग किया है। मुझे शीर्षक कुछ अजीब सा लगा। क्या भारत ‘टूट कर टुकड़े-टुकड़े’ हो गया है जोकि उसे जोड़ने की आवश्यकता है? धार्मिक व सामाजिक ध्रुवीकरण तो हर सरकार मैं होता रहा है।

भारतीय राजनीति में पदयात्रा का समीकरण समझना आवश्यक है। मार्च 1930 में महात्मा गांधी की ऐतिहासिकदांडी यात्रा, 240 किलोमीटर के बाद, जनता का समर्थन हासिल करने और समृद्ध राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए पदयात्राओं को एक शक्तिशाली मंत्र के रूप में इस्तेमाल करने में कामयाब हुई। महात्मा गांधी और उनके 78 अनुयायी 12 मार्च, 1930 को नमक पर कर लगाने के विरोध में ‘नमक सत्याग्रह’ के हिस्से के रूप में दांडी के तटीय गांव के लिए पैदल निकले। वह 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे। अगले दिन, उन्होंने समुद्र के किनारे अवैध रूप से नमक बनाया और अपने हजारों अनुयायियों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। प्रतिशोध में, ब्रिटिश सरकार ने महीने के अंत तक 60,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि मार्च को अंग्रेजों से कोई बड़ी रियायत नहीं मिली, इसने जल्दी से एक सामूहिक सत्याग्रह और अंततः सविनय अवज्ञा आंदोलन को जन्म दिया। चंद्रशेखर जी ने 6 जनवरी, 1983 को जनता के साथ नए सिरे से संबंध बनाने और “देश को बेहतर तरीके से जानने” के लिए अपनी मैराथन पदयात्रा शुरू की। एक “यंग तुर्क” का लेबल लगाते हुए, उन्होंने दावा किया कि उनकी यात्रा ने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को झकझोर कर रख दिया था। राहुल गांधी ने जब ग्रेटर नोएडा में भट्टा-पारसौल से अलीगढ़ तक 105 किलोमीटर के मार्च पर निकले, तो उनका कहना था कि उन्होंने भूमि अधिग्रहण को लेकर मायावती सरकार द्वारा किसानों पर किए गए ‘अत्याचार’ के खिलाफ बोलने के लिए यात्रा शुरू की थी। राजनीतिकं पंडित उनके विचार में एकजुट हैं कि राहुल ने यात्रा की शुरुआत 2012 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए और कुछ हद तक निष्क्रिय राज्य कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए की थी। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सबसे अधिक सीटें – 80 – लोकसभा में भेजता है और इसलिए, यदि कांग्रेस 2014 के आम चुनावों में जीत हासिल करना चाहती है तो यह राज्य अत्यधिक महत्व रखता है। ममता बनर्जी ने 2011 के पश्चिम बंगाल चुनावों के लिए पैदल प्रचार किया।

तृणमूल अध्यक्ष ने बाद में इसी तरह की पदयात्रा में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के निर्वाचन क्षेत्र जादवपुर का दौरा भी किया था। अपने मतदाताओं के साथ अपने जुड़ाव के कारण, ममता दीदी की तृणमूल ने सीपीएम को चुनावों में हरा दिया और उन्होंने बुद्धदेव को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया। वाई. एस. राजशेखर रेड्डी ने 2004 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले अपने मतदाताओं को प्रेरित करने और राज्य कांग्रेस मशीनरी में जान फूंकने के लिए पद यात्रा की। लोगों से जुड़ना ज़ाहिर तौर पर वाईएसआर के लिए अच्छा रहा। कुछ महीने बाद जनवरी 2004 में राज्य विधानसभा चुनाव हुए। उन्होंने कांग्रेस को शानदार जीत दिलाई और मई 2009 में मुख्यमंत्री के कार्यालय में प्रवेश किया। पदयात्रा, एक राजनीतिक उपाय के रूप में, 1990 के दशक में रथ यात्रा से आगे निकल गई थी। भाजपा के एल.के. आडवाणी, इसके बारे में गांधीवादी नहीं थे – टोयोटा मोटर्स चालित रथ ने भारत की राजनीति ही बदल दी। कुछ समय के लिए तो ऐसा लगा मानो सारथी पदयात्राओं को फैशन से बाहर कर देंगे। यह 1990 में था जब ला लाल कृष्ण आडवाणी ने राम जन्मभूमि आंदोलन के बारे में राष्ट्र को शिक्षित करने के लिए रथ यात्रा शुरू की थी। यात्रा ने घटनाओं की एक श्रृंखला को उत्प्रेरित किया जिसके परिणामस्वरूप दो साल बाद बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। उन्होंने गुजरात के सोमनाथ से यात्रा की शुरुआत की थी, लेकिन अयोध्या से ठीक पहले उन्हें, बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया था। हालाँकि, रथ यात्रा ने भारत का ध्रुवीकरण करने में कामयाबी हासिल की। 1987 में पंजाब में हुए दंगों के कारण हुई उथल-पुथल से परेशान होने के बाद, “देश की अंतरात्मा को जगाने” के लिए सुनील दत्त अपने मुंबई स्थित घर से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर तक पैदल गए। उनके साथ उनकी बेटी प्रिया दत्त और 80 से अधिक अन्य समर्थक थे। दत्त के इरादे नेक थे और बाद के आम चुनावों में उन्हें इसका पुरस्कार मिला। दिवंगत एन.टी. रामा राव, तेलुगु देशम पार्टी शुरू करने के तुरंत बाद, 1982 में चैतन्य रथम यात्रा शुरू की शुरुआत की। यात्रा ने उन्हें सत्ता में पहुँचाया और वे 9 जनवरी, 1983 को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अभिनेता से नेता बने अभिनेता ने लगभग 40,000 किलोमीटर की यात्रा की, नौ महीनों में चार बार राज्य का दौरा किया और जनवरी 1983 तक घर नहीं लौटे।

1991-92 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक ‘राष्ट्रीय एकता यात्रा’ निकाली। अलगाववादी के विरोध को बताते हुए, उन्होंने 26 जनवरी, 1992 को पहली बार लाल चौक पर तिरंगा फहराया। ध्वजारोहण समारोह ठीक 13 मिनट तक चला। पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार ने संवेदनशील समारोह के लिए सुरक्षा प्रदान की। ध्वजारोहण के लिए सुरक्षा एजेंसी ने चेतावनी दी थी तथा जम्मू कश्मीर के राज्यपाल, गिरीश चंद्र सक्सेना, ने केंद्र को इस जत्थे को भेजने के लिए मना किया था। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, कृष्ण लाल शर्मा और मुरलीधर मनोहर जोशी ने सेना की मौजूदगी में तिरंगा लहराया। साथ ही आतंकवादियों की गोलियां भी चल रहीं थीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक; के. एस. सुदर्शन ने शीघ्र ही मुरली मनोहर जोशी को भाजपा के अध्यक्ष पद से हटा दिया। भाजपा युवा विंग के प्रमुख व तत्काल सूचना एवं प्रसारण मंत्री, अनुराग ठाकुर ने 12 जनवरी, 2011 को कोलकाता से लाल चौक, श्रीनगर में 26 जनवरी को तिरंगा फहराने के लिए एकता यात्रा-द्वितीय को झंडी दिखाकर रवाना किया। दो सप्ताह की लंबी यात्रा ने नौ राज्यों से होकर 3,037 किलोमीटर की दूरी तय की। लेकिन ठाकुर और उनके साथियों को लखनपुर में जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने के तुरंत बाद रोक दिया गया और राज्य सरकार द्वारा लगाए गए “निषेधात्मक आदेशों” की अवहेलना करने के लिए सीआरपीसी की धारा 144 के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। खैर, ऐसे अनेक उदाहरण है। अंततः सारांश में ये कहना उचित होगा कि हर पदयात्रा का एक उद्देश्य होता है। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ों यात्रा’ को राजनीतिक प्रतिद्वंदी ‘कॉंग्रेस जोड़ो यात्रा’ का नाम दे रहें हैं! अच्छा होगा यदि राहुल गांधी आत्मचिंतन करें तथा कांग्रेसी चाटुकारों से बच कर रहें। राहुल गांधी की इस यात्रा ने उन्हें काफी राजनैतिक ख्याति तो प्रदान की है, परंतु क्या ‘भारत छोड़ो यात्रा’ कॉंग्रेस को पुनर्जीवित करने में मदद करेगी, ये तो समय ही बतायेगा? राजनीतिक विचारों में विभिन्नता ही उत्कृष्ट प्रजातंत्र का मूल आधार है। जनता के मुद्दे और सरकार के समक्ष प्रश्नावली ही जनहित प्रदान करेगी।

(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)