
नृपेन्द्र अभिषेक नृप
क्रिकेट सिर्फ़ एक खेल नहीं, भावनाओं का महासागर है और जब बात भारतीय क्रिकेट की हो, तो यह महासागर कई अनकहे जज़्बातों और अधूरी कहानियों से भरा होता है। ऐसे ही एक खामोश किनारे का नाम है रोहित शर्मा। सीमित ओवरों के क्रिकेट में जहां वे ‘हिटमैन’ बनकर चमके, वहीं टेस्ट क्रिकेट की ऊबड़-खाबड़ राहों पर उनका सफर किसी अधूरे गीत की तरह प्रतीत होता है। प्रतिभा, तकनीक और सौंदर्य से भरपूर बल्लेबाज़ी के बावजूद, उनके टेस्ट करियर की राह बाधाओं, चोटों और असंगत लय से भरी रही। एक ओर जहाँ उनके स्ट्रोक्स में क्लासिक बैटिंग की झलक थी, वहीं दूसरी ओर निरंतरता की कमी ने उनकी महानता को सीमित कर दिया।
2023 में न्यूजीलैंड द्वारा भारत को घरेलू धरती पर टेस्ट सीरीज में क्लीन स्वीप करने के बाद ऐसा प्रतीत होने लगा कि रोहित शर्मा के टेस्ट कप्तान के रूप में दिन गिनती के रह गए हैं। उनके व्यक्तिगत प्रदर्शन में गिरावट ने इस विदाई को और भी शीघ्र कर दिया। सीमित ओवरों के क्रिकेट में वह निर्विवाद प्रतिभा के प्रतीक रहे वनडे क्रिकेट के सम्राट, टी-20 के नवाब लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उनकी पहचान आम बनी रही। 110 टेस्ट पारियों में 40.57 की औसत से 4,301 रन और 12 शतक, ये आँकड़े उनके जादुई कौशल की तुलना में फीके पड़ जाते हैं।
रोहित शर्मा का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आगमन एक अद्भुत क्षण था। उन्होंने जब पहली बार सफेद गेंद से विश्व मंच पर कदम रखा, तब उन्हें मुंबई स्कूल ऑफ बैटिंग का नया मशालधारी माना गया। यह वह परंपरा थी जिसे विजय मर्चेंट, सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गजों ने गढ़ा था। परंतु रोहित उस परंपरा को टेस्ट क्रिकेट में निखार नहीं सके। चोटों के कारण उनका टेस्ट पदार्पण टलता रहा और जब उन्होंने देर से टेस्ट क्रिकेट में कदम रखा, तब तक वह सीमित ओवरों में एक स्थापित सितारा बन चुके थे। यदि वह अपनी क्षणिक सफलताओं को सतत प्रदर्शन में बदल पाते, तो शायद वह टेस्ट क्रिकेट में भी विराट कोहली के समकक्ष होते।
उनके बल्लेबाज़ी शॉट्स में जो लालित्य था, वह दुर्लभ था। क्लासिक स्ट्रोक्स, गेंद की लंबाई को पढ़ने की विलक्षण क्षमता, और विभिन्न पिच व परिस्थिति में ढलने की सहजता, यह सब उन्हें महान बनाता। लेकिन यह सारी क्षमता टेस्ट क्रिकेट में कुछ क्षणों तक सीमित रही। उनका टेस्ट करियर हमेशा अधूरा लगा जैसे किसी अनमोल कविता की पंक्तियाँ अधूरी रह गई हों।
उनकी कप्तानी भी इस कथानक का अहम हिस्सा रही। जब उन्होंने टेस्ट टीम की कमान संभाली, तब उनसे विराट कोहली जैसी प्रेरणा और अग्नि की उम्मीद की गई। लेकिन रोहित का स्वभाव अलग था। विराट जहाँ जुनून की आग थे, वहीं रोहित बर्फ की तरह शांत थे। उनकी भावनाएं अक्सर छुपी रहतीं, नेतृत्व शैली में अधिक विनम्रता और कम आक्रामकता दिखती। उनके नेतृत्व में भारत ने इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध घरेलू जीत दर्ज कीं, लेकिन विदेशी धरती पर वह सफलता नहीं दोहरा सके। यही वह बिंदु था जहाँ उनकी कप्तानी की सीमाएँ स्पष्ट हुईं। कोहली जहाँ खिलाड़ियों में लड़ने की भूख जगाते, वहीं रोहित का तरीका अधिक सहिष्णु और अनौपचारिक था।
2023 विश्व कप में उनकी कप्तानी में भारत ने फाइनल तक का सफर तय किया और एक भी मैच नहीं हारा। उन्होंने टी-20 टीम को नया रूप दिया, और 27 वर्षों बाद उसे फिर से शिखर पर पहुँचाया। यह सफेद गेंद के क्रिकेट में उनकी योग्यता का प्रमाण था। लेकिन टेस्ट में यह सफलता नहीं दोहराई जा सकी। कोहली के तीव्र नेतृत्व के सामने रोहित की ठंडी प्रतिक्रिया अक्सर आलोचकों के लिए चर्चा का विषय बनी रही।
इस पूरी यात्रा में एक “सेमी-ट्रैजिक” भाव था, एक ऐसी त्रासदी जो पूर्ण नहीं थी, लेकिन दिल को कहीं न कहीं खलती जरूर थी। ऐसा नहीं कि रोहित शर्मा टेस्ट में असफल रहे, बल्कि यह कि वह अपने संपूर्ण सामर्थ्य का प्रदर्शन नहीं कर पाए। जिन क्षणों में उन्होंने चमक दिखाई, उनमें ऐसा लगा कि वह सचमुच इस फॉर्मेट में भी राज कर सकते थे। लेकिन फिर या तो चोटें आ गईं, या आत्मविश्वास डगमगा गया, या फिर समय ने उन्हें अन्य रास्तों पर मोड़ दिया।
यह भी सत्य है कि विराट कोहली से तुलना अनिवार्य हो गई थी। कोहली ने टेस्ट क्रिकेट को एक ऊँचाई दी, एक क्रांति की तरह नेतृत्व किया। उनके चेहरे पर आक्रोश, आँखों में चुनौती, और मांसपेशियों में जुनून दिखाई देता था। रोहित इसके विपरीत शांति, संयम और सहजता का प्रतिनिधित्व करते थे। जहाँ कोहली अपने दांत भींचकर सफलता की चोटी चढ़ते, वहीं रोहित यात्रा के मध्य में ही पहाड़ की तलहटी में लौट आते।
सम्भवतः यही वह द्वंद्व है, जिसने रोहित शर्मा की टेस्ट यात्रा को “अधूरी प्रतिभा” की संज्ञा दी। वे एक क्लासिक कलाकार रहे जो अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनी कभी नहीं कर पाया। पर क्या हमें उनके टेस्ट करियर को केवल अधूरेपन के चश्मे से देखना चाहिए? शायद नहीं। हर खिलाड़ी का अपना समय, अपनी सीमाएँ और अपना स्वभाव होता है। रोहित शर्मा ने जो दिया, वह अनमोल है, भले ही वह संपूर्ण न हो।
उनकी विदाई उस सादगी के साथ हुई जो उनके व्यक्तित्व का हिस्सा रही। कोई बड़ी घोषणा नहीं, कोई आक्रोश नहीं बस एक शांत प्रस्थान। और यह शायद उनके टेस्ट करियर का सबसे सुंदर पक्ष भी है एक मूक, पर भावनाओं से भरी विदाई।