आखिर मुर्शिदाबाद हिंसा और हिन्दू पलायन का जिम्मेदार कौन ?

After all, who is responsible for Murshidabad violence and Hindu migration?

अमित कुमार अम्बष्ट ” आमिली “

वक्फ संशोधन बिल, 2025, पक्ष-विपक्ष की तीखी बहस और संसद के दोनों सदनों में मतदान के बाद पास हो गया l दिनांक 5 अप्रैल 2025 को महामहिम राष्ट्रपति के दस्तख़त के बाद अब ये संशोधित बिल कानून बन चुका है, केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल 2025 को इसकी अधिसूचना जारी कर दी, इस बिल के संवैधानिक तौर पर पास होने और कानून में तबदील होने के बावजूद देश के कुछ इलाकों में इसका विरोध हुआ, जो लाजिमी भी था ,लेकिन जिस तरह से पश्चिम बंगाल के कुछ इलाके और खासकर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसा भड़की, तकरीबन 500 हिन्दू परिवारों को अपना घर छोडकर पलायन करना पड़ा और तकरीबन 200 घर जला दिए गए, इससे कई सवाल खड़े होते हैं l क्या केंद्र सरकार ने वक्फ बिल के संशोधन में संविधान की अनदेखी की है ? या फिर पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार ने अपने वोट बैंक को एकजुट रखने के लिए इस हिंसा को हवा दी है ? आखिर मुर्शिदाबाद हिंसा और हिन्दू पलायन का जिम्मेदार कौन है ?

उपरोक्त तीनों ही सवाल के उत्तर हेतु बारीकी से समझने की जरूरत है कि वक्फ क्या है ? वक्फ का इतिहास क्या है ? केंद्र सरकार ने क्या-क्या संशोधन किया है ? क्या इस संशोधन में मुस्लिम समुदाय को कोई खतरा है? या फिर इस संशोधन से मुस्लिम समुदाय को कोई लाभ होने वाला है ? क्या उच्चतम न्यायालय को इसकी सुनवाई का अधिकार है ? और अगर मामला कोर्ट में लंबित है तो भी हिंसात्मक विरोध का जिम्मेदार कौन है ?

वक्फ क्या है ?

वक्फ एक इस्लामी ट्रस्ट है जहाँ कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को किसी धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्य के लिए दान करता है, जैसे कि मस्जिद, स्कूल, अस्पताल, या गरीबों की मदद आदि ,वक्फ बोर्ड वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करता है, जो कि चल या अचल संपत्ति हो सकती है। यह सुनिश्चित करता है कि संपत्ति का उपयोग वक्फ के नियमों के अनुसार किया जाए और इसका उपयोग धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाए l

अगर वक्फ बोर्ड की संरचना की बात करूँ तो देश के प्रत्येक राज्य में एक वक्फ बोर्ड होता है, जिसका नेतृत्व एक अध्यक्ष करता है. बोर्ड में राज्य सरकार, मुस्लिम विधायक, सांसद, राज्य बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामी विद्वान और वक्फ के मुतवल्ली (प्रबंधक) शामिल होते हैं।

वक्फ बोर्ड की अगर भूमिका की बात करूँ तो वक्फ बोर्ड वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण, प्रबंधन और संरक्षण करता है. यह वक्फ संपत्तियों को बेच या पट्टे पर नहीं दे सकता है l

वक्फ बोर्ड का इतिहास

  • वक्फ बोर्ड के अगर इतिहास की बात करूँ तो 1913 में
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड की औपचारिक स्थापना हुईं थीं, 1923 में वक्फ अधिनियम को कानूनी रूप से मान्यता दी गई, लेकिन आजादी के बाद 1954 में
  • वक्फ अधिनियम के तहत राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना हुई तथा 1964 केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना हुई l
  • 1995 में वक्फ अधिनियम में संशोधन और बोर्ड को अधिक अधिकार दिए गए , आखिरी बार अब से पहले
  • 2013 वक्फ अधिनियम में संशोधन हुआ था l
  • लेकिन , फिर सवाल उठता है कि वक्फ बोर्ड अधिनियम में ऐसा क्या था कि केंद्र सरकार को इसे संशोधित करने की जरूरत पर गई l पुराने वक्फ कानून और ताजा संशोधन के बाद दोनों में मुख्य अंतर क्या हैं ?

पुराने और संशोधित वक्फ कानून में अंतर

संशोधन के बाद वक्फ के सर्वेक्षण और पंजीकरण के तरीके में बदलाव आया है, पहले वक्फ बोर्ड के पास संपत्ति की जांच और निर्धारण का अधिकार था, लेकिन अब यह अधिकार जिला कलेक्टर को दिया गया है, अब वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण और पंजीकरण एक व्यवस्थित प्रक्रिया के तहत किया जाएगा , पहले वक्फ बोर्ड में गैर- मुस्लिम और महिलाएं नहीं शामिल हो सकती थी अब गैर-मुस्लिम और महिलाओं को भी शामिल किया गया है , वक्फ की थोड़ा अलग ढ़ंग से परिभाषित किया गया है, पहले वक्फ संपत्ति के मालिक पर यह केंद्रित था लेकिन, अब यह वक्फ संपत्तियों के उपयोग पर जोर देता है, किसी सम्पत्ति विवाद की स्थिति मे पहले न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमती नहीं थी, लेकिन अब संपत्ति विवादों में न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति दी गई है । इतना ही नहीं इस संशोधन ने “उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ” की अवधारणा को समाप्त कर दिया है, जिसका अर्थ है कि वक्फ की संपत्ति को केवल वक्फ बोर्ड की घोषणा या बंदोबस्ती के माध्यम से ही वक्फ के रूप में घोषित किया जा सकता है,
वक्फ न्यायाधिकरणों की संरचना में भी बदलाव किया गया है, जिसमें अब प्रत्येक न्यायाधिकरण में एक जिला न्यायाधीश, राज्य सरकार का एक अधिकारी और एक मुस्लिम कानून विशेषज्ञ शामिल होगा l

वक्फ कानून में संशोधन की आवश्कता

वक्फ कानून की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि वक्फ बोर्ड को जो असीमित अधिकार दिए गए थे उसका दुरुपयोग लगातार दूसरों की सम्पत्ति हथियाने तथा चंद लोगों द्वारा पैसा बनाने में किया जाने लगा, जिससे आम गरीब मुस्लमान इसके लाभ से वंचित रहे, अगर आज की तारीख में वक्फ की सम्पत्ति की बात करें तो उसके पास कुल 8 लाख 72 हजार 804 अचल संपत्तियां हैं , इसमें 9.4 लाख एकड़ जमीन है, इसके अलावा 16716 चल संपत्तियां हैं , कब्रिस्तान के नाम पर वक्फ के पास डेढ़ लाख संपत्तियां हैं और मस्जिद के नाम पर 1.19 लाख संपत्तियां दर्ज जबकि आजादी के समय केवल 50 हजार एकड़ थी l
एक बड़ी समस्या ये थी कि वक्फ जिस जमीन को अपना कह देता था, उसके जांच का अधिकार देश के न्यायालय को भी नहीं था, अगर वक्फ बोर्ड किसी जमीन को वक्फ की जमीन घोषित कर देता था तो जमीन के मालिक को यह साबित करना होता था कि जमीन उसकी है, वो भी किसी आम न्यायालय में नहीं अपितु वक्फ बोर्ड के अधिकृत न्यायालय में ही साबित करना होता था जो लगभग नामुमकिन जैसा था l वक्फ बोर्ड में किसी गैर मुस्लिम को शामिल होने की अनुमति नहीं होने के कारण सम्पत्ति विवाद की स्थिति में उनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं था, जिससे वक्फ बोर्ड की मनमानी चलती थी, क्योंकि जिला कलेक्टर और देश के न्यायालय को भी हस्ताक्षेप का अधिकार नहीं था, इन सबके अतिरिक्त सबसे बड़ी बात यह थी कि इस बोर्ड पर माफियाओं का कब्जा हो गया था, जिससे इसका लाभ मुसलमानों को भी नहीं हो रहा था, कह सकते है कि वक्फ अपने उदेश्य से ही भटक गया था l इसलिए वक्फ कानून में संशोधन बेहद जरूरी था, क्योकि संशोधन के बाद इसमे पारदर्शिता आएगी जिसका लाभ मुस्लिम समाज को भी निश्चित तौर पर होगा l

संविधान सम्मत संशोधन और फिर दंगा

ऐसे में फिर सवाल उठता है कि वक्फ कानून में संशोधन संविधान के अनुसार हुआ है, संसद के दोनों सदनों ने चर्चा के बाद वोटिंग के पाश्चात्य , देश की राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर करके इसपर अपनी सहमति दी है, फिर देश के मुस्लिम बहुल हिस्से खासकर बंगाल से विरोध के स्वर क्यूँ उभर रहे हैं? किसी राज्य की सरकार को ऐसा कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है कि वो केंद्र द्वारा संवैधानिक रूप से किए गए किसी संशोधन को अपने राज्य में खारिज कर दे, फिर भी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह बयान कि संशोधन को बंगाल में लागू नहीं होने देंगे, सरासर न सिर्फ अपना वोट बैंक साधने की कोशिश है अपितु दंगा के बीज़ मुस्लिम समुदाय के लोग के मन में बोये हैं, जिसका दुष्परिणाम ही है बंगाल के मुर्शिदाबाद में होने वाले मुस्लिम दंगा l
गौरतलब है कि मुर्शिदाबाद जिले के कई इलाकों में वक्फ कानून के विरोध में बीती 11-12 अप्रैल को हिंसा भड़क गई थी। ये हिंसा सुती, धुलियान और जंगीपुर इलाकों में हुई। इस हिंसा में तीन लोगों की मौत हुई और कई अन्य घायल हुए। धुलियान के मंदिरपाड़ा इलाके में कथित तौर पर कई महिलाओं का उत्पीड़न किया गया। हिंसा के चलते मुर्शिदाबाद में बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ।

हिंसा और हिन्दू पलायन का जिम्मेदार कौन ?

मामला अब उच्चतम न्यायालय में लंबित है, हालांकि संविधान ने कानून में संशोधन का अधिकार सिर्फ संसद को ही दिया है, न्यायालय को इसमें हस्ताक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है, माननीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनकर ने स्पष्ट शब्दों में न्यायालय को चेताया है, लेकिन, फिर भी ये एक अलग विषय है, विपक्ष न्यायालय के शरण में गया है और मामला लंबित है , ऐसे में राज्य सरकार उग्र हिंसक प्रदर्शन को हवा देती है , हालत इतनी गंभीर हो जाती है कि कोलकाता उच्च न्यायालय को पश्चिम बंगाल के हिंसा प्रभावित मुर्शिदाबाद जिले में केंद्रीय बलों की तैनाती जारी रखनेहका आदेश देना पड़ता है, यह भी सुझाव देना पड़ता है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, पश्चिम बंगाल राज्य मानवाधिकार आयोग और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से एक-एक सदस्य वाला पैनल हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करे ।

इतना ही नहीं मुख्यमंत्री के मना करने के बावजूद पश्चिम बंगाल के गवर्नर सीवी आनंद बोस मालदा जाते हैं, राज्यपाल के पीछे-पीछे राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम भी मालदा और मुर्शिदाबाद में भड़की हिंसा का मुआयना करने पहुंचती है, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम भी मुर्शिदाबाद में हिंसाग्रस्त इलाकों का दौरा करती है तथा सभी अपने – अपने रिपोर्ट में बंगाल सरकार को कटघरे में खड़ा करते हैं तो निश्चित तौर पर मुर्शिदाबाद हिंसा और हिन्दू पलायन की जिम्मेदारी पश्चिम बंगाल सरकार की ही बनती है l