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इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस में पिछले कुछ वर्षों से कमिश्नर के पद पर ऐसे आईपीएस अफसर तैनात किए जा रहे हैं जो पेशेवर रुप से कमजोर/दब्बू और नाकाबिल साबित होते है। ऐसे कमिश्नरों के कारण ही न केवल दिल्ली पुलिस की बल्कि आईपीएस जैसी प्रतिष्ठित सेवा की छवि भी खराब होती है। ऐसे कमिश्नरों के कारण ही बेईमान पुलिसकर्मी निरंकुश हो जाते है और अपराध और अपराधियों पर अंकुश भी नहीं लग पाता है। लगता है अब काबिल और दमदार आईपीएस अफसरों का अकाल पड़ गया है।
अजय राज नंबर वन –
लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर ऐसे काबिल और दमदार आईपीएस भी रहे। जिनकी काबिलियत, दबंगता, दमदार नेतृत्व और निर्णय क्षमता, कुशल प्रशासन की आज भी मिसाल दी जाती है।
पिछले तीन दशकों में अगर 2-3 बेहतरीन कमिश्नरों की गिनती की जाए, तो उनमें नंबर वन पर अजय राज शर्मा हैं।
साल 1999 से 2002 तक दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर रहे दबंग और काबिल अजय राज शर्मा का 10 फरवरी 2025 को बीमारी के कारण निधन हो गया।
आईपीएस के 1966 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के अजय राज़ शर्मा के कर्तव्य पालन के उदाहरणों से उनकी पेशेवर काबिलियत और दबंगता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
दमदार कमिश्नर –
अजय राज शर्मा ने ही दो डीसीपी को जिले से तुरन्त हटाने की हिम्मत दिखाई थी। दिल्ली पुलिस के इतिहास मेंं शायद ही ऐसी दूसरी कोई मिसाल हो जिसमें भ्रष्टाचार और पेशेवर लापरवाही/ संवेदनहीनता पर दो डीसीपी/आईपीएस को जिले से तुरंत हटाया गया।
दो डीसीपी को हटाया –
उत्तरी पश्चिमी जिला के तत्कालीन डीसीपी सत्येंद्र गर्ग द्वारा माडल टाऊन के बिजनेसमैन सुशील गोयल की पत्नी से लाखों रुपए मूल्य की विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने का भ्रष्टाचार का अनोखा मामला इस पत्रकार द्वारा 1999 में उजागर किया गया। कमिश्नर अजय राज़ शर्मा ने तुरंत डीसीपी सत्येंद्र गर्ग को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया।
मध्य जिला के तत्कालीन डीसीपी मुक्तेश चंद्र द्वारा बलात्कार पीड़िता विदेशी युवतियों को मीडिया के सामने पेश करने पर इस पत्रकार ने सवाल उठाया था। कमिश्नर अजय राज़ शर्मा ने इस मामले में भी मुक्तेश चंद्र को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया।
काला दिन- सीबीआई ने आईपीएस जे के शर्मा के यहां छापे मारी की थी, उस समय अजय राज़ शर्मा ने मीडिया में खुल कर कहा कि आज़ का दिन पुलिस के लिए काला दिन है। आईपीएस अफसरों द्वारा तबादले के साथ ही अपने निजी स्टाफ यानी चहेते पुलिस कर्मियों को भी साथ ले जाने पर भी अजय राज शर्मा ने अंकुश लगाया था।
संसद पर हमला, बौखलाए नहीं –
झपटमारी/लूट की वारदात होने पर ही जब आईपीएस अफसर वारदात दर्ज न करने या खबर दबाने की नीयत से मीडिया का सामना करने से घबराते या बौखलाते हैंं। पत्रकार का फोन तक नहीं उठाते है। अजय राज ऐसे पुलिस कमिश्नर थे, जो आतंकी हमले के दौरान भी बिना विचलित हुए पत्रकार से बात करने का दम रखते थे।
संसद पर आतंकवादी हमला (13 दिसंबर 2001)होने की सूचना मिलते ही इस पत्रकार ने कमिश्नर अजय राज शर्मा को मोबाइल पर फोन किया। फोन मिलाते समय ही यह ख्याल आया था, कि ऐसे समय मेंं जब संसद पर हमला हो रहा है, वह फोन नहीं उठाएंगे। लेकिन अजय राज शर्मा ने फोन रिसीव किया और बिल्कुल ही सहज शांत भाव से आतंकी हमले की पुष्टि की और बताया कि वह अभी संसद भवन जाने के लिए रास्ते मेंं ही हैं। आतंकी हमले जैसे संकट के समय भी इस तरह का व्यवहार ही उनकी पेशेवर काबिलियत दिखाता है।
लालकिले पर आतंकी हमला(22 दिसंबर 2000) भी अजय राज के समय मेंं ही हुआ और दोनों मामलों को पुलिस ने सुलझा भी लिया।
सिफारिश के बाद भी एसएचओ नहीं लगाया–
केशव पुरम थाना इलाके में टीवी के डिब्बे मेंं एक युवक की लाश मिली थी। हत्या का मामला दर्ज करने की बजाए पुलिस ने लावारिस के रुप मेंं शव का अंतिम संस्कार कर दिया। इस मामले को इस पत्रकार द्वारा उजागर किया गया। अजय राज शर्मा ने केशव पुरम एसएचओ प्रदीप कुमार और चौकी इंचार्ज राज सिंह को निलंबित कर दिया। इस मामले से साबित हुआ कि पुलिस अपराध कम दिखाने के लिए हत्या के मामले भी दर्ज नहीं करती। दोबारा एसएचओ लगने के लिए प्रदीप कुमार ने कमिश्नर अजय राज शर्मा को कई बार सिफारिश करवाई। लेकिन अजय राज ने उसे साफ कह दिया कि तुम्हें दोबारा लगाया तो सान्ध्य टाइम्स मेंं फिर खबर छप जाएगी।
इससे पता चलता है कि कमिश्नर/ आईपीएस की नीयत अगर सही है और वह गलत काम करने वाले अफसर को थाने में तैनात नहीं करना चाहते, तो वह मीडिया का भय दिखा कर भी ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन कर सकते हैं। आजकल तो हालात यह है कि खबर के आधार पर दोषी पुलिस अफसर के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए पोल खोलने वाले पत्रकार को ही आईपीएस द्वारा दुश्मन की तरह देखा/ समझा जाता है।
पत्रकार को फंसाया-
कमिश्नर अजय राज शर्मा और तत्कालीन स्पेशल कमिश्नर कृष्ण कांत पॉल को कश्मीर टाइम्स के पत्रकार इफ्तिखार गिलानी को देशद्रोह के झूठे मामले मेंं गिरफ्तार करने के लिए भी याद रखा जाएगा। स्पेशल सेल ने इफ्तिखार को गिरफ्तार किया था।
अदालत मेंं सेना के वरिष्ठ अफसर ने ही पुलिस की पोल खोल दी। सेना के अफसर ने कहा कि गिलानी से बरामद दस्तावेज गोपनीय और देश की सुरक्षा से संबंधित नहीं है। पुलिस की पोल खुली तो मुकदमा वापस लिया गया। लेकिन बेकसूर गिलानी को सात महीने जेल में सड़ना पड़ा।
भ्रष्ट आईपीएस की इज़्ज़त नहीं-
आईपीएस अफसरों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के बारे में अजय राज शर्मा ने कहा था कि क्या जरूरत है, अपने को इतना नीचे गिराने की, छोटे छोटे कर्मचारियों से पैसा ले रहे हो। भ्रष्ट आईपीएस को पुलिस फोर्स से कभी इज़्ज़त नहीं मिलेगी।
अजय राज शर्मा ने कहा था कि आईएएस, आईपीएस को इतनी तनख्वाह तो मिलती ही है, कि वह इज़्ज़त से रह सकते हैं और थोड़ा बहुत बचा भी सकते हैं। उन्हें वह रुतबा मिलता है जो बड़े बड़े बिजनेसमैन को भी नहीं मिलता है।
शानदार पारी- उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ के संस्थापक मुखिया के पद पर रहते हुए अजय राज शर्मा ने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त ऑपरेशन में कुख्यात अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला को 22 सितंबर 1998 को कथित एनकाउंटर में मार गिराया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में अनेक डाकुओं का भी सफाया अजय राज शर्मा के नेतृत्व में पुलिस ने किया।
अजय राज शर्मा दिल्ली पुलिस मेंं तीन साल की शानदार पारी के बाद साल 2002 में सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक बनाए गए। साल 2004 में वह बीएसएफ महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए।
(इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1989 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)