इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश गर्भपात कराना है या नहीं, यह महिला का एकाधिकार

Allahabad High Court orders that it is woman's monopoly whether to have abortion or not

संजय सक्सेना

लखनऊ : गर्भपात कराये जाने को लेकर महिलाओं के पक्ष में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने दो टूक कहा कि एक महिला स्वयं के निर्णय पर निर्भर करेगा कि उसे अपना गर्भपात करना है, अथवा बच्चे को जन्म देना है यानि गर्भपात नहीं कराना है। कोर्ट ने कहा यह किसी और को नहीं, बल्कि उसे ही तय करना है। यह मुख्य रूप से दैहिक स्वतंत्रता के स्वीकृत विचार पर आधारित है। यहां महिला की सहमति सर्वोच्च है। कोर्ट ने कहा दुष्कर्म पीड़िता 15 वर्षीय नाबालिग को यह स्वयं निर्णय करना होगा कि वह गर्भधारण रखना चाहती है अथवा गर्भपात कराना चाहती है।

इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति शेखर बी. सर्राफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने पीड़िता और उसके माता-पिता से परामर्श के बाद 32 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने से जुड़े जोखिमों पर विचार कर गर्भावस्था जारी रखने की अनुमति दे दी है।कोर्ट ने कहा, ‘भले ही वह (महिला) गर्भधारण करने और बच्चे को गोद देने का फैसला करती है, लेकिन राज्य का यह कर्तव्य है कि वह इसे सुनिश्चित करे कि यह काम यथासंभव निजी तौर पर किया जाए।

इसी के साथ सरकार यह भी सुनिश्चित करे कि बच्चा इस देश का नागरिक होने के नाते संविधान में निहित मौलिक अधिकारों से वंचित न हो। यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि गोद लेने की प्रक्रिया कुशल तरीके से की जाए और इसमें ‘बच्चे का हित सर्वोत्तम’ सिद्धांत का पालन किया जाए।’ इलाहाबाद कोर्ट के इस फैसले के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।