विधानसभाध्यक्ष की एक और ऐतिहासिक पहल – धूमधाम से मनाया जाएगा राजस्थान विधानसभा का अमृत महोत्सव

Another historic initiative of the Speaker of the Assembly - Amrit Mahotsav of Rajasthan Legislative Assembly will be celebrated with great pomp

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी आने वाले दिनों में एक और ऐतिहासिक पहल करने जा रहे है। अबकी बार देवनानी 2026- 27 में राजस्थान विधानसभा का भव्य अमृत महोत्सव मनाने की तैयारी कर रहे है तथा इसकी विस्तृत रूपरेखा बनाई जा रही है । राजस्थान में विधानसभा का गठन 1952 में हुआ था। 2026 में विधानसभा के 74 वर्ष पूरे होने के साथ ही राजस्थान विधानसभा अपने कार्यकाल के 75 वे वर्ष में प्रवेश करेगी। विधानसभाध्यक्ष देवनानी ने अगले वर्ष होने वाले राज्य विधानसभा के अमृत महोत्सव की तैयारियां शुरू कर दी है। बड़े पैमाने पर आयोजित होने वाले इस अमृत महोत्सव में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ,उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला तथा राज्यसभा के उप सभापति आदि को भी विशेष रूप से आमंत्रित किया जा सकता है। राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी इस मौके पर विशेष भूमिका में रहेंगे। देवनानी का प्रयास है कि इस अवसर पर सभी पूर्व विधानसभाध्यक्षों,उपाध्यक्षों एवं विधायकों को भी आमंत्रित किया जाए और उनका सम्मान भी किया जाए। विधानसभा के अमृत महोत्सव में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। देवनानी का प्रयास है कि इस अमृत महोत्सव के माध्यम से राजस्थान विधानसभा के इतिहास के बारे में आम लोगों को जानकारी दी जाए। विधानसभा के अमृत महोत्सव के माध्यम से राजस्थान के बेजोड़ इतिहास,अनूठी कला, संस्कृति और साहित्य आदि का प्रचार प्रसार भी हो सकेगा।

विधानसभाध्यक्ष देवनानी विधानसभा में जो नवाचार कर रहे है, उसकी चर्चा देश भर में हो रही है। देवनानी ने हाल ही विधानसभा परिसर में एक कारगिल शहीद वाटिका का निर्माण कर प्रदेश और देश भर का ध्यान आकर्षित किया है। इस वाटिका में कारगिल युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की स्मृति में 1100 पेड़ लगाए गए है। विधानसभा परिसर में बनाए गए म्यूजियम को देखने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों लोग आने लगे हैं। विधानसभा में बनाये गए सचित्र संविधान दीर्धा म्यूजियम और राजनैतिक आख्यान संग्रहालय आम जनों और पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। देवनानी का प्रयास है कि अब विधानसभा परिसर में संसद की तर्ज पर एक प्रेरणा स्थल भी बनाया जाए और उसमें राष्ट्रीय महापुरुषों के साथ राजस्थान के प्रमुख महापुरुषों की प्रतिमाओं को भी लगाया जाए। साथ ही उनका विधानसभा में महापुरुषों के तेल चित्र और उनके जीवन का संक्षिप्त विवरण भी लिखवाने का प्रयास भी है ताकि युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिल सके। देवनानी विधानसभा भवन में वर्षों से अनुपयोगी विधान परिषद हाल का सुधार कर उसे भी युवा संसद तथा अन्य विशेष कार्यक्रमों के लिए तैयार कराना चाहते है। विधानसभा के अंदर भी देवनानी ने सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक,सत्र चलने के दौरान प्रतिदिन लंच ब्रेक, विधानसभा को पेपर लेस बनाना, हर विधायक की सीट पर कम्प्यूटर टेबलेट, विधानसभा प्रश्न पूछने और उनके जवाब दिलाने की व्यवस्था में सुधार,विधानसभा के मुख्य हॉल में गुलाबी नगर जयपुर की तर्ज पर गुलाबी कार्पेट बिछाना आदि कई नवाचार किए गए है, जिसकी चर्चा पूरे देश और हर विधायक की जुबान पर है। वे संसद की तरह राज्य में भी विधानसभा के तीन सत्र चलाना चाहते है। देवनानी राष्ट्रमंडलीय संसदीय संघ (सी पी ए) के तहत विभिन्न देशों की अध्ययन यात्रा भी कर रहें है तथा देश की विभिन्न विधानसभाओं के कामकाज को भी देख परस्पर संवाद कर रहे हैं। देवनानी देश भर के विधानसभा अध्यक्षों में सबसे अधिक सक्रिय है। देवनानी पिछले डेढ़ वर्ष में तीन बार विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर विदेश यात्रा कर चुके है। वे प्रदेश के विधायकों को भी देश विदेश में संसदीय मंदिरों का अवलोकन तथा विधायी प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित करते है।

उल्लेखनीय है कि राजस्थान विधानसभा का सदन भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि यह तत्कालीन राजपूताना की 22 रियासतों के भारत संघ में विलय का परिणाम था। देश में राजस्थान ऐसा प्रदेश है कि जहां आजादी से पहले 22 रियासतों (19 रियासतें और 3 ठिकाने) के राजा – महाराजाओं और ठिकानेदारो का साम्राज्य था। यही वजह रही कि इन रियासतों के विलीनीकरण के साथ राजस्थान का गठन अलग- अलग चरणों में हुआ। स्वाधीनता के बाद लोकतांत्रिक भारत में भी इन रियासतों के प्रतिनिधियों का दबदबा रहा है और आजादी के बाद हुए चुनावों में राजघरानों के प्रतिनिधि भी बड़ी संख्या में विधायक और सांसद चुने गए। इनमें उल्लेखनीय रूप से डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मण सिंह लम्बे समय तक राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता और बाद में विधानसभाध्यक्ष भी बने। इसी प्रकार मेवाड़ एवं वागड़ तथा मारवाड़ तथा राज्य के अन्य अंचलों के उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चितौड़गढ़ , प्रतापगढ़, सिरोही, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर तथा प्रदेश के अन्य इलाकों में जयपुर ,किशनगढ़,करौली, कोटा,बूंदी, झालावाड़,धौलपुर,भरतपुर, अलवर, शाहपुरा ,टोंक,लावा,नीमराना और कुशलगढ़ आदि से पूर्व राजघराने के सदस्यगण राजनीति में सक्रिय रहते आए है ।

राजस्थान विधानसभा सोलहवीं बार अपना कार्यकाल पूरा करने की ओर अग्रसर है। राजस्थान में विधायिका का चुनाव पहली बार 1952 में हुआ था और यह प्रक्रिया 1967, 1977, 1980 और 1992 के राष्ट्रपति शासन के अपवादों को छोड़कर निरन्तर जारी है। परिसीमन आयोग द्वारा निर्धारित राजस्थान विधान सभा की सदस्य संख्या 1952 में 160 थी और उसी आयोग की कई अन्य सिफारिशों के बाद वर्तमान में 200 है। राजस्थान विधान सभा ने सदन और उसकी समितियों के कार्य के नियमन हेतु ‘राजस्थान विधान सभा में कार्य प्रक्रिया एवं संचालन नियम’ बनाए गए हैं। इन्हें पहली बार 1956 में बनाया गया था और कई संशोधनों के बाद, इनका नवीनतम चौदहवाँ संस्करण 2014 में प्रकाशित हुआ है।राज्य के राज्यपाल समय-समय पर सदन की बैठक इस बात को ध्यान में रखते हुए बुलाते हैं कि एक सत्र की अंतिम बैठक और अगले सत्र की पहली बैठक के बीच का अंतराल छह महीने से अधिक न हो। नियमों के अनुसार, राजस्थान विधान सभा के एक कैलेंडर वर्ष में कम से कम तीन सत्र होंगे। सदन का कार्य कार्य मंत्रणा समिति की सिफारिश पर सदन द्वारा तय किया जाता है।विधान समितियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है – स्थायी समितियाँ और तदर्थ समितियाँ। राजस्थान विधान सभा में 22 स्थायी समितियाँ हैं, जिनमें से चार वित्तीय हैं और शेष विभिन्न अन्य विषयों से संबंधित हैं। वित्तीय समितियाँ में लोक लेखा समिति, लोक उपक्रम समिति और दो प्राक्कलन समितियाँ हैं। वित्तीय समितियों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाता है और शेष समितियों का मनोनयन अध्यक्ष द्वारा किया जाता है। इन सभी समितियों के अध्यक्षों का मनोनयन अध्यक्ष द्वारा इन समितियों के सदस्यों में से किया जाता है। लोक लेखा समिति का मूल कार्य नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन में उल्लिखित विभिन्न अनियमितताओं के संबंध में सरकार के सचिवों की जाँच करना है। इसी प्रकार, लोक उपक्रम समिति को विभिन्न लोक उपक्रमों के कार्यों की समीक्षा करनी होती है और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपने नियंत्रणाधीन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन में उल्लिखित विभिन्न अनियमितताओं के संबंध में उपक्रमों की जाँच करें। दोनों प्राक्कलन समितियों का कार्य यह रिपोर्ट देना है कि किस प्रकार की मितव्ययिताएँ की जा सकती हैं और किसी विशेष संगठन में क्या सुधार किए जा सकते हैं। साथ ही, प्रशासन में दक्षता और मितव्ययिता लाने के लिए वैकल्पिक नीतियों का सुझाव देना और बजट अनुमानों के स्वरूप में भी परिवर्तन करना है। उपर्युक्त चार वित्तीय समितियों के अलावा,राजस्थान विधान सभा में अन्य 18 स्थायी समितियाँ हैं जिनमें कार्य मंत्रणा समिति , सरकारी आश्वासन समिति,पर्यावरण समिति 4. आचार समिति,स्थानीय निकाय एवं पंचायती राज संस्थाओं संबंधी समिति, याचिका समिति, विशेषाधिकार समिति ,अधीनस्थ विधान समिति,
पिछड़ा वर्ग कल्याण समिति,अल्पसंख्यक कल्याण समिति,अनुसूचित जाति कल्याण समिति,अनुसूचित जनजाति कल्याण समिति,महिला एवं बाल कल्याण समिति ,सामान्य प्रयोजन समिति,सदन समिति,पुस्तकालय समिति,प्रश्न एवं संदर्भ समिति और नियम समिति/नियम उप समिति शामिल है।ये समितियाँ सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के सदस्यों से, सामान्यतः सदन में उनकी संख्या के अनुपात में, गठित की जाती हैं। समिति के सदस्यों का कार्यकाल सामान्यतः एक वर्ष का होता है। सरकारी विधेयकों पर प्रवर समितियों के मामले को छोड़कर कोई भी मंत्री समिति का सदस्य नहीं हो सकता है। जहां तक कार्य मंत्रणा समिति का संबंध है, यह प्रावधान सदन के नेता, जो मुख्यमंत्री होता है, के मामले में लागू नहीं होता है। आम तौर पर, इन समितियों की रिपोर्ट समितियों के अध्यक्ष द्वारा सदन में प्रस्तुत की जाती हैं, लेकिन अंतर-सत्र अवधि में समिति अध्यक्ष, विधानसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकते हैं। विशेषाधिकार समिति और कार्य मंत्रणा समिति की रिपोर्ट के अपवाद के साथ, ये रिपोर्ट आम तौर पर सदन में नहीं उठाई जाती हैं।

विधानमंडल के सदन और उसके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां भारत के संविधान के अनुच्छेद 194 में निर्धारित की गई हैं। कुछ महत्वपूर्ण विशेषाधिकारों में विधायिका में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विधायिका या उसकी किसी समिति में उनके द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही से सदस्यों को उन्मुक्ति शामिल है। सदन के सत्र के दौरान न्यायालयों द्वारा विधानमंडल की कार्यवाही की जाँच करने पर प्रतिबन्ध और दीवानी मामलों में सदस्यों की गिरफ्तारी से मुक्ति के प्रावधान है।

विधानसभा सचिवालय परिसर में उन सदस्यों की सुविधा के लिए एक क्लोज सर्किट टेलीविजन प्रणाली कार्यरत है जो किसी विशेष समय पर सदन में उपस्थित नहीं होते हैं और उन सदस्यों के लिए भी जो विधानसभा की बैठकों का प्रत्यक्ष अवलोकन नहीं कर सकते हैं बहुत उपयोगी है। राजस्थान विधानसभा अपने उच्च स्तरीय संसदीय वाद-विवाद और सदन की कार्यवाही के अनुशासित संचालन के साथ-साथ कुछ क्रांतिकारी कानूनों के लिए भी विख्यात है, जिन्हें पूरे देश में प्रशंसा मिली है।

विधानसभाध्यक्ष देवनानी ने विधानसभा की कार्यवाही का लाइव प्रसारण की व्यवस्था को भी शुरू कराया है । देवनानी की सक्रियता और नवाचारों के कारण ही देश विदेश की विधानसभाओं और संसद में राजस्थान विधानसभा और अध्यक्ष वासुदेव देवनानी आज चर्चा में है। वहीं अब राजस्थान विधानसभा का अमृत महोत्सव धूमधाम से मनाने की रूपरेखा तैयार करवा वे एक नया इतिहास रचना चाहते है।