डॉ मनजीत कौर
नई दिल्ली।आयुर्वेद विज्ञान के पृथ्वी पर संस्थापक भगवान धन्वंतरि के अवतरण दिवस,धनतेरस को वर्ष 2016 से आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है।धनतेरस का संबंध भगवान धन्वंतरि से बताया जाता हैक्योंकि भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस को ही हुआ था ऐसी मान्यता है।
यह शाश्वत सत्य है कि जिसके पास उत्तम स्वास्थ्य है वही सबसे अधिक धनवान है।इसलिए कहा जाता हैं किपहला सुख निरोगी काया।ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तो उसने जीवों के भरण पोषण के लिए प्रकृति कीरचना भी की ।
यह भी शाश्वत सत्य है कि जो पैदा होगा उसकी मृत्यु भी निश्चित है,इसलिए स्वभाविक है कि इसके कारण रोगभी होंगे फिर यदि रोग होंगे तो उसकी उपचार भी होगा।
संस्कृत का एक श्लोक है “रोगस्तु दोषवैषम्यं दोषसाम्यमरोगता।”
आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार वात पित्त कफ दोषों का विषम होना ही रोग है और इन तीनों दोषों की साम्यावस्थाही निरोगी काया का सूचक है।
स्वास्थ्य की जितनी सुंदर परिभाषा आयुर्वेद में बताई गई है उससे सुंदर परिभाषा और कहीं नहीं मिलती है।
“समदोषःसमाग्निश्च समधातुमलक्रियः।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ्य इत्यभिधीयते।।”
केवल तीनों दोषों का सम होना ही नहीं बल्कि आयुर्वेद में जो तेरह अग्नियाँ बताई गई है उनका सम होना,सातोंधातुओं और मलादि क्रियाओं का सम होना एवं शरीर,आत्मा, इन्द्रियाँ (ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ-दस ) औरमन का प्रसन्न होना स्वस्थ होना कहलाता है।
रोगों के उपचार के लिए ही ईश्वर ने विविध वनस्पतियों,खनिज पदार्थों, जीव-जंतुओं को सृजन किया है ताकिमनुष्य अपनी बुद्धि विवेक और प्राप्त ज्ञान के आधार पर रोगों की चिकित्सा कर सके।
“किंन्चिद्दोषप्रशमनं किन्चिद्दातुप्रदूषणम्।
स्वस्थवृत्तौ मत्तं किंन्चित्रिविधं द्रव्यमुच्यते।”
जब से मानव का जन्म हुआ है तब से रोग भी चले आ रहे हैं और तभी से आयुर्वेद भी चला आ रहा है इसलिएआयुर्वेद को अनादि कहा गया है।
ब्रह्मा से दक्षप्रजापति,दक्षप्रजापति से अश्विनी कुमार,अश्विनी कुमारों से इंद्र और इंद्र से भगवान धन्वंतरि नेआयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया।जब पृथ्वी पर रोग बढ़ने लगे तो मानव जाति को बचाने के लिए भगवान धन्वंतरिने अपने शिष्यों को ज्ञान दिया इसी क्रम से समय समय पर ज्ञान का हस्तांतरण होता रहा जो आज दिन तकचला आ रहा है।कालान्तर में हस्तांतरण का स्वरूप भले ही बदल गया है पर उद्देश्य एक ही है कि आयुर्वेदविज्ञान को घर घर पहुँचाना और लोगों को रोगमुक्त करना।
प्रकृति से उत्पन्न पुरूष का,प्रकृति से उत्पन्न वनस्पतियों,खनिज पदार्थों एवं जीव जंतुओं के माध्यम से मनुष्य कीआयु का संवर्धन करना एवं विभिन्न विधियाँ से जैसे औषधिय चिकित्सा , रसायन चिकित्सा, पंचकर्म,क्षार कर्म,अग्नि कर्म,शल्य कर्म इत्यादि विधियों से एवं मानसिक सौष्ठव पर संपूर्ण ध्यान केन्द्रित करते हुए रोगी कोरोगमुक्त करना ही आयुर्वेद चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य है।
आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान किसी पहचान की मोहताज नहीं है।अब तो विदेशों में भी इसको अपनाने और जाननेमें ख़ासी लालसा देखी गई है। आयुर्वेद प्राचीन काल से चली आ रही एक विश्वसनीय एवं निरापद चिकित्सापद्धति है।साथ ही अन्य चिकित्सा पद्धतियों का आधार स्रोत भी है। आयुर्वेद का भारतीय जीवन में हर क्षेत्र मेंइतना योगदान था कि उसका जीवन के साथ साथ, अर्थ व्यवस्था और सैन्य क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान था।आयुर्वेद केवल मानवीय स्वास्थ तक ही सीमित नहीं बल्कि आयुर्वेद में वृक्ष कृषि और बागवानी के लिए, अश्वआयुर्वेद सेना के लिए, पशु आयुर्वेद हॉर्टिकल्चर के क्षेत्र में आवश्यक एवम महत्वपूर्ण स्थान रखता आया है।इस वर्ष देश के विभिन्न हिस्सों में गायों में फैली लंपी वायरस का श्रेष्ठ उपचार आयुर्वेद में ही निहित रहा ।
भारत में इस वर्ष आयुर्वेद दिवस की थीम “हर दिन,हर घर आयुर्वेद” रखी गई है।जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों कोआयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान की खूबियों से रूबरू कराना और किस तरह हम रोगों से बचाव एवं रोगों के उपचारमें आयुर्वेद अपना कर सुरक्षित रह सकते हैं,इस सन्देश को घर-घर पहुँचाना है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की तरह दुष्परिणाम बहुत कम होते हैं।प्रायः देखाजाता है कि बीमारी का एलोपेथी इलाज कराते समय दवा के साइड इफ़ेक्ट होते हैं और उसके फलस्वरूपदूसरी बीमारियाँ भी उत्पन्न हो जाती है।हालाँकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में हर दवा के साथ उसकेदुष्परिणाम भी लिखें होते हैं।
आयुर्वेद में केवल रोग की चिकित्सा के साथ- साथ रोगी की प्रकृति के आधार पर चिकित्सा की जाती है।रोगके साथ रोगी को केन्द्र मानकर चिकित्सा की जाती है यानि उसकी प्रकृति, अग्निबल,मनोदशा इत्यादि को ध्यानमें रखकर चिकित्सा की जाती है।
हम अपने दैनिक जीवन में जो चीजें इस्तेमाल करते हैं चाहे वो रसोई के मसालें हों, फल,फूल,कंद मूल,शाकसब्ज़ियाँ हों,खेतों में उगनी वाली फसलें हों या प्रकृति की गोद में उगने वाली अन्य वनस्पतियाँ हों आयुर्वेदीयऔषधियों में उनका प्रयोग ही किया जाता हैं,इसलिए उनके दुष्परिणामों की संभावनाएं भी बहुत कम रहती है।कृत्रिम चीजें इंसानों के द्वारा बनाई जाती हैं उसमें गलती होने की संभावना ज़्यादा होती है परंतु प्राकृत चीजों मेंमिलावट नहीं होती इसलिए छोटी मोटी ऋतुजन्य बीमारियों के लिए भी हम घर पर ही आयुर्वेद अपना कर ठीकहो सकते है। हम एंटीबायोटिक को खाते रहते हैं लेकिन उससे होने वाले नुक़सान से अनभिज्ञ रहते हैं।कुछबीमारियाँ तो बिना चिकित्सा के भी समय के साथ ख़त्म हो जाती हैं लेकिन इंसानों में धैर्य की कमी होती है औरवह बिना ज़रूरत के भी एंटीबायोटिक खाकर अपना नुक़सान करते रहते हैं।उदाहरण के तौर पर जुकाम एकबहुत सामान्य बीमारी है जो तीन से पाँच दिनों में थोड़ा बहुत परहेज़ जैसे गर्म पानी पीने से,सोंठ मिर्च लौंगकालीमिर्च को शहद से लेने से या केवल तुलसी और अदरक की चाय पीने से भी ठीक हो जायेगा लेकिन लोगथोड़े प्रयास करने की जगह ऐलोपेथी गोलियाँ खाना ज़्यादा आसान समझते हैं और बेवजह दवा लेना शुरू करदेते हैं।
समय की माँग है आयुर्वेद
आज के समय की सबसे बड़ी जरुरत आयुर्वेद बनती जा रही है जिसे अब पूरी दुनिया अंगीकार करने लगी है।कोरोना महामारी के भीषण काल में भी लोगों ने इसका लोहा माना है।विदेशों तक लोगों में इसका ख़ासा प्रभावदेखा गया है। इसलिए आओ हम सब मिलकर अपने आस पास होने वाली वनस्पतियों को जाने,उनके संवर्द्धन मेंअपना योगदान दें,उनका संरक्षण करें आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को अपनायें और आम जन को इस सबसेप्राचीन और सुरक्षित चिकित्सा पद्धति को अपनाने के लिए प्रेरित करें। आयुर्वेद का भारतीय जीवन में हर क्षेत्र मेंइतना योगदान था कि उसका जीवन के साथ साथ, अर्थ व्यवस्था और सैन्य क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान था।
हर दिन हर घर आयुर्वेद अपनाएँ
सुखी और निरापद स्वास्थ्य पायें।
लेखक डॉ मनजीत कौर, बीकानेर हॉउस नई दिल्ली में राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय की प्रभारी वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी है