ओम प्रकाश उनियाल
जिस प्रकार से अन्य देवी-देवताओं का सुख-शांति व समृद्धि के लिए पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है उसी प्रकार अपने पूर्वजों का स्मरण पितृ-पक्ष में किया जाता है। पितृ-पक्ष को श्राद्ध-पक्ष भी कहा जाता है। श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के सम्मान में जो कुछ अर्पित किया जाता है श्राद्ध कहलाता है। परिवार के पूर्वजों की तिथि के अनुसार श्राद्ध करने की परंपरा है। उनके प्रति श्रद्धा एवं समर्पण के भाव से ही वे प्रसन्न एवं संतुष्ट हो जाते हैं। पितृ-पक्ष साल में एक बार पड़ता है। तर्पण देने, पिण्ड दान करने व जरूरतमंदों को अन्य प्रकार के दान करने, ब्राह्मणों को जिमाने से पितर आशीर्वाद देते हैं व तृप्त होते हैं। गाय, कौवे, कुत्ते व चींटी को भी भोग लगाएं। तीर्थ-स्थलों पर भी जाकर पितर पूजा की जाती है। जिनके पास अल्प साधन हैं या कुछ न करने की स्थिति में हैं वे यदि नियमित रूप से पितरों का स्मरण ही कर लें तो भी पितर खुश हो जाते हैं और पितृ-ऋण से उऋण होते हैं। मान्यता है कि पितर पूजन से वंश-वृद्धि होती है, परिवार में खुशहाली आती है और बरकत बनी रहती है। पितृ-पक्ष भाद्रपद माह में शुक्ल-पक्ष की पूर्णिमा तिथि से अश्विन मास के कृष्ण-पक्ष की अमावस्या तक रहता है। अमावस्या के दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है। 29 सितंबर से पितृ-पक्ष शुरु हो चुका है 14 अक्टूबर तक चलेगा। इस काल में अपने पितरों का स्मरण अवश्य करें। जिन परिवारों मेें बुजुर्ग हैं जीते-जी यदि उनकी भी सेवा करें तो पितृ-ऋण वैसे भी चुकता हो जाता है।