
ललित गर्ग
भारत के अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए संसद के दोनों सदनों के सांसदों ने अपने वोट डालें। सत्तारूढ़ एनडीए के उम्मीदवार तमिलनाडु भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सीपी राधाकृष्णन ने विपक्ष के उम्मीदवार वरिष्ठ अधिवक्ता बी सुदर्शन रेड्डी को परास्त कर 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में जीत दर्ज की और एक नये इतिहास का सृजन किया है। निर्वाचन अधिकारी राज्यसभा महासचिव पीसी मोदी के अनुसार मतदान संसद भवन के वसुधा स्थित कमरा संख्या एफ-101 में सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक चला। यह ऐतिहासिक घटना केवल उपराष्ट्रपति पद के चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति में बदलते समीकरणों और भविष्य की दिशा का संकेत भी देती है। सी.पी. राधाकृष्णन का 17वें उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होना न केवल एनडीए और भाजपा की रणनीतिक सूझबूझ का परिणाम है, बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण है कि व्यक्ति चयन की प्रक्रिया को उन्होंने केवल राजनीतिक समीकरण तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसमें व्यापक सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण को जोड़ा।
एनडीए के प्रत्याशी के रूप में राधाकृष्णन ने इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को परास्त किया, इसकी संभावनाएं पहले से व्यक्त की जा रही थी। यह जीत केवल संख्याओं का खेल नहीं है, बल्कि यह विचारधारा, दृष्टि और नेतृत्व की जीत है। उपराष्ट्रपति पद संवैधानिक गरिमा का प्रतीक होता है, जहाँ राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित सर्वाेपरि हो जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नेतृत्व ने राधाकृष्णन जैसे व्यक्ति को चुनकर यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके लिए संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्ति का व्यक्तित्व, नैतिकता और राष्ट्रीय दृष्टिकोण सर्वाेपरि है। इस शानदार जीत के कई निहितार्थ हैं। पहला, यह भाजपा और एनडीए की राजनीतिक पकड़ और संगठनात्मक शक्ति को और मजबूत करता है। दूसरा, यह विपक्षी इंडिया गठबंधन की कमजोरियों और आंतरिक मतभेदों को उजागर करता है। तीसरा, यह भविष्य की राजनीति की उस दिशा को दर्शाता है जहाँ व्यक्तिगत ईमानदारी, सामाजिक स्वीकार्यता और राष्ट्रीय दृष्टि को अधिक महत्व मिलेगा।
सी.पी. राधाकृष्णन का चयन इस मायने में भी ऐतिहासिक है कि वे राजनीति के व्यावहारिक धरातल पर काम करने वाले ऐसे नेता माने जाते हैं जिनकी पहचान केवल पार्टी तक सीमित नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में भी है। यह कदम भाजपा की उस राजनीति की भी झलक देता है जहाँ वह केवल चुनावी जीत की ओर नहीं, बल्कि दीर्घकालीन सांस्कृतिक और वैचारिक स्थिरता की ओर अग्रसर है। यह कहा जा सकता है कि इस चुनाव में एक तीर से अनेक निशाने साधे गए हैं, एनडीए की शक्ति का प्रदर्शन, विपक्ष को स्पष्ट संदेश, संवैधानिक गरिमा की रक्षा, और भविष्य की राजनीति में व्यक्ति चयन की एक नई परंपरा का सूत्रपात। भारत की राजनीति में यह एक ऐसा क्षण है जिसे केवल चुनावी जीत के रूप में नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की व्यापक प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए।
भाजपा ने एक और तीर साधा है। जैसाकि तमिलनाडु की राजनीति परंपरागत रूप से द्रविड़ आंदोलनों और क्षेत्रीय पहचान से प्रभावित रही है, जहां पिछले कई दशकों से डीएमके और एआईएडीएमके का दबदबा रहा है। भाजपा के लिए इस राज्य में राजनीतिक ज़मीन तैयार करना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज़ 4 सीटें मिलीं, जबकि एनडीए गठबंधन को कुल 66 सीटों पर सफलता हासिल हुई। यह स्पष्ट करता है कि तमिलनाडु में भाजपा की पकड़ अभी कमजोर है और उसे क्षेत्रीय भावनाओं, भाषा और संस्कृति से जुड़े सवालों पर गहरी पैठ बनाने की जरूरत है। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर एक रणनीतिक दांव खेला है। राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं और उनकी पहचान को आगे रखकर भाजपा राज्य की राजनीति में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहती है। इससे भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि वह तमिल अस्मिता, संस्कृति और क्षेत्रीय नेतृत्व को सम्मान देती है। राधाकृष्णन की उम्मीदवारी से भाजपा को उम्मीद है कि वह आने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी उपस्थिति और प्रभाव को विस्तार दे सकेगी और द्रविड़ राजनीति के लंबे प्रभुत्व को चुनौती देने का आधार बना सकेगी।
भारत का उपराष्ट्रपति पद एवं उपराष्ट्रपति मंत्रालय भारतीय लोकतंत्र की गरिमा और संतुलन का प्रतीक है। यह पद केवल औपचारिकता का केंद्र न होकर भारतीय संसद के उच्च सदन का अध्यक्ष होने के कारण संवाद, विचार और लोकतांत्रिक विमर्श की आत्मा को दिशा देता है। स्वतंत्र भारत की इस परंपरा को जब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक, विचारक और शिक्षाविद ने अपने व्यक्तित्व और कार्य से ऊँचाई दी, तब यह पद राष्ट्र के सांस्कृतिक, नैतिक और बौद्धिक आदर्शों का संवाहक बन गया। उनके माध्यम से यह संदेश गया कि उपराष्ट्रपति का पद केवल राजनीतिक महत्व का नहीं बल्कि राष्ट्रीय मूल्यों के संरक्षण और विकास का भी दायित्व वहन करता है। आज एनडीए द्वारा इस परंपरा में नई ऊर्जा का संचार करते हुए प्रभावी और रचनात्मक व्यक्तित्व को उपराष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित करना भारतीय राजनीति की उज्जवल परंपरा को आगे बढ़ाने का संकेत है। यह प्रयास बताता है कि भारतीय लोकतंत्र की मजबूती केवल सत्ता-संघर्ष में नहीं बल्कि उच्च पदों पर ऐसे व्यक्तित्वों के चयन में निहित है जो नैतिकता, विद्वत्ता और संवेदनशीलता से लोकतंत्र की गुणवत्ता को बढ़ाएं। डॉ. राधाकृष्णन की परंपरा को स्मरण करते हुए यह आवश्यक है कि उपराष्ट्रपति संस्था निरंतर आदर्शवाद, विमर्श की गहराई और राष्ट्रीय मूल्यों की ऊर्जा का केंद्र बनी रहे।
सी.पी. राधाकृष्णन का जीवन संघर्ष, साधना और निरंतर सक्रियता का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। 20 अक्तूबर 1957 को तमिलनाडु के तिरुप्पुर में जन्मे राधाकृष्णन का विद्यार्थी जीवन खेलकूद और सामाजिक गतिविधियों से जुड़ा रहा। वे टेबल टेनिस के चैम्पियन रहे और उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर सामाजिक सेवा के मार्ग पर आगे बढ़े। सत्तर के दशक में जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी से राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले राधाकृष्णन धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख चेहरे बने। कोयंबटूर से वे 1998 और 1999 में लगातार दो बार लोकसभा सदस्य चुने गए। संसद में उनकी सक्रियता, समितियों में भागीदारी और जनता से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी ने उन्हें एक सशक्त जननेता के रूप में पहचान दी। वर्ष 2004 से 2007 तक उन्होंने भाजपा तमिलनाडु का नेतृत्व किया और संगठन विस्तार के लिए यात्रा, आंदोलन और संवाद को प्रमुखता दी। इसके बाद कोइर बोर्ड के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने नारियल उद्योग और उसके निर्यात को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राधाकृष्णन की प्रशासनिक यात्रा उन्हें राज्यपाल पद तक ले गई। वे झारखंड, तेलंगाना और महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे। इन पदों पर रहते हुए उन्होंने पारदर्शिता, सौम्यता और संवैधानिक मूल्यों का पालन करते हुए जनता और सरकार के बीच सेतु का कार्य किया। उनकी छवि एक सहज, सरल और संतुलित व्यक्ति की है जो संवाद से समाधान तलाशने में विश्वास रखते हैं। जब तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से पद छोड़ा तो इस पद पर चुनाव की आवश्यकता पड़ी। एनडीए ने सर्वसम्मति से राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया। विपक्ष ने भी अपना प्रत्याशी उतारा, परंतु संख्या बल के कारण यह साफ था कि राधाकृष्णन की विजय लगभग सुनिश्चित है। कुछ क्षेत्रीय दलों ने मतदान से दूरी बना ली, जिससे समीकरण और भी सरल हो गए।
राधाकृष्णन के उपराष्ट्रपति बनने से राज्यसभा की कार्यवाही में संयम और संवाद की संस्कृति मजबूत होगी। उपराष्ट्रपति का दायित्व केवल औपचारिक नहीं होता, बल्कि यह संसद की गरिमा और संविधान की मर्यादा का संरक्षक भी होता है। दक्षिण भारत से आना और ओबीसी समुदाय से होना उन्हें सामाजिक और राजनीतिक संतुलन का प्रतिनिधि बनाता है। उनका पूरा जीवन एक कर्मयोगी की तरह रहा है। उन्होंने किसी भी पद को केवल शक्ति के रूप में नहीं देखा बल्कि सेवा और कर्तव्य निभाने का अवसर माना। अब वे 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यकाल प्रारंभ रहंे हैं तो यह आशा की जा सकती है कि वे संसद में शांति, लोकतांत्रिक परंपराओं और संवाद के स्तर को ऊँचाई देंगे। उनका अनुभव, धैर्य और समर्पण देश की लोकतांत्रिक संरचना को और अधिक सुदृढ़ बनाने में सहायक सिद्ध होगा।