कार्नी का नया कनाडा – भारत से बेहतर संबंधों का द्वार खुला

Carney's new Canada - Opens the door for better relations with India

प्रदीप शर्मा

कनाडा के आम चुनावों में मार्क कार्नी के नेतृत्व में लिबरल पार्टी की जीत भारत से संबंधों में सुधार के नजरिये से बेहद महत्वपूर्ण है। चुनाव से पूर्व और चुनाव के दौरान कार्नी कहते रहे हैं कि आने वाले समय में भारत से बेहतर रिश्ते बनेंगे। पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की दुराग्रह और पृथक्तावादियों के दबाव के चलते भारत कनाडा संबंध अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गए थे। कार्नी की जीत से उम्मीद जगी है कि दोनों देशों के संबंध फिर से पटरी पर लौटेंगे।

दरअसल, एक अपरिपक्व राजनेता की तरह जस्टिन ट्रूडो ने निज्जर प्रकरण को जिस तरह तूल दिया, उसके चलते दोनों देशों के संबंध बेहद खराब स्थिति में पहुंचे। हालांकि, भारत सरकार ने निज्जर प्रकरण में हाथ होने के दावों का दृढ़ता से खंडन किया था। लेकिन इसके बावजूद दोनों देशों के राजनीतिक, आर्थिक संबंध और लोगों के आने-जाने का उपक्रम बुरी तरह प्रभावित हुआ था। निस्संदेह, कार्नी का फिर सत्ता में लौटना संबंधों में सुधार का स्पष्ट संकेत है। वे अपने पूर्ववर्ती के विपरीत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित आर्थिक विशेषज्ञ, व्यावहारिक राजनेता और बयानों में संतुलन रखने वाले व्यक्ति हैं। दरअसल, हाल के चुनावों में उनका ‘मजबूत कनाडा, मुक्त कनाडा’ का नारा खूब चला। ट्रंप के टैरिफ वार और बार-बार कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने के बयानों ने कनाडा के लोगों में असुरक्षा का भाव भर दिया। कनाडाई जनमानस को पढ़ने में सक्षम कार्नी ने इस मुद्दे को हथियार बनाकर पार्टी की सत्ता में वापसी करा दी। अन्यथा कुछ समय पूर्व पार्टी के पराजय को लेकर दावे किए जा रहे थे। दरअसल, उन्होंने कनाडा को मजबूत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को बहाल करने की बात कही ताकि घरेलू स्थिरता को मजबूत किया जा सके। निश्चित रूप से कार्नी का यह दृष्टिकोण व्यापारिक, रणनीतिक व लोगों को जोड़ने की दृष्टि से भारत के लिये महत्वपूर्ण अवसर साबित होगा। एक सफल केंद्रीय बैंकर और अनुभवी निवेशक के रूप में कार्नी भारतीय बाजार से जुड़ने की आकांक्षा रखते हैं।

बहरहाल, कार्नी के कनाडा की सत्ता में वापसी और भारत विरोधी तत्वों के सिमटने से नये सिरे से व्यापार वार्ता शुरू करने, छात्र वीजा सुविधा के विस्तार और आव्रजन नीतियों में स्थिरता की उम्मीद जगी है। उनकी जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बधाई देने में मजबूत साझेदारी की उम्मीद झलकती है। हाल के वर्षो में दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट से हजारों भारतीय छात्रों और अाप्रवासियों का भविष्य प्रभावित हुआ। वीजा में देरी, पढ़ाई के बाद काम की चिंता और कथित रूप से कटुतापूर्ण माहौल ने एक सपनों के गंतव्य स्थल की छवि को धूमिल ही किया। बदले हुए हालात में कार्नी प्रशासन को इस वर्ग को आश्वस्त करने के लिये तेजी से काम करना होगा। वह वर्ग जो कनाडाई अर्थव्यवस्था में अरबों का योगदान देता है तथा उसके कुशल कर्मियों की संख्या को बढ़ाता है। भारत को पिछली कटुता को भुलाकर बेहतर संबंधों हेतु उदारता का परिचय देना चाहिए।

आने वाला वक्त बताएगा कि कार्नी प्रशासन खालिस्तानी उग्रवाद और प्रवासियों संबंधी कट्टरता जैसे संवेदनशील मुद्दों को कितने बेहतर ढंग से संभालता है। वैश्विक व्यवस्था में बदलाव और अमेरिकी राजनीति में अनिश्चितता के बावजूद भारत व कनाडा के बीच जलवायु संबंधी मुद्दों, शिक्षा और डिजिटल नवाचार में गहरी भागीदारी की संभावना पैदा हुई है। कार्नी की जीत के बाद दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद विश्वास में बदल सकती है। पूर्व बैंकर रहे कार्नी ने गत सोमवार को भारत व कनाडा के रिश्तों को बहुत महत्वपूर्ण बताया था, और भरोसा दिलाया था कि अगर वे दोबारा प्रधानमंत्री बनते हैं तो दोनों देशों के रिश्तों को बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे। साथ ही एक चैनल से कहा कि रिश्तों में जो तनाव पैदा हुआ वो हमारी वजह से नहीं हुआ। एक-दूसरे के प्रति सम्मान के साथ इसे फिर से बहाल करने की दिशा में प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि वैश्विक अस्थिर अर्थव्यवस्था के बीच भारत व कनाडा इसे नया रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।