सीता राम शर्मा ” चेतन “
युक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भारतीय प्रधानमंत्री से टेलिफोन पर बात कर एक बार फिर युद्ध विराम और शांति के लिए सहयोग करने की अपील की है ! गौरतलब है कि जेलेंस्की ने यह वार्ता व्हाइट हाउस में बाइडेन से मुलाकात के बाद की है, तो पहला सवाल यह कि क्या अमेरिका सचमुच युद्ध विराम चाहता है ? और दूसरा सवाल यह कि क्या उसने ही या उसने भी इसके लिए जेलेंस्की को भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से बात करने की सलाह दी है ? पहले सवाल का जवाब प्रथम दृष्टया हां में नहीं दिया जा सकता पर वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों के लिहाज से देखें, समझें तो ऐसा इसलिए संभव लगता है कि इस युद्ध के शुरु होने में बहुत स्पष्ट तौर पर अमेरिका की बड़ी भूमिका रही है और अब उसका उसे नुकसान भी उठाना पड़ रहा है । युद्ध प्रारंभ होने से पहले उसने युक्रेन को नाटो मे शामिल करने का जिस तरह प्रचार-प्रसार किया था, वह युक्रेन को उकसाने और रूस को भड़काने वाला ही कहा जा सकता है ।
हांलाकि पुतिन की आक्रामकता देख बाइडेन की सारी मनोवैज्ञानिक चालें चित्त हो गई । अफगानिस्तान में अपनी वैश्विक दादागिरी की हुई दुर्गति की भरपाई युक्रेन-रुस विवाद से करने की अमेरिकन मंशा भी उसके लिए आत्मघाती ही सिद्ध हुई है । गौरतलब है कि युक्रेन को नाटो में शामिल करने की अमेरिकन धौंस और भड़काऊ बयानबाजी के कारण ही युद्ध संकट उत्पन्न हुआ, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है । युद्ध का मुख्य कारण बने अमेरिका को पुतिन से इस आक्रामकता का अंदेशा बिल्कुल नहीं था । तब रुस के युद्ध प्रारंभ करने और धमकाने का पूरा असर अमेरिका पर साफ दिखाई दिया था । उस बात को कोई नहीं भूल सकता कि युद्ध के पूर्व हर कदम पर युक्रेन के साथ खड़े होने का दावा करने वाला अमेरिका युद्ध प्रारंभ होते ही कैसे युद्ध से दूर रहने की बात कर वैश्विक आलोचना का केंद्र बिंदु बन गया था । यहां तक कि युक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की भी तब लगातार अमेरिका के विरुद्ध बयान दे रहे थे । वैश्विक आलोचना से घबराया अमेरिका तब से लगातार अपनी वैश्विक विश्वसनीयता की रक्षा के लिए यूक्रेन को सहयोग देने की बाध्यता का शिकार हो रहा है । वह युद्ध के बहाने रूस के खिलाफ हर संभव दुष्प्रचार और शत्रुतापूर्ण षड्यंत्र अवश्य कर रहा है, पर दुनिया जानती है कि इस युद्ध का बड़ा कारण अमेरिका है और इससे रुस की तुलना में युक्रेन को बड़ा नुकसान हुआ है । सच्चाई तो यह भी है कि रूस अंततः अपने नुकसान की भरपाई युक्रेन से कर लेगा, पर युक्रेन बहुत चाहकर भी ऐसा कभी नहीं कर पाएगा । कुल मिलाकर सार यह है कि अब युक्रेन और अमेरिका दोनों ही इस युद्ध से मुक्ति चाहते हैं । पर कैसे और किन शर्तो पर ? और क्या रुस उनकी शर्तों पर युद्ध विराम करने को तैयार होगा ?
भारत को युक्रेन के साथ कई देश कूटनीतिक रुप से इसमें सहयोगी या अगुवा बनाना चाहते हैं, तो भारत को चाहिए कि वह दुनिया, विशेषकर युक्रेन को इस बात पर चिंतन करने को कहे कि वह सबसे पहले यह समझे कि युद्ध का मुख्य कारण क्या है ? और समाधान का सबसे सरल मार्ग क्या है ? स्पष्ट है कि युक्रेन यदि नाटो में शामिल ना होने का संकल्प ले और भविष्य में कभी भी अपनी धरती का उपयोग रुस के विरुद्ध ना होने देने की गारंटी दे तो रुस तुरंत युद्ध विराम कर सकता है । रही बात युद्ध के दौरान रुस द्वारा अतिक्रमित युक्रेनी भूभाग की, तो उसे युद्ध के पूर्ववत स्थिति में करने का आग्रह भारत को पहले व्यक्तिगत रुप से पुतिन से करना होगा । संभव है कि वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से इस मुद्दे पर युक्रेन को थोड़ा नुकसान और रुस को लाभ की स्थिति में रखना होगा । अंतिम और सबसे जरुरी बात यह कि इस तमाम वार्ता को अमेरिकन हस्तक्षेप और बयानबाजी से दूर रखना होगा, जिसका पूर्ण दायित्व युक्रेन को ही लेना होगा । यदि ऐसे कुछ जरूरी तथ्यों पर भारत विचार और व्यवहार की धरातल पर कोई सकारात्मक माहौल बना पाए तो युद्ध विराम संभव है । जिसका प्रयास भारतीय प्रधानमंत्री को करना चाहिए । हां, संधि वार्ता की शुरुआत तो जेलेंस्की की नाटो से दूरी की स्वीकृति से ही प्रारंभ होगी ।