मतगणना से ज्यादा ज़रूरी जनगणना है

अरुण कुमार चौबे

प्रत्येक 10 वर्ष में देश की जनगणना की जाती है और आकलन किया जाता है देश कि देश की जनसंख्या कितनी है, जिसमें ग्राम पंचायत स्तर नगररीय निकाय स्तर पर राज्य स्तर पर राष्ट्रीय स्तर पर और प्रत्येक जिला स्तर पर जनगणना की जाती है. इस जनगणना के आधार पर यह आकलन होता है कि देश की जन्म दर मृत्यु दर क्या है. इसका जनसंख्या पर क्या प्रभाव पड़ा है हमारी जनसंख्या किस अनुपात में बढ़ रही है. सांख्यिकी आधार पर और गणितीय आधार पर जनगणना के आंकड़े सरकार के द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं जिन्हें संसद में प्रस्तुत किया जाता है. जनगणना के आधार पर सरकार देश में विकास की योजनाओं को बनाती है जनगणना करने का यह क्रम प्रत्येक 10 वर्ष से लगातार चलता आ रहा है सन 2020 में कोविड-19 के कारण लॉक डाउन लग गया था जिससे 2020 2021 के दौरान जनगणना का कार्य नहीं हो सका. परंतु जनगणना कराना सरकार का प्रमुख प्राथमिक कार्य था सरकार चाहती तो सन 2021 2022 के दौरान भी जनगणना करवा सकती थी. सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि जनगणना कराने में करोड़ों रुपया व्यय होगा कोविड-19 महामारी के कारण सरकार के पास जनगणना कराने के लिए पर्याप्त बजट नहीं है जबकि कोरोना महामारी के लिए देश विदेश से करोड़ों अरबों रुपया प्रधानमंत्री राहत कोष में सन 2020 और 2021 के दौरान उदारता पूर्वक लोगों ने दिया है. कई वरिष्ठ जनों ने अपनी पेंशन दान में दी है कई बच्चों ने अपनी गुल्लक तोड़कर जन्मदिन नहीं मना कर और अर्जित धन को लोगों ने प्रधानमंत्री राहत कोष में तथा मुख्यमंत्री राहत कोष में भरपूर धनरशि का सहयोग दिया है कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री राहत कोष मुख्यमंत्री राहत कोष में कितना धन आया है कि भारत में उत्तर प्रदेश जैसे बहुत बड़े राज्य की नई स्थापना की जा सकती है इतना धन महामारी के राहत कोष में आया है सरकार के पास भी धन की कोई कमी नहीं है ईंधन के लगातार बढ़ते दामों से और अन्य प्रकार के करो से सरकार की आय लगातार बढ़ी है. यदि ईमानदारी से जनगणना कराई जाती तो सरकार के कोष पर किसी भी प्रकार का आर्थिक भार नहीं आता, परंतु सरकार बहुत ही सफाई से जनगणना कराने से बच निकली और इस पर किसी भी विपक्षी दल ने विरोध दर्ज नहीं कराया ना ही किसी प्रकार का विरोध लोकसभा राज्यसभा अथवा राज्यों की विधानसभाओं में किया गया. वैसे तो बहुत छोटी सी बात में राजनीतिक दल और नेता उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने में देर नहीं करते हैं छोटी-मोटी बातों को न्यायालय में ले जाते देर नहीं लगती है कई बार न्यायालय भी इनकार करता है कि यह उसका विषय नहीं है. परंतु हमारे देश के राजनीतिक दलों को देश की जनगणना से ज्यादा चिंता अपने वोट बैंक और चुनाव जीतने की है सत्ता पाने की है इसलिए जनगणना कराने जैसा महत्वपूर्ण कार्य टाल दिया गया. मध्यप्रदेश में जब स्थानीय निकायों के चुनाव की बात आई तब ओबीसी आरक्षण को लेकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया गया जो कि पिछड़े वर्ग के जाति के नाम पर मात्र दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं था. यदि राजनीतिक दलों को पिछड़े वर्ग की इतनी ही चिंता होती तो राजनीतिक दल ओबीसी आरक्षण के बजाय देश में पूरी जनगणना कराने की मांग करते. जातिगत आधार पर जनगणना करने का कहीं-कहीं विरोध भी किया गया सत्तारूढ़ दल भी इसके पक्ष में नहीं था वहीं दूसरी तरफ देखा जाए जब चुनाव की बारी आती है और टिकट बांटने की बारी आती है सब जातिगत आधार पर ही आकलन करके सभी राजनीतिक दल अपने-अपने प्रत्याशी उतारते हैं और जातिगत आधार पर वोट बैंक का आकलन करते हैं. अभी हो रहे राज्यसभा चुनाव में भी जातिगत आधार पर ही राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार उतारे हैं जिनका उद्देश्य जातिगत वोट बैंक को साध कर रखना है जनगणना से राजनीतिक दलों को यह डर था कि हमारी राजनीतिक जमीन खिसकने की पूरी संभावना है क्योंकि इसी आधार पर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्गठन होना था. इसी आधार पर स्थानीय निकायों के वार्ड भी गठित किए जाते इसलिए किसी भी राजनीतिक दल ने सत्तारूढ़ दल से जनगणना कराने के लिए मांग नहीं की, ना ही सरकार पर दबाव बनाया कि जनगणना कराना अत्यंत आवश्यक है. बल्कि सरकार देश की आम जनता का ध्यान भटकाने में सफल हो गई और देश के लोगों का ध्यान धार्मिक मुद्दों की तरफ मोड़ दिया गया. जिससे जनगणना की बात से सभी का ध्यान भटक गया. जनगणना करना प्रत्येक 10 साल में जरूरी है यह जरूरी कार्य सरकार ने अगले 10 साल के लिए टाल दिया है. ताकि पुरानी जनगणना के आधार पर ही सभी प्रकार के चुनाव हो और नेताओं की चुनावी जमीन और जागीर सुरक्षित बनी रहे इस मामले में यदि किसी ने न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया तो न्यायालय भी चुपचाप बैठा रहा यहां तक कि चुनाव आयोग ने भी इस मामले में सरकार से यह नहीं कहा कि जनगणना नहीं कराने से चुनाव क्षेत्रों में का सही आकलन नहीं हो सकेगा. चुनाव आयोग सरकार की कठपुतली बनकर काम करता है अतः चुनाव आयोग ने चुप्पी साधना बेहतर समझा यदि जनगणना के विषय में न्यायालय का हस्तक्षेप होता तो सरकार को सरकार को जनगणना के लिए जनगणना कराने के लिए विवश होना पड़ता जनगणना नहीं होने के कारण चाहे राष्ट्रपति का चुनाव हो राज्यसभा का चुनाव हो स्थानीय निकाय के चुनाव हो या आने वाले समय में होने वाले लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव हो सभी का गणित जनगणना के आधार पर गलत बैठता है. जिसके लिए सरकार के साथ ही देश के सभी राजनीतिक दल जवाबदार हैं. राजनीतिक दलों के लिए जनगणना से ज्यादा महत्वपूर्ण मतगणना है. क्योंकि मतगणना सत्ता में बैठाती है और सत्ता का सुख मतगणना से ही मिलता है. जनगणना से नहीं मिलता अतः सरकार का विश्वास भी जनगणना में नहीं मतगणना में है।