
अशोक भाटिया
एनडीए की पार्टनर लोजपा (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य चिराग पासवान अपने अलहदा तेवर के कारण अबूझ पहेली बन गए हैं। वे नरेंद्र मोदी सरकार पर अंगुली उठाने से परहेज नहीं करते। नीतीश कुमार से पंगा उनकी पुरानी पहचान है। हालांकि वे उनसे बड़े अपनाने के साथ मिलते भी रहे हैं। एनडीए की विरोधी विपक्षी पार्टियों के सुर में सुर मिलाने से वे परहेज नहीं करते। बिहार में अपराध को लेकर चिराग की चिंता ठीक वैसी ही दिखती है, जैसे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के तेजस्वी यादव और जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर चिंतित दिखते हैं। इतना ही नहीं, नीतीश कुमार की कब्र खोदने में दिन-रात एक किए बिहार का भ्रमण कर रहे प्रशांत किशोर और चिराग पासवान का परस्पर प्रेम भी झलकता रहा है। दोनों एक-दूसरे की प्रशंसा ऐसे करते हैं, जिससे बिहार में एक नए सियासी गठबंधन की आहट का भ्रम होने लगता है।
बिहार में इस साल विधानसभा का चुनाव होना है। जाहिर है कि चिराग की पार्टी भी इस चुनाव में उतरेगी। उनके पास बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट के कंसेप्ट के अलावा कोई मुद्दा तो है नहीं। यही वजह है कि वे बिहार में क्राइम की स्थिति पर विपक्ष की तरह नीतीश कुमार की सरकार पर हमलावर हैं। उन्हें कभी बिहार लहूलुहान लगता है तो कभी प्रशासन अपराध नियंत्रण में पूरी तरह फेल नजर आता है। वे कहते हैं कि प्रशासन निकम्मा हो गया है। हत्या, बलात्कार जैसे अपराध हो रहे हैं। इसे चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। यह संभव है, लेकिन अपराधों पर अंकुश लगाना तो प्रशासन का ही काम है। प्रशासन इसमें फेल है। बिहार के लोगों के लिए यह स्थिति भयावह है। उन्हें इस बात पर दुख है कि वे ऐसी सरकार का समर्थन कर रहे हैं। अपराध को लेकर चिराग सीएम नीतीश कुमार को पत्र भी लिख चुके हैं।
बताया जाता है कि चिराग जो कुछ बोल रहे हैं, उसके पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है। कैसे उनकी पार्टी को एनडीए में ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलें। इसके लिए उन्होंने दबाव का यह अनोखा तरीका अपनाया है। हालांकि उनके इस तरीके के केंद्र में नीतीश कुमार ही हैं, जिनसे वे 2020 में भी पंगा ले चुके हैं। चिराग कहते हैं कि उन्हें खत्म करने की कोशिश होती रही है। उनकी पार्टी में विभाजन कराया गया। परिवार को विभाजित किया गया। उन्हें बम से उड़ाने की साजिश रची जा रही है। वे खुद विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा करते हैं और सभी 243 सीटों पर कैंडिडेट उतारने की बात करते हैं। वे उन इलाकों में सभाएं कर रहे हैं, जहां एनडीए के दूसरे नेताओं का प्रभाव माना जाता है। वे सरकार की आलोचना विपक्ष की तरह करते हैं। एनडीए के खिलाफ बिहार में अलख जगा रहे जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर से अपने मधुर रिश्तों की बात बताते हैं। वे यह भी कहते हैं कि एनडीए छोड़ेंगे नहीं। उनकी इस तरह की विरोधाभाषी बातों से कन्फ्यूजन स्वाभाविक है। जानकार मानते हैं कि उनका सारा खेल टिकटों के लिए है।
साल 2005 में दो बार बिहार विधानसभा के चुनाव हुए थे। पहले चुनाव में त्रिशंकू जनादेश आया था। तब चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में मंत्री थे। केंद्र सरकार में गठबंधन साझीदार होने के बावजूद एलजेपी ने बिहार चुनाव अकेले लड़ा और पार्टी 29 सीटें जीतकर किंगमेकर के तौर पर उभरी। तब आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और 92 सीटों के साथ एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन। कांग्रेस के 10, सपा के चार, एनसीपी के तीन और लेफ्ट के 11 विधायक थे। आरजेडी को कांग्रेस और इन छोटी पार्टियों के साथ ही केंद्र में गठबंधन सहयोगी एलजेपी के समर्थन से सरकार बना लेने का विश्वास था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
सत्ता की चाबी लेकर घूम रहे रामविलास पासवान ने तब मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग कर पेच फंसा दिया। नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए ने सरकार बनाई, लेकिन अल्पमत की यह सरकार भी अधिक दिनों तक नहीं चल सकी। नीतीश को कुर्सी छोड़नी पड़ी और उसी साल अक्टूबर में दोबार चुनाव हुए। 2005 के दूसरे चुनाव में एलजेपी की सत्ता की चाबी खो गई और एनडीए ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। ऐसा भी समझा जाता है कि इन चुनावों में क्या चिराग भी अपनी पार्टी के लिए सत्ता की चाबी खोज रहे हैं?
इसी कारण शायद चिराग बिहार सरकार कि आलोचना करने से भी नहीं डर रहे । बिहार की राजधानी पटना में व्यवसायी गोपाल खेमका की हत्या के मामले पर चिराग पासवान ने चिंता जताई। उन्होंने कहा, ‘ऐसी घटनाएं उस सरकार में हो रही हैं, जिसकी पहचान सुशासन की है। मैं भी उस सरकार का समर्थन कर रहा हूं। यह वाकई चिंता का विषय है। मैं इस सवाल से भागने की कोशिश नहीं करूंगा, न ही हमारी सरकार को ऐसा करने की कोशिश करनी चाहिए। अगर इतनी बड़ी घटना शहरी इलाकों में खुलेआम होती है, अगर इतने पॉश इलाके में होती है, तो यह बहुत गंभीर मामला है। मैं सरकार के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन के भी संपर्क में हूं… लेकिन ऐसी घटनाएं हमारी चिंता बढ़ाती हैं …. अगर परिवार (गोपाल खेमका का) डरा हुआ है, तो यह जायज है। यह ऐसा परिवार है जिसने पहले भी इसका सामना किया है। क्या स्थानीय प्रशासन ने परिवार को सुरक्षा मुहैया कराई?….. यह प्रशासन की जिम्मेदारी थी।’चिराग पासवान ने कहा कि हत्या चाहे राजधानी पटना में हो या बिहार के किसी दूर-दराज के गांव में, सरकार को कानून-व्यवस्था के लिए जवाहदेह होना पड़ेगा। चिराग ने कहा कि सरकार जवाबदेही से भाग नहीं सकती। शहरी इलाके में खुलेआम घटना घट जाती है। थाना बगल में था, अधिकारी उसी इलाके में रहते हैं। इतने पॉश इलाके में ऐसी घटना घट जाती है तो चिंता का विषय है। सुशासन के राज में अपराधियों को इतना बल कहां से मिल गया ये हमें देखना होगा। सरकार को गंभीर होना होगा। लोजपा प्रमुख ने कहा कि बिहार में डोमिसाइल नीति लागू होनी चाहिए, मैं इसके समर्थन में हूं। उन्होंने तेजस्वी यादव का नाम लिए बिना कहा, ‘बिहार में 2023 में जब महागठबंधन की सरकार थी तो उस वक्त राजद के उपमुख्यमंत्री और राजद के शिक्षा मंत्री थे, जिन्होंने डोमिसाइल नीति को समाप्त किया।’
चिराग के चुनाव लड़ने पर आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार में चुनाव से पहले ही NDA में सिर फुटव्वल शुरू हो गई है और मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हो गए हैं। तिवारी ने कहा कि LJP(R) अब चिराग पासवान को सीएम कैंडिडेट बता रही है और जेडीयू-बीजेपी नीतीश कुमार को सीएम कैंडिडेट बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि NDA में चिराग की पार्टी की लगातार उपेक्षा हो रही है।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि चिराग की यह रणनीति एनडीए की सुनियोजित चाल हो सकती है. दरअसल, बीजेपी बहुत हद तक नीतीश कुमार पर निर्भर है, ऐसे में चिराग पासवान को तेजस्वी यादव की युवा अपील और आक्रामक छवि की काट के रूप में इस्तेमाल कर रही हो. चिराग की दलित और पासवान वोटों (लगभग 6%) पर पकड़ और उनकी ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ की छवि उन्हें युवा मतदाताओं के बीच आकर्षक बनाती है. दूसरी ओर, कुछ का मानना है कि चिराग अपनी मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षा को पोषित कर रहे हैं. हाल के सर्वे में उनकी लोकप्रियता 10.6% रही जो नीतीश (18.4%) और तेजस्वी (36.9%) से कम है, लेकिन प्रशांत किशोर (16.4%) से ज्यादा है. चिराग पासवान की यह रणनीति एनडीए को मजबूत करने के साथ-साथ जदयू को दबाव में रख सकती है. उनकी आलोचना से नीतीश की ‘सुशासन’ छवि को नुकसान हो सकता है जिसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है. वहीं, तेजस्वी यादव पर हमले महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं. हालांकि, अगर चिराग की यह रणनीति बैकफायर करती है तो एनडीए की एकता खतरे में पड़ सकती है जैसा कि 2020 में हुआ था. चिराग की युवा अपील और आक्रामक शैली उन्हें भविष्य का बड़ा नेता बना सकती है, लेकिन अभी उनकी असल मंशा एक रहस्य बनी हुई है.
सूत्रों की मानें तो पार्टी ने 41 सीटें चिह्नित की हैं। इसकी सूची भाजपा को उन्होंने सौंप दी है। इन सीटों में ज्यादातर जेडीयू के हिस्से की रही हैं। जाहिर है कि जेडीयू इसके लिए तैयार नहीं होगी। चूकि मौजूदा विधानसभा में LJPR का कोई विधायक नहीं है, इसलिए चिराग को सीटें देने में परेशानी तो होगी ही। वैसे भी चिराग को इतनी सीटें मिलनी मुश्किल हैं। बहुत हुआ तो उन्हें 15-20 सीटें मिल सकती हैं। इसलिए चिराग ने पहले से ही दबाव बनाना शुरू कर दिया है। नीतीश कुमार पर हमलावर होने की एक ही वजह है कि टिकटों के बंटवारे में निर्णय उन्हीं को लेना है। चिराग ऐसे तेवर दिखा कर शायद नीतीश को डराना चाहते हों कि उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे 2020 के रास्ते पर भी जा सकते हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि एनडीए के दूसरे घटक दल उतने बेताब नहीं दिखते, जितनी बेचैनी में चिराग नजर आते हैं। सच तो यह है कि उनकी अटपटी बतकही घटक दलों को भी नहीं सुहा रही। अपराध पर चिराग के आरोपों पर हम के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी शालीन शब्दों में सटीक जवाब दिया है। उन्होंने कहा है कि चिराग ने वह दौर देखा ही कहां है, जो ये बता सकें कि अपराध कब अधिक हुए।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार