शिशिर शुक्ला
अभी कुछ दिन पूर्व नई दिल्ली में जी–20 देशों की संसद के अध्यक्षों के सम्मेलन पी–20 में सभी सदस्यों के द्वारा मानव अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता जताते हुए वैश्विक स्तर पर काम काज में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बढ़ते प्रयोग पर चिंता जताई गई। सम्मेलन में यह कहा गया कि एआई का उपयोग केवल विकास के लिए ही ठीक है। वास्तव में एआई को लेकर मस्तिष्क में चिंता का तूफान उठना नितांत स्वाभाविक है, क्योंकि एक तो आज का दौर धीरे-धीरे पूर्णतया कृत्रिमता के दौर का रूप लेने की ओर अग्रसर है और उसमें भी एआई तकनीक ने, जोकि संभवत: कृत्रिमता के क्षेत्र में एक नई क्रांति है, हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित करने की संभावनाओं में अभूतपूर्व वृद्धि कर दी है। यह मानव स्वभाव है कि हम स्वयं को सुविधाओं का जितना अधिक आदी बना देंगे, हमारा शरीर एवं मस्तिष्क उतना ही अधिक सुविधाओं की मांग और करेगा। हाल ही में हुए शोध के अनुसार एआई पर आधारित सॉफ्टवेयर चैट जीपीटी दुनिया के एक तेज तर्रार इंसान की तरह सोच सकता है। इसके अतिरिक्त चिकित्सा क्षेत्र में एआई सॉफ्टवेर न्यूट्रॉन के बारे में कहा गया है कि यह जीने व मरने की भविष्यवाणी करेगा। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि यदि ये सभी सुविधाएं हमें एक उत्कृष्ट स्तर पर मिलने लगीं, तो इस बात का क्या भरोसा है कि इस तकनीक का प्रयोग केवल और केवल मानव विकास एवं कल्याण हेतु ही किया जाएगा। यदि कुछ दशक पीछे लौट चलें तो हम पाएंगे कि इंटरनेट क्रांति अपने समय तक की सबसे बड़ी क्रांति थी। संभवत: उस समय भी यही उम्मीद जगी होगी कि इंटरनेट का आविष्कार होने से मानव विकास एक नवीन स्तर को स्पर्श करेगा। किन्तु यदि आज की स्थिति पर गौर करें तो शायद ही कोई ऐसा दिन जाता हो जबकि इंटरनेट से जुड़े अपराधों एवं साइबर ठगी से संबंधित घटनाएं प्रकाश में न आती हों। कहने का तात्पर्य है कि जो तकनीक उम्मीदो एवं आशाओं की किरणों को लक्ष्य मानकर विकसित की गई थी, आज वही तकनीक हमारी चिंताओं का कारण बनकर हम पर भारी पड़ रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वस्तुतः बहुत ही उच्च कोटि की एल्गोरिदम एवं प्रोग्रामिंग की सहायता से तैयार किए गए सॉफ्टवेयरों का समूह है जिनको यथोचित कमांड देने से हमारे जटिल से जटिल प्रश्न हल हो सकते हैं। यदि सकारात्मक पक्ष से देखा जाए तो निस्संदेह एआई तकनीक हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यह एक पूर्ण सत्य है कि किसी भी तकनीक का नकारात्मक पहलू हम स्वयं विकसित करते हैं, उदाहरण के लिए इंटरनेट को अपराध की दुनिया में घसीट लेना मानव के द्वारा ही उठाया गया एक मूर्खतापूर्ण कदम है।
एक कहावत है कि, बेटा बेटा होता है और बाप बाप। यही कहावत एआई तकनीक के लिए भी लागू होती है, अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता चाहे कितनी भी प्रगति क्यों न कर ले किंतु यह मानव की प्राकृतिक तर्कक्षमता, विचारशीलता एवं सृजनात्मकता का स्थान कदापि नहीं ले सकती। किंतु चिंता का विषय यह नहीं है, चिंता तो इस बात की है कि यदि एआई आधारित सॉफ्टवेयर एवं टूल्स इसी तरह इस्तेमाल किए जाएंगे तो हमारी युवाशक्ति को मानसिक रूप से अपंग होने से कोई नहीं बचा पाएगा। आज प्राय: ऐसा होता है कि कक्षा में दिए गए होमवर्क अथवा असाइनमेंट का बोझ विद्यार्थी अपने मस्तिष्क पर न डालकर चैट जीपीटी जैसे सॉफ्टवेयर की मदद से उन्हें हल करता है। संभव है कि ऐसा करने से थोड़े समय की बचत हो जाए, किंतु लगातार ऐसा करना विद्यार्थी को उस मानसिक स्थिति की ओर धकेल सकता है जबकि वह किसी भी समस्या अथवा चुनौती के निराकरण हेतु मानसिक रूप से अपने आप को तैयार नहीं कर पाएगा। निस्संदेह एआई तकनीक शिक्षा, चिकित्सा, रक्षा, कृषि एवं प्रौद्योगिकी के लिए एक ब्रह्मास्त्र की तरह है किंतु हमें इस ब्रह्मास्त्र का प्रयोग विकास के लिए करना चाहिए न कि विनाश के लिए। यह तभी संभव होगा जब कहीं न कहीं हम एआई को नियमों व कानूनों के दायरे में बांध दें। सर्वप्रथम तो स्कूली बच्चों व कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए एआई के प्रयोग को पूर्णरूपेण सीमित कर देना चाहिए, ताकि वे अपने किसी भी तरह के शैक्षिक कार्य में एआई की सहायता न लें। युवाशक्ति हेतु ऐसे काउंसलिंग कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए जिससे कि वे एआई के न्यूनतम उपयोग हेतु अभिप्रेरित हों। इसके अतरिक्त साफ्टवेयर कंपनियों को भी अनावश्यक फीचर उपल्ब्ध कराने पर रोक लगाते हुए नियंत्रणपूर्वक कदम उठाना चाहिए। इतना निश्चित है कि बिना बंधनों एवं नियमों को लागू किए, एआई को विनाश के दायरे में जाने से रोक पाना नामुमकिन है।