अजय कुमार
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अन्य पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) समाज हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है.लेकिन ओबीसी वोटर कभी किसी पार्टी के ‘बंधुआ’ बनकर नहीं रहे,परंतु जिसके भी साथ रहे उसकी तकदीर बदल दी और जिसका साथ छोड़ दिया वह कहीं का नहीं बचा.एक समय ओबीसी कांग्रेस का मजबूत वोटर हुआ करता था.अस्सी के दशक तक ओबीसी वोटरों का साथ कांग्रेस को मिलता रहा,जिसके बल पर कांग्रेस ने 1989 तक यूपी में सत्ता सुख उठाया,इसके बाद राम मंदिर की राजनीति में ओबीसी पाला बदलकर भारतीय जनता पार्टी के साथ हो गया.वहीं ओबीसी में आने वाले करीब 8 फीसदी यादव वोटर समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ गये,जो आज तक इमोशनल वजह से सपा के साथ लगाव रखता है,क्योंकि सपा की मुख्य लीडरशीप का यादव बिरादरी से ताल्लुक रखती है.एक मोटे अनुमान के अनुसार यूपी में ओबीसी वोटरों की आबादी करीब 42 फीसदी है.इसीलिए इस वर्ग का मोह कोई छोड़ नहीं पाता है.यह कहने में भी किसी को संकोच नहीं होगा कि आज बीजेपी ओर मोदी जिस मुकाम पर हैं,उसके पीछे की सबसे बड़ी वजह ओबीसी वोटर ही हैं,जो पूरी तरह से बीजेपी के साथ लामबंद हैं.इसी वोट बैंक में सेंधमारी के लिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व लगातार प्रयासरत है.कांग्रेस द्वारा जातीय जनगणना की मांग भी इसीलिए की जा रही है ताकि बीजेपी के ओबीसी वोटरों को अपने(कांग्रेस) पाले में खींचा जा सके. इसको लेकर राहुल गांधी लगातार बयानबाजी करते रहते हैं,जबकि एक समय कांग्रेस जातीय जनगणना के बिल्कुल खिलाफ हुआ करती थी,कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू,इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जातीय जनगणना की मांग को विघटनकारी मानकर इसका सदैव विरोध करते रहे थे.जबकि जातीय राजनीति करने वाले तमाम क्षेत्रीय दल जातीय जनगणना की वकालत में लगे रहते थे.इसमें समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव से लेकर राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव जैसे नेता शामिल थे.मगर इन नेताओं ने सत्ता में रहते हुए कभी भी जातीय जनणना कराये जाने की ठोस शुरूआत नहीं की थी.क्योंकि वह जानते थे कि जातीय जनगणना कराये जाने की मांग करके सियासी फायदा तो उठाया जा सकता है,लेकिन इसके सहारे सत्ता चलाना कभी आसान नहीं रहेगा.
खैर,आज की कांग्रेस का ‘स्वभाव’ बिल्कुल बदल गया है.वह येन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने से गुरेज नहीं करती है.जब से बिहार में जातीय जनणना के नतीजे आये हैं तब से जातीय जनगणना कराये जाने को लेकर कांग्रेस में उतावलापन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है.कांग्रेस जातीय जनगणना को मुद्दा बनाकर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी बिसात बिछाने की तैयारी कर रही है.इसी लिए जातीय जनगणना पर अपनी नीति साफ करने और आगे के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करने के लिए यूपी कांग्रेस लगातार ओबीसी वोटरों को लामबंद करने में लगी है. इसी क्रम में 30 अक्टूबर को लखनऊ के गांधी भवन सभागार में हुए कांग्रेस के राज्य स्तरीय पिछड़ा वर्ग सम्मेलन में तय किया गया है कि जातीय जनगणना की मांग को लेकर योगी सरकार पर दबाव बनाने के लिए पिछडों के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाया जायेगा.कार्यक्रम में कांग्रेस के प्रदेश भर के ओबीसी नेताओं की जुटान देखने को मिली. यूपी कांग्रेस के इस सम्मेलन में जातीय जनगणना और ओबीसी समाज को लेकर आगे के कार्यक्रम के स्वरूप पर चर्चा के साथ तय किया गया कि इस मुद्दे पर प्रत्येक विधान सभा क्षत्र में जनसभा करके जातीय जनगणना के फायदे और कांग्रेस के एजेंडे सेे काकिफ किया जायेगा.
गौरतलब हो, यूपी कांग्रेस जातिगत जनगणना की मांग को लेकर इस साल मई से कार्यक्रम चला रही है। मंडलवार सम्मेलनों के बाद जिलावार सम्मेलन किए गए थे. इसमें कांग्रेस की तरफ से जातिगत जनगणना की मांग पर राय स्पष्ट की गई और लोगों को ओबीसी समाज के लिए कांग्रेस की नीतियों से अवगत करवाया गया. अब कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर और निचले स्तर पर जाना चाहती है.यूपी कांग्रेस द्वारा अब तक कराये गये कार्यक्रमों में ओबीसी समाज के लिए कांग्रेस की नीति साफ करने के लिए पर्चे बांटे गए थे. इसमें प्रदेश कांग्रेस की तरफ से बताया गया था कि अब तक कांग्रेस ने ओबीसी समाज के लिए क्या किया है. इन पर्चों में मंडल कमिशन के अध्यक्ष रहे बिहार के पूर्व सीएम बीपी मंडल के पूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को लिखे पत्र का भी जिक्र है, जिसमें उन्होंने कहा कि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के प्रशासनिक और व्यक्तिगत सहयोग के बिना मंडल कमीशन की रिपोर्ट तैयार नहीं हो सकती थी.
लब्बोलुआब यह है कि अपनी स्थापना के करीब सवा सौ साल बाद कांग्रेस पहली बार खुलकर ओबीसी राजनीति के रास्ते पर आगे बढ़ रही है. उदयपुर और फिर रायपुर सम्मेलन में कांग्रेस के राजनीतिक प्रस्तावों में जातिगत जनगणना को लेकर प्रस्ताव पास हुए थे. कांग्रेस की पिछली कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में भी जातिगत जनगणना की मांग पर चर्चा हुई थी और इसकी मांगों को लेकर कार्यक्रम किए जाने पर सहमति बनी थी. यूपी में इस मसले पर अलग-अलग कार्यक्रम जारी हुए और इसे चुनाव तक आगे जारी रखने की योजना बनाई गई है.देखना यह है कि कांग्रेस का यह दांव ओबीसी वोटरों को कितना प्रभावित करता है,वैसे कुछ हद तक इसकी तस्वीर पांच राज्यांे में होने वाले विधान सभा चुनाव से भी साफ हो जायेगी,जहां कांग्रेस ने जातीय जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाया है और सत्ता में आने पर जातीय जनगणना कराये जाने का दावा कर रही है.