विरासत टैक्स एवं निजी सम्पत्ति सर्वे पर संकट में घिरी कांग्रेस

Congress in trouble over inheritance tax and personal property survey

ललित गर्ग

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जनता के बीच जिस तरह के मुद्दों को लेकर चर्चा में हैं, उनमें देश विकास से अधिक मुक्त की रेवड़िया बांटने या अतिश्योक्तिपूर्ण सुविधा देने की बातें हैं तो ‘विरासत टैक्स’ के नाम पर जनता की गाड़ी कमाई को हड़पने के सुझाव है। ऐसी विरोधीभासी सोच एवं योजनाएं कांग्रेस की अपरिपक्व एवं स्वार्थप्रेरित राजनीति को ही उजागर करती है। इंडिया ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष एवं राहुल गांधी के विश्वस्त सलाहकार सैम पित्रोदा ने चुनावी समर में अपने ताजा बयान में विरासत टैक्स की वकालत की है। उन्होंने अमेरिका में लागू इस टैक्स की पैरवी करते हुए भारत के लिये उपयोगी बताया। सैम ने अपने बयान पर विवाद बढ़ता देख सफाई दी है, तो कांग्रेस ने इस बयान से खुद को अलग कर लिया है। लेकिन राजनीति की इन कुचालों एवं ऐसे बयानों में कांग्रेस का इरादा जनता की मेहनत की कमाई की संगठित लूट और वैध लूट ही नजर आता है। सैम पित्रोदा के बयान में कांग्रेस की सोच एवं संकल्प ही नहीं दिखा बल्कि कांग्रेस की भावी योजनाओं की परतें भी खुली है। भले ही इस बयान ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हो, लेकिन जनता को मूर्ख समझ हर बार हंगामा खड़ा करना कांग्रेस की नीति एवं नियत रही है। सैम ऐसे ही विवादास्पद बयानों से पूर्व में भी चर्चा में रहे हैं।

अमेरिका में विरासत टैक्स जैसी अनेक स्थितियां एवं कानून हैं जो भारत में नहीं है क्योंकि हर देश की अपनी स्थितियां होती है। सैम के इस बयान ने इसलिए तूल पकड़ लिया, क्योंकि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में लोगों की संपत्ति के सर्वे का वादा किया है। इसकी व्याख्या भाजपा पहले से ही इस रूप में कर रही है कि कांग्रेस लोगों की संपत्ति का आकलन करके संपन्न-सक्षम लोगों की संपदा का एक हिस्सा लेने का इरादा रखती है। चूंकि सैम पित्रोदा का कथन कुछ इसी ओर संकेत करता दिख रहा था, इसलिए भाजपा ने नए सिरे से उनके बयान को मुद्दा बना दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो कहा जब तक आप जीवित रहेंगे, तब तक कांग्रेस आपको ज्यादा टैक्स से मारेगी और जब जीवित नहीं रहेंगे, तब आप पर विरासत का बोझ लाद देगी।’ कांग्रेस की लूट जिन्दगी के साथ भी और जिन्दगी के बाद भी कह कर मोदी ने कांग्रेस को निशाने पर लिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी यह कह दिया कि यदि कांग्रेस वैसा कुछ करने का नहीं सोच रही है, जैसा सैम पित्रोदा कह रहे हैं तो वह अपने घोषणा पत्र से संपत्ति के सर्वेक्षण वाली बात हटाए।’ निश्चित ही कांग्रेस की संपत्ति के सर्वेक्षण की बात में गहरे अर्थ, संदेह एवं शंकाएं निहित हैं।

राजननेताओं के बयानों पर राजनीति होना लोकतंत्र का एक हिस्सा है, लेकिन जनता के हितों पर आघात करना दुर्भाग्यपूर्ण है।

लोकतन्त्र में सतत् रूप से अमीर-गरीब का विमर्श चलता रहता है, गरीबों के हित की बात करके अधिसंख्य मतदाताओं को लुभाना राजनीतिक चतुराई है, लेकिन जनता को बांटना एवं अलग-अलग खेमों में खड़ा करना, लोकतंत्र को कमजोर करता है।

मगर भारत का मतदाता अब इतना सुविज्ञ एवं समझदार हैं कि वे राजनेताओं की मंशा को समझकर उस समय आगे बढ़कर नेतृत्व खुद संभाल लेते हैं जब नेतागण अपना पथ भूल जाते हैं। भारत के चुनावों का इतिहास इसका गवाह रहा है। इसलिए राजनैतिक विमर्श चाहे जितना गर्त में चला जाये मगर मतदाता की सूझबूझ, जागरूकता एवं विवेक कभी मंद नहीं पड़ती।

भले ही सैम पित्रोदा अमेरिका का उदाहरण देकर उस पर भारत में बहस की जरूरत जता रहे थे, लेकिन उन्हें गलत समय ऐसा उदाहरण नहीं देना चाहिए था, जो तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह भारत की परिस्थितियों के लिये सही न हो और जिसके विवाद का विषय बनने की भरी-पूरी संभावनाएं हो। यह तो कांग्रेस ही जाने कि वह संपत्ति के सर्वे के जरिये क्या हासिल करना चाहती है, लेकिन इससे इन्कार नहीं कि देश में आर्थिक असमानता कम करने की आवश्यकता है। इसके बाद भी इस आवश्यकता की पूर्ति न तो वामपंथी सोच वाले तौर-तरीकों से की जा सकती है और न ही उन उपायों से, जो समाज में विभाजन पैदा करें। जो भी निर्धन-वंचित हैं या सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछडे़ हैं, उनके उत्थान की अतिरिक्त चिंता की जानी चाहिए, लेकिन बिना उनका जाति, मजहब देखे, बिना विभाजन की राजनीति को किये।

सैम पित्रोदा, राजनीति की दुनिया में यह नाम कोई नया नहीं है, कांग्रेस के शासन में तकनीकी एवं आधुनिक विकास के वे पुरोध रहे हैं। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के सलाहकार रह चुके पित्रोदा इस समय राहुल के खास लोगों में से एक हैं। पित्रोदा अपने काम से कम अपने बयानों के चलते ज्यादा चर्चे में रहते हैं। उनके बयान अक्सर कांग्रेस के लिए भी सरदर्द बनते रहे हैं। पित्रोदा के अनेक बयान पहले भी विवाद एवं कांग्रेस के सिरदर्द की वजह बन चुके हैं। साल 2019 में ही उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि मिडिल क्लास को स्वार्थी नहीं होना चाहिए। उन्हें अधिक से अधिक टैक्स देने के लिए तैयार रहना चाहिए। मध्यमवर्गीय परिवार को रोजगार और अधिक अवसर मिलेंगे। इस बयान ने भी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाई थीं और पार्टी को डैमेज कंट्रोल करना पड़ा था। पित्रोदा यहीं नहीं रुके, उन्होंने 2019 के ही पुलवामा हमले पर कहा था कि ऐसे हमले तो होते रहते हैं, मुंबई में भी हमला हुआ था। निश्चित ही कांग्रेस के शासन में ऐसे हमले एवं साम्प्रदायिक दंगे होते ही रहते थे। उन्होंने बालाकोट एयरस्ट्राइक ऑपरेशन पर सबूत मांगे थे।

सैम पित्रोदा के बयान एवं कांग्रेस के घोषणा पत्र के निजी सम्पत्ति सर्वे की बात में अवश्य ही रिश्ता है, जिसने पूरे देश के सामने कांग्रेस का मकसद स्पष्ट कर दिया है कि निजी संपत्ति का सर्वे कर निजी संपत्ति को सरकारी खजाने में डालकर वह इस धन को अपने वोट बैंक में बांटना चाहती है। ऐसी योजना यूपीए सरकार में तय भी हुई थी कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यक और उसमें भी सबसे अधिक मुस्लिमों का है, उस प्रकार से कांग्रेस की यह मुसलमानों को लुभाने एवं उन्हें लाभ पहुंचाने की अघोषित चुनावी घोषणा है, इस तरह की घोषणाएं लोकतंत्र में सुशासन एवं राजनीति मूल्यों को धुंधलाने की कुचेष्टा ही कही जायेगी। लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेता बादशाह नहीं होता बल्कि साधारण मतदाता बादशाह होता है क्योंकि उसके ही एक वोट से सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। मतदाता को जो मूर्ख समझते हैं उनसे बड़ा मूर्ख दूसरा नहीं होता। ऐसे तथाकथित बयानों से भारत में संसदीय प्रणाली का लोकतंत्र कभी भी प्रभावित नहीं होगा, वह सफल रहा है और रहेगा क्योंकि भारत के लोग अनपढ़ व गरीब हो सकते हैं मगर वे अज्ञानी या मूर्ख नहीं है। उनका व्यावहारिक ज्ञान बहुत मजबूत होता है और वे राजनीतिक दलों के भ्रम में नहीं आने वाले, गुमराह नहीं होने वाले। यह सच है कि जब से भारत में जातिवादी, क्षेत्रवादी, भाषावादी, वर्गवादी व सम्प्रदायवादी राजनीति का बोलबाला हुआ है तभी से राजनीति के विमर्श में गिरावट आनी शुरू हुई है, लेकिन इस गिरावट को संभालने के लिये मतदाता को अधिक परिवक्व एवं समझदार होने की अपेक्षा है।