प्रो. नीलम महाजन सिंह
एक प्रजातंत्र में नागरिक अधिकारों व कर्तव्यों की अहम भूमिका होती है। ‘पीपल्स चार्टर’ विश्व के प्रमुख प्रजातांत्रिक देशों में लागू किया जाता है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका, कार्यपालिका व विधायिका की स्वतंत्र भूमिका है। हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने, नई दिल्ली में सी.बी.आई. स्थापना दिवस पर 20वां डी.पी. कोहली स्मारक व्याख्यान में कहा, “प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते समय नैतिक विचारों को प्राथमिकता देना अनिवार्य है’”। डिजिटल परिवर्तन के युग में, कानून व प्रौद्योगिकी के बीच परस्पर क्रिया से अपराध का बेहतर पता लगाने व आपराधिक न्याय सुधार सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है। अधिकार क्षेत्र व गोपनीयता के मुद्दों से लेकर जवाबदेही व पारदर्शिता के सवालों तक, हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी के एकीकरण के लिए नैतिक, कानूनी व सामाजिक निहितार्थों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी की क्षमताओं को अपनाने में, हमें निष्पक्षता, समानता व जवाबदेही के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करनी है। इन उपकरणों का ज़िम्मेदारी व नैतिक रूप से लाभ उठाकर, यह सुनिश्चित होता है कि तकनीकी प्रगति का लाभ समाज के सभी सदस्यों तक पहुंचे, चाहे उनकी पृष्ठभूमि या परिस्थितियां कुछ भी हो। हालांकि, इन प्रौद्योगिकियों के उपयोग में नैतिक विचारों को प्राथमिकता देना अनिवार्य है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व अन्य उन्नत प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग या दुरुपयोग को रोकने, गोपनीयता अधिकारों की रक्षा करने और अनजाने में उत्पन्न होने वाले पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश व सुरक्षा उपायों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। जांच एजेंसियों को डिजिटल रूप से जुड़ी दुनिया में अपराध में आमूल-चूल परिवर्तनों के साथ बने रहना चाहिए। अपराध की वैश्विक प्रकृति के लिए विदेशों में समकक्षों के साथ व्यापक समन्वय और सहयोग की भी आवश्यकता होती है, जो जांच के आधुनिक उपकरणों के अलावा जांच प्रक्रिया को धीमा कर सकती है। ऐसे मामलों से निपटने के लिए कानून, प्रवर्तन अधिकारियों व डेटा विश्लेषकों सहित ‘डोमेन विशेषज्ञों’ से युक्त बहु-विषयक टीमों की सिफ़ारिश की आवश्कता है। हमारे बदलते समय की चुनौतियों का पुनर्मूल्यांकन करके व एजेंसीयों में संरचनात्मक सुधार करके उन्नत किया जा सकता है। कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग के तत्वावधान में, उन्होंने एजेंसीओं ने महत्वपूर्ण सुधार किए हैं, जिससे केंद्र में ‘नेटवर्क फॉर एविडेंस ट्रेसिंग रिसर्च एंड एनालिसिस’ (NETRA) लैब की स्थापना हुई है। ‘नेत्रा मोबाइल डिवाइस’, क्लाउड स्टोरेज व ई-डिस्कवरी सहित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का विश्लेषण करने की सीबीआई की क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। जांच प्रक्रिया में तेज़ी लाने व न्याय को तेज़ी और कुशलता से देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संसद द्वारा हाल ही में बनाए गए नए ‘आपराधिक कानूनों में मूल अपराध, प्रक्रिया और साक्ष्य शामिल हैं, जिसका उद्देश्य आपराधिक प्रक्रिया’ के विभिन्न पहलुओं को डिजिटल बनाना है, जो न्याय प्रणाली को आधुनिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ‘इंटरनेट एक्सेस या तकनीकी दक्षता’ के बिना व्यक्तियों के बाहर होने का जोखिम है। इस प्रकार यह सुनिश्चित करने की सख़्त आवश्यकता है कि डिजिटीकरण के लाभ समान रूप से वितरित किए जाएं और डिजिटल विभाजन को दूर करने के लिए तंत्र मौजूद हों। घटनाओं के क्रम को सुव्यवस्थित करने और वापस ट्रैक करने तथा शुरू से ही पारदर्शिता बढ़ाने के लिए प्राथमिकी दर्ज करने जैसी मूलभूत प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। प्रभावी व समयबद्ध अभियोजन के लिए जांच को अदालती प्रक्रियाओं के साथ समन्वयित किया जाना चाहिए। एजेन्सियों द्वारा की जाने वाली जांच की जटिल प्रकृति को देखते हुए, अदालतों के पास, मामले को आसान बनाने और यह सुनिश्चित करने का एक कठिन कार्य है कि न्याय प्रदान करने के लिए कानून के मापदंडों का पालन किया जाए। आज और कल की चुनौतियों के लिए एक संस्थागत प्रतिबद्धता की आवश्यकता है; एक ऐसी प्रतिबद्धता जिसके लिए बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के लिए समर्पित वित्त, आपराधिक न्याय प्रशासन के विभिन्न विंगों के बीच तालमेल व पर्यावरण में तेज़ी से बदलाव को समझने के लिए सभी कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए ‘कैलिब्रेटेड रणनीतियों’ की आवश्यकता है। अदालती प्रक्रियाओं के साथ प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुलिस अदालतों में अत्यधिक देरी के साथ-साथ आरोपों की गंभीरता दोष की धारणा में न बदल जाए ! ‘सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी’ द्वारा हाल ही में एक ‘वर्चुअल कोर्ट मॉडल’ विकसित किया गया था। जब इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया जाएगा, तो यह मौखिक को ‘टेक्स्ट या शब्दों’ में बदलने में सक्षम होगा। जांच या परीक्षण के विभिन्न चरणों के अनुरूप पूर्वनिर्धारित समयसीमा के साथ एक मोबाइल एप्लिकेशन डिज़ाइन किया जा सकता है। इसमें समयसीमा के निकट आने पर संबंधित पक्षों को सूचित करने के लिए एक अलर्ट सिस्टम शामिल होना चाहिए। एजेंसियों द्वारा उन्नत ‘डेटा एनालिटिक्स’ का उपयोग विशाल मात्रा में जानकारी को नेविगेट करने, पैटर्न को उजागर करने व कनेक्शनों को खोजने के लिए किया जाता है जो अन्यथा छिपे रह सकते हैं। हत्या की जांच में, अमेरिका में फोरेंसिक विशेषज्ञों ने संदिग्ध लोगों के साथ अपराध स्थल पर पाए गए आनुवंशिक सामग्री का मिलान करने के लिए उन्नत ‘डीएनए विश्लेषण तकनीकों’ का उपयोग किया है। सारांशाार्थ हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, पूर्वाग्रह व पक्षपात से मुक्त नहीं है। विषम डेटा के कारण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समुदाय-आधारित प्रोफाइलिंग को, हाशिए पर पड़े सामाजिक समूहों का विवरण प्रदान करना होगा। तलाशी और जब्ती शक्तियों (Search and seizure) के बीच नाज़ुक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है, व ‘व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकार’ एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज की आधारशिला है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की तलाशी और ज़ब्ती की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले, अच्छी तरह से परिभाषित कानूनी ढांचे की अनुपस्थिति पर प्रकाश डाला गया था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसियों को औपचारिक दिशा-निर्देश स्थापित होने तक डिजिटल साक्ष्य पर ‘सीबीआई (अपराध) मैनुअल:2020’ का पालन करने का निर्देश दिये गये है। भारत विश्व का अग्रिम प्रजातंत्र है। पुलिस विभाग से, आम जनमानस डरता है। पुलिस को जनता का मित्र तथा अपराधियों को गिरफ़्तार करने की भूमिका में ही होनी चाहिए। इसमे कोई शक नहीं है कि जांच एजेंसियों ने जान जोखिम में डालकर अनेक अपराधों को दण्ड प्रक्रिया के अनुरुप जनता की सेवा की है। परंतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व इन्टरनेट ने नागरिक सुरक्षा और निजिता पर गहरा प्रहार किया है। जनता अपराधों से सचेत रहे, क्योंकि साइबर क्राइम अब जीवनशैली का हिस्सा ही हैं, जोकि बहुत ही घातक सत्य है। सरकारों को नागरिक अधिकारों की सुरक्षा करना आवश्यक है।
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, मानवाधिकार संरक्षण सॉलिसिटर व कानून विशेषज्ञ)