राकेश अचल
सनातन परम्परा में आत्मा और परमात्मा के साथ ही सात जन्मों की मान्यता है। भारत में रहने वाले ज्यादातर सनातनी आत्मा और परमात्मा में विश्वास रखते हैं। कारण श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि –
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः। अर्थात इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते हैं और अग्नि इसे जला नहीं सकती है | जल इसे गीला नहीं कर सकता है और वायु इसे सुखा नहीं सकती है । आत्मा के बारे में ये ज्ञान हमारे देश में पढ़े-लिखों के साथ ही अनपढ़ों को भी है लेकिन राजनेताओं को नहीं है। इसीलिए वे आत्माओं का अपमान करने से नहीं चूकते। आम चुनावों के दौरान देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र दामोदर दस मोदी ने देश के सबसे बुजुर्ग नेता एनसीपी के अध्यक्ष श्री शरद पंवार को ‘ भटकती आत्मा’ कहकर उनका मन ही नहीं बल्कि उनकी आत्मा को भी दुखाया।
शरद पंवार हालाँकि देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाए लेकिन उनकी सियासी यात्रा के सामने माननीय मोदी जी अबोध शिशु जैसे ही हैं। उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि वे जिस पंवार को ‘ भटकती आत्मा ‘ कह रहे हैं वही भटकती आत्मा एक दिन उन्हें न सिर्फ श्राप देगी बल्कि चुनौती भी देगी। पंवार ने सोमवार को अहमदनगर में अपनी पार्टी की रजत जयंती के मौके पर आयोजित रैली में मोदी जी को इंगित करते हुए कहा कि- ये ‘ भटकती आत्मा ‘ उन्हें [मोदी जी को ]हमेशा परेशान करती रहेगी । शरद जी मानते हैं कि आत्मा अजर-अमर होती है। आपको बता दूँ कि शरद पवार की पार्टी ने 10 सीटों पर चुनाव लड़कर आठ सीटें जीती हैं। अपने भाषण के दौरान पवार ने मोदी पर तीखा हमला बोला तथा कहा कि -‘अब उनके पास लोगों का समर्थन नहीं है।’ पंवार ने कहा, ‘क्या उनके पास देश का जनादेश है? चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि मोदी के पास बहुमत नहीं है और उन्होंने टीडीपी और जेडीयू का समर्थन लेकर सरकार बनाई है।’
चुनावों में आप अक्सर ‘ आत्मा ‘ और ‘ अंतरात्मा ‘ की बातें सुनते आये है। श्रीमती इंदिरा गाँधी ने एक बार राष्ट्रपति चुनाव में ‘ अन्तरात्मा ‘ का आव्हान किया था। तब से राजनीति में ‘ अंतरात्मा ‘,’ आत्मा ‘ और ‘ भटकती आत्मा ‘ चलन में आ गयीं। हकीकत तो ये है कि आज की राजनीति में नेताओं के पास ‘ आत्मा ‘ और ‘ अंतरात्मा ‘ जैसी कोई चीज बची नहीं है। उनका ‘ महात्मा ‘ होना तो असम्भव है। ,किन्तु ‘ आत्मा ‘ अजर-अमर होती है इसलिए जिस्म के भीतर किसी न किसी कोने में ज़िंदा रहती है । जब मौक़ा मिलता है तो चौका मारती है। हमारी नानी जी कहतीं थीं कि ‘ आत्मा ‘ भले ही अजर-अमर है लेकिन है तो ज़िंदा,इसलिए कभी खुश होती है,कभी कलपती है। कभी मौन हो जाती है। इसलिए दुनिया में किसी की ‘ आत्मा ‘ को दुखाना नहीं चाहिए। लेकिन राजनीति में जब तक आप प्रतिद्वंदी की ‘आत्मा ‘ को दुखा नहीं लेते आपको सुख नहीं मिलता।
‘ आत्मा ‘ सूक्ष्म है ,नजर नहीं आती । जो ‘ आत्मा , ‘ परमात्मा ‘ से सम्पर्क स्थापित कर लेती है उसे ‘ महात्मा ‘ कहते है। कम से कम मोहन दास करमचंद गाँधी को तो इस देश में ‘ महात्मा ‘ कहा और माना जाता है। ये बात और है कि इस ‘ महात्मा ‘ को भी इस देश के राष्ट्रभक्तों ने गोलियों से छलनी कर दिया। उन्हें लगा होगा कि गांधी ‘ महात्मा ‘ से पिंड छूटा लेकिन हकीकत में ऐसा हुआ नहीं। हत्यारों के वारिसों को भी संविधान की शपथ लेने के बाद ‘ महात्मा गाँधी ‘ की समाधि पर सर झुकाना ही पड़ता है। ‘ महात्मा ‘ के आगे ‘ दुरात्माएं ‘ हों या साधारण ‘ आत्माएं ‘ अपने आप नतमस्तक हो जातीं हैं। उनके बारे में ये भ्रम फैलाया जाता है कि उन्हें रिचर्ड एटनबरो कि फिल्म बनने के बाद ही दुनिया ने पहचाना।
‘ महात्मा गाँधी ‘ की ‘ आत्मा ‘ को मारने वालों के वंशजों ने माननीय शरद पंवार साहब की ‘ आत्मा ‘ को गोलियों से तो छलनी नहीं किया किन्तु शब्दभेदी वाण ऐसे चलाये कि उनकी ‘ आत्मा ‘ विदीर्ण हो गयी। घायल मनुष्य हो ,’ आत्मा ‘ हो ,’ अंतरात्मा ‘ हो ‘ महात्मा ‘ हो या ‘ परमात्मा ‘ हो ,आह तो भरता है। पंवार साहब इसका प्रमाण हैं। उन्होंने अंतत: महामना मोदी जी को कह ही दिया कि उनकी ‘ भटकती आत्मा ‘ भविष्य में भी उनका पीछ नहीं छोड़ने वाली। मोदी जी के लिए ये शुभ संकेत नहीं है। क्योंकि मोदी जी अपने तीसरे कार्यकाल में अपने पहले और दुसरे कार्यकाल के मुकाबले क्षीण हैं ,उन्हें जेडीयू और टीडीपी की बैशाखियों का सहारा लेना पड़ा है। उन्हें सहारा देने वालों में शरद पंवार के भतीजे अजित पंवार भी हैं लेकिन उनकी क्या औकात महाराष्ट्र कि सियासत में है ये उनके ही चाचा यानि शरद पंवार की ‘ भटकती आत्मा ‘ ने बता दिया है।
‘ आत्मा ‘ को लेकर विभिन्न धर्मों में मतान्तर तो हैं किन्तु सब मानते हैं कि ‘ आत्माएं ‘ होती है। वे कभी-कभी भटक भी जाती है। अतृप्त भी रह जातीं है। इस्लाम वाले ‘ आत्मा ‘ को ‘ रूह ‘ कहते हैं। मुसलमानों कि पवित्र पुस्तक कुरआन कहती है कि -अल्लाह उनकी मृत्यु के समय ‘ आत्माओं ‘ को ले जाता है, और जो नहीं मरते उनकी नींद के दौरान। फिर वह उन लोगों को रखता है जिनके लिए उसने मौत का फैसला किया है और दूसरों को एक निश्चित अवधि के लिए रिहा कर देता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो विचार करते हैं..[कुरान 39:४२]। जैनी ‘ आत्मा ‘ को ‘ जीव ‘ यानि ‘ चेतना ‘ कहते है।
यहूदी तथा ईसाइयों के लिए ‘ आत्मा ‘ के अलग मायने हैं चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटर-डे सेंट्स सिखाता है कि ‘ आत्मा ‘ और शरीर मिलकर मनुष्य की ‘ आत्मा ‘ (मानव जाति) का निर्माण करते हैं। “आत्मा ‘ और शरीर मनुष्य की ‘ आत्मा ‘ हैं।”
मित्रो चूंकि मै एक साधारण व्यक्ति हूँ इसलिए ‘ आत्मा ‘,’ परमात्मा ‘ और ‘ महात्मा ‘ के अलावा ‘ भटकती आत्माओं ‘ के बारे में उतना ही जानता हूँ जितना कि एक सामान्य आदमी जानता है। हमारे यहां बचपन से ‘आत्मा-परमात्मा ‘ की बात होती रहती है ।
‘ महात्माओं ‘ को तो हमने देखा भी है । कुछ भिक्षाटन करते हैं और कुछ मठों में बैठकर ऐश करते हैं। अब मनुष्यों की तरह ‘ आत्माओं ‘ की भी तो किस्मत होती ही होगी। यदि न होती तो एक चाय बेचने वाले का लड़का देश का प्रधानमंत्री कैसे होता और एक शाहजादा अपने परनाना,नानी और पिता के प्रधानमंत्री होने के बाद भी प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन पाता ?
मेरे ख्याल से देश में ‘ आत्माओं ‘ और ‘ महात्माओं ‘ के मुकाबले ‘ भटकती आत्माओं ‘ की संख्या शायद ज्यादा है। हर दल में ,हर समाज में ,हर धर्म में ,हर जाति में ,हर सम्रदाय में ‘ भटकती आत्माएं ‘ मौजूद हैं। कुछ के बारे में कह दिया गया है और कुछ के बारे में नहीं। बेहतर हो कि देश की तमाम ‘ भटकती आत्माएं ‘ अपना एक अलग दल बनाकर अगला आम चुनाव लड़ें।
आरएसएस प्रमुख डॉ मोहन भागवत के पास भी एक ‘ आत्मा ‘ है जो प्राय : सोती रहती है और जब जागती है तब तक बहुत देर हो जाती है । उनकी ‘ आत्मा ‘ ने साल भर से जल रहे मणिपुर की सुध अब ली है । उन्हें बड़े नेताओं का अहंकार अब दिखा है ।
सियासत में अदावत का भान अब हुआ है। वो भी तब ,जब उनकी अपनी संतान भाजपा ने साफ़ कह दिया की उसे संघ की जरूरत नहीं है। ‘का बरसा जब कृषि सुखानी ?। डॉ भागवत शायद भूल गए की मूर्खों को उपदेश देने से उनका कोप शांत नहीं होता । मूर्खों को उपदेश देना जैसे नाग को दूध पिलाना है । कहते हैं कि नाग को दूध पिलाने से उसका विश और बढ़ता है। [ उपदेशो हि मूर्खाणां ,प्रकोपाय न शांतये ,पय पान :भुजङ्गानाम केवलं विष वर्द्धनम ]
बहरहाल मै माननीय शरद पंवार साहब की ‘ भटकती आत्मा ‘ के लिए और माननीय नरेंद्र मोदी जी की ‘ बहुरूपणी आत्मा ‘ के लिए सिर्फ प्रार्थना कर सकता हू। ईश्वर [ अगर कहीं है तो ] मेरी प्रार्थना सुन ले और सभी तरह की ‘ आत्माओं ‘ को परमशान्ति प्रदान करे। ॐ शांति।