दादरा नगर हवेली और दमण-दीव बहुत दिलचस्प है चुनावी-गाथा

Dadra Nagar Haveli and Daman-Diu is a very interesting election saga

डॉ. सुधीर सक्सेना

सामान्य ज्ञान के किसी भी विद्यार्थी के लिये नक्शे में ऊंगली रखकर यह बताना कठिन होगा कि दादरा- नगर हवेली और दमण-दीव कहाँ है। यह भी उसे शायद ही ज्ञात हो कि इन दोनों केन्द्रशासित राज्यों का सन 2019 में विलय हो चुका है और अब वे एक ही प्रशासक के अधीन है। बहरहाल, चुनाव की बात करें तो यह एकीकृत प्रदेश अब दो सांसदों को चुनकर लोकसभा में भेजेगा। इस बार भी पूर्व की भांति यहां दोनों सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के दरम्यान कड़ा संघर्ष है।

दादरा नगर हवेली और दमण-दीव की चुनावी गाथा बड़ी दिलचस्प है। सुंदर-सुरम्य दादरा- नगरहवेली का मुख्यालय सिलवासा है। यहां नदी है, हिरण-उद्यान है, लॉयन सफारी है, नक्षत्र गार्डन और ऐसा बहुत कुछ है, जो सैलानियों को लुभाता है। सन 2021 के उपचुनाव में यहाँ से शिवसेना की कलाबेन डेलकर चुनी जाकर लोकसभा में पहुंची थीं। उनके संसद में पहुंचने का संदर्भ उनके पति मोहनभाई डेलकर से जुड़ा हुआ है, जो सात बार यहाँ से चुने गये। कांग्रेस यहां से सन 67, 71 और 77 के चुनाव में जीती। सन 80 और 84 में निर्दल जीते तथा सन 91 और 96 में फिर कांग्रेस। सन 98 में बीजेपी ने पहली बार यह किला फतह किया, लेकिन संच 99 में निर्दलीय के हाथों में गंवा दिया। सन 2004 में डेलकर ने यहाँ भारतीय नव- शक्ति पार्टी का परचम लहरा कर अपने राजनीतिक प्रभुत्व की पुष्टि की। सन 2009 और सन 2014 के चुनावों में बीजेपी ने किला जीता, लेकिन उसकी हॅटट्रिक की तमन्ना पूरी नहीं हो सकी। सन 2019 में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी डेलकर ने बीजेपी के नाटूभाई पटेल को करारी शिकस्त दी।

कांग्रेस, बीजेपी क्षेत्रीय पार्टी और निर्दल के बैनरतले फिर-फिर निर्वाचित लोकप्रिय और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी डेलकर का अंत शोकांतिका में हुआ। मोहन डेलकर ने फरवरी सन 21 में मुंबई के एक होटल में आत्महत्या कर ली। अपने कथित सुसाइड नोट में उन्होंने इसके लिये केन्द्रशासित राज्य के प्रशासक प्रफुल्ल खोडा पटेल को जिम्मेदार ठहराया। यह वही प्रफुल्ल भाई हैं, जो सन 2010- 2012 के दरम्यानी अंतराल में गुजरात के कनिष्ठ गृहमंत्री रहे थे। बाद में केंद्र सरकार ने उन्हें प्रशासक बना दिया। ‘द हिन्दु’ की रपट के मुताबिक डेलकर ने जिन प्रफुल्ल भाई पर प्रताड़ना के आरोप लगाया था, वह आज भी प्रशासन पद पर आसीन हैं।

कथा यहीं समाप्त नहीं होती। डेलकर के कैलाशवासी होने पर उपचुनाव हुआ, तो उनकी विधवा श्रीमती कलाबेन ने बतौर शिवसेना प्रत्याशी चुनाव लड़ा और बीजेपी के महेशभाई गावित को करीब 52 हजार मतों से परास्त कर संसद में पहुंचीं। यही कलाबेन अब दादरा-हवेली से बीजेपी की अधिकृत प्रत्याशी हैं और उनका सामना काँग्रेस के अजीत रामजीभाई माहला से है।

करीब ढाई लाख वोटरों के अजजा केलिए आरक्षित इस क्षेत्र में सात मई को मतदान के पूर्व सघन प्रचार देखने को मिला। उधर 90 हजार मतदाताओं का लघुत्तम संसदीय क्षेत्र दमण-दीव भी तुमुलघोष में पीछे नहीं रहा। कोली बहुल सीट का संसद में प्रतिनिधित्व सन 2009 से बीजेपी के लालू भाई बाबूभाई पटेल करते आ रहे हैं। गतचुनाव में उन्होंने कांग्रेस के केतन डाह्याभाई पटेल को करीब 10 हजार मतों से मात दी थी। निर्दल उमेश पटेल को करीब 20 हजार मत मिले थे और बतौर बसपा प्रत्याशी मैदान में उतरे शकील लतीफ को फकत 792। दमण दक्षिण गुजरात में वापी के समीप स्थित है, तो दीव सौराष्ट्र का तटीय क्षेत्र है। सन 1987 से अब तक यहाँ से टंडेल और पटेल चुने जाते रहे हैं। शुरूआत में कांग्रेस के गोपालभाई टंडेल जीते और फिर निर्दल देवजी भाई टंडेल। सन 91 में देवजी भाई बीजेपी की टिकट पर चुने गये, लेकिन सन 96 में गोपाल भाई ने किला फिर सर कर लिया। इस हार का बदला देवजी भाई ने सन 98 में ले लिया। इसके बाद के दो चुनाव में डाह्याभाई पटेल जीते लेकिन बीजेपी के लालूभाई ने इसके बाद के तीनों चुनाव जीतकर शानदार हैटट्रिक पूरी की।

दमण-दीव में मुकाबला एक बार फिर से परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों – कांग्रेस के केतन पटेल और बीजेपी के लालू पटेल के बीच है। केतन यहाँ से दो बार सांसद रहे डाह्याभाई के बेटे हैं। निर्दल उमेश पटेल भी मैदान में हैं। 28 अप्रैल को राहुल गांधी के आने और दमण में रैली को संबोधित करने से कांग्रेस के प्रचार को गति मिली है। राहुल ने प्रशासक प्रफुल्ल पटेल को जमकर आड़े हाथों लिया और दो टूक कहा कि हम सत्ता में आते ही प्रताड़ना के अंत के लिए प्रशासक को दफा कर देंगे और उन पर शिकंजा कसेंगे। इस बीच काँग्रेस ने प्रफुल्ल पटेल और लालूभाई पर मिलीभगत के आरोप तो चस्पां किये ही, लालू भाई पर गुजरात, दमण-दीव, दादरा-हवेली में शराब की तस्करी का लांछन भी लगाया।

दादरा के मुकाबले दमण में मुकाबला ज्यादा कठिन है। सन 2019 में कलाबेन ने बीजेपी के नाटूभाई को हराया था। अब वह बीजेपी में है। इस केन्द्रशासित राज्य में पहले भी जर्सियां और टोपियां बदलती रही हैं। जीत किसी की भी हो, किंतु राजनीति चुनिंदा घरानों की मुट्ठी में थी और बनी रहेगी।