उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वनों की कटाई से हर साल 28,000 से अधिक मौतें !

Deforestation in tropical regions causes over 28,000 deaths each year!

सुनील कुमार महला

वन जीवन का मुख्य आधार व प्रकृति का खज़ाना हैं।जंगल केवल कार्बन स्टोर नहीं बल्कि जीवन रक्षक ढाल भी हैं—छाया, वाष्पन-शीतलन और ताप नियंत्रण के माध्यम से यह आसपास के समुदायों को बचाने में अहम भूमिका निभाते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि मानव जीवन, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था – तीनों को ही जंगलों से सीधा लाभ मिलता है। वास्तव में जंगल वे प्राकृतिक संसाधन हैं, जिनसे हमें लकड़ी – घर, फर्नीचर, कागज, औज़ार, नाव, पुल आदि के लिए, ईंधन – लकड़ी, कोयला, वन उपज जैसे कि– गोंद, रेज़िन, रबर, बांस, गन्ना, बेंत, पत्ते (पत्तल/दोने),खाद्य पदार्थ – फल, जामुन, शहद, मशरूम, जड़ी-बूटियाँ, बीज, मेवे और विभिन्न औषधियाँ जैसे आयुर्वेद और आधुनिक दवाओं के लिए जड़ी-बूटियाँ, जैसे नीम, तुलसी, अरंडी, सतावर आदि प्राप्त होते हैं। इतना ही नहीं, ऑक्सीजन उत्पादन,कार्बन अवशोषण, जल व मृदा संरक्षण के साथ ही साथ ये जंगल ही हैं,जो बारिश लाने में सहायक होते हैं तथा धरती के तापमान को भी नियंत्रित रखते हैं। जैव-विविधता को बनाए रखने में जंगलों का स्थान महत्वपूर्ण और अहम् है, लेकिन बहुत ही दुखद है कि आज वनों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है और वनों की कटाई मनुष्य के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो रही है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज जंगल सिकुड़ते चले जा रहे हैं और उनकी जगह शहरीकरण व खनन ले रहे हैं।कहीं हिमखंड और ग्लेशियर पिघल रहे हैं, तो इससे समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, कुछ जगहों पर हरित आवरण (ग्रीन कवर) बढ़ा भी है, खासकर उन देशों में जहाँ वृक्षारोपण और संरक्षण अभियानों को बल मिला है, लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि आज नदियों के स्वरूप और तटीय इलाकों में भी बड़े बदलाव दिखे हैं, कई स्थानों पर नदी का रुख बदल चुका है या किनारे कटकर बह गए हैं। शहरों का फैलाव तो आज बहुत स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो पर्यावरण पर सीधा असर डालता है। इस क्रम में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वनों की कटाई से हर साल लगभग 28,000 से 28,330 अतिरिक्त मौतें होती हैं, जो मुख्यतः उष्माघात (हीट-रिलेटेड इल्नेस) के कारण होती हैं। गौरतलब है कि यह अध्ययन भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया समेत 15 देशों में किया गया है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि अध्ययन में उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई (साल 2001–2020 तक) और स्थानीय तापमान में वृद्धि, साथ ही उससे जुड़ी मौतों का अनुमान शामिल है तथा यह शोध ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित हुआ है। जानकारी के अनुसार कुल लगभग 345 मिलियन लोग वनों की कटाई से उत्पन्न स्थानीय गर्मी के संपर्क में आए तथा इनमें से लगभग 2.6 मिलियन लोग ऐसे थे जिन्हें +3 °C या उससे अधिक की तापमान वृद्धि का सामना करना पड़ा।परिणामस्वरूप, सालाना अनुमानित 28,330 मौतें हुईं। उल्लेखनीय है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे अधिक मौतें (~15,680 सालाना) हुईं, इसके बाद दक्षिणी ऊष्णकटिबंधीय अफ्रीका और मध्य/दक्षिण अमेरिका में मौतें हुईं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस शोध में व्यापक क्षेत्रीय गर्मी और अन्य स्वास्थ्य प्रभावों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। कितनी बड़ी बात है कि दो दशकों में अंधाधुंध जंगल काटे गए हैं। रिपोर्ट बताती है कि, दक्षिणी अमेजन क्षेत्र, इंडोनेशिया के सुमात्रा और कालीमंतन में सबसे अधिक तापमान वृद्धि के कारण वनों का सबसे अधिक नुकसान हुआ। दो दशक में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 1.6 मिलियन वर्ग किमी वनक्षेत्र (10% से अधिक) नष्ट हो गया। इन क्षेत्रों में 3.5 अरब से ज्यादा लोग रहते हैं, जिनमें से लगभग 45.2 करोड़ (या 13 प्रतिशत) ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां दो दशकों के दौरान अंधाधुंध वनों की कटाई हुई। इस वजह से लगभग 34.5 करोड़ लोग वनों की कटाई से प्रेरित गर्मी के संपर्क में आए।वैज्ञानिकों ने उष्णकटिबंधीय मध्य और दक्षिण अमेरिका में वार्षिक औसत तापमान वृद्धि 0.34 डिग्री, अफ्रीका में 0.10 डिग्री और दक्षिण एशिया में सबसे अधिक 0.72 डिग्री दर्ज किया है। अंत में यही कहूंगा कि वनों की कटाई धरती के पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ती है, और अगर इसे रोका न गया तो भविष्य की पीढ़ियों के लिए जीवन कठिन हो जाएगा। अतः हमें यह चाहिए कि हम वनों को बचाएं,इनका संरक्षण करें।