मनोहर मनोज
दिल्ली अपने भयावह वायु प्रदूषण और जिस जमुना नदी के तट पर अवस्थित है उसकेे विकराल जल प्रदूषण को लेकर व्यापक सुर्खियों में हैं। हर साल अक्टूबर नवंबर माह में दिल्ली की जो खबर सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरती है यकीन मानिये ये यही दोनो खबरें होती हैं। गौरतलब है कि पिछले तीन दशक से दिल्ली के वायुमंडल में एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स स्तर औसतन तीन सौ यानी अत्यंत खराब जोन में रहता आया है। दूसरा जमुना नदी के पानी की बात करें तो यह बारहोमासी एक सीवर नाला ही दिखाई पड़ता है जिसके पानी को छूने का मन तो दूर, उसे देखने से ही किसी का मन सिहर जाता है। लेकिन सबसे बड़ी विडंबना ये है इन दोनो मामले पर देश की केन्द्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच केवल आरोपों और प्रत्यारोपों का दौर चलता है। केन्द्र में सत्तारूढ भाजपा और दिल्ली में सत्तारूढ आप पार्टी के बीच दिल्ली के वायु व जल प्रदूषण को लेकर जबरदस्त तलवारे भाजी जाती है। दोनो दल एक दूसरे की नेमिंग शेमिंग और ब्लेमिंग का कोई मौका नहीं छोड़ते। लेकिन इन दोनो सरकारों और इन दोनो दलों के बीच की इस रार व तकरार का शिकार बनती है राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जहां टोकियों के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी करीब तीन करोड़ की आबादी के लिए साल के अंतिम तीन महीनों में संास लेना दूभर हो जाता है। यहां के लाखों लोग सांस और दम फुलने की बीमारी का शिकार हो जाते हैं।
सवाल ये है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जिसको देश के अन्य राज्यों की तरह ना तो पूर्ण राज्य का दर्जा है और न ही यहां की सरकार पूर्ण शक्ति संपन्न है। इसे लेकर देश के नीतिकारों द्वारा यह माना गया कि दिल्ली समूचे देश की राजधानी और केन्द्रीय मुखयालय है ऐसे में यहां केन्द्र सरकार की जिममेदारी भी बेहद जरूरी है। इस बिना पर राज्य की पुलिस यानी दिल्ली पुलिस केन्द्र के नियंत्रण में है। इसके अलावा शहरी विकास की मुखय एजेंसी डीडीए व सीपीडब्लूडी भी केन्द्र सरकार के नियंत्रण में रखी गई। इस आधार पर दिल्ली के वायु प्रदूषण और इसकी प्रमुख नदी जमुना के जल प्रदूषण और इसकी अविरलता को लेकर केन्द्र की एक महती जिममेवारी क्यों नहीं बननी चाहिए? आखिर दिल्ली में जहां राष्ट्रीय विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय दूतावासों, संस्थाओं व संगठनों का कार्यालय हैं जिनमे हजारों विदेशी वाशिंदे कार्यरत हैं, जहां सैकड़ों राजनायिकों का निवास स्थल है। इस राजधानी दिल्ली में जहां हर समय कोई ना कोई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय आयोजन होते रहते हैं, जिनमे देश विदेश के मेहमानों का आगमन होता रहता है। लाखो देशी विदेशी पर्यटकों व व्यापारियों का आगमन होता है, उन सभी के हितों से केन्द्र सरकार अपने को विलग कैसे रख सकती है? जिस दिल्ली का इतिहास जमुना नदी के तट पर लिखा गया, वह जमुना नदी अगर प्रदूषितप्राय हो जाती है तो केन्द्र सरकार इसके प्रति अपनी जिममेदारी दिल्ली की विपक्षी सरकार पर टालकर कैसे चुप बैठ सकती है?
आखिर केन्द्र सरकार के मुखिया नरेन्द्र मोदी जो कभी गुजरात केे मुखयमंत्री थे तो तब उन्होंने लीक से हटकर अहमदाबाद की साबरमती नदी का उद्धार किया था। वही नरेन्द्र मोदी अभी देश के बतौर प्रधानमंत्री देश को दुनिया की महाशक्ति और विकसित राष्ट्र बनाने की बात कर रहे हैं तो फिर वह राजधानी दिल्ली की जमुना नदी का उद्धार करने की पहल क्यों नहीं कर सकते। आखिर इस कृत्य से दुनिया के मानचित्र पर भारत की छवि और ज्यादा चमकीली होगी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही इसका श्रेय मिलेगा। आखिर प्रधानमंत्री मोदी देश के गौरव को उंचा बनाने की दिशा में इसी राजधानी दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय सममेलनों की लगातार झडी लगाए जा रहे हैं। कभी जी-२० की शिखर बैठक, कभी अंतरराष्ट्रीय हेरिटेज सममेलन, कभी अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार सममेलन, कभी अंतरराष्ट्रीय सहकारिता सममेलन तो कभी राष्ट्रीय भाषा सममेलन तो कभी मत्स्य सममेलन। इन सममेलनों के राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागी लोग भारत के वैभव के दीदार के क्रम में जब यहा की जमुना नदी का अवलोकन करते होंगे तो उनके मन में भारत को लेकर क्या प्रतिक्रिया बनती होगी?
इसी तरह दिल्ली के वायु प्रदूषण की बात करें तो इसमें एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स जिसकी पहली श्रेणी यानी शून्य से पचास, दूसरी श्रेणी पचास से सौ, तीसरी श्रेणी सौ से दो सौ जिसे क्रमश: अच्छा, संतोषप्रद, सामान्य श्रेणी में रखा जाता है। इन तीनों श्रेणी में दिल्ली का वायुमंडल विरला ही दिखायी पड़ता है। एक्यूआई का स्तर दो सौ से तीन सौ यानी खराब, तीन सौ से चार सौ यानी बेहद खराब तथा चार सौ से पांच सौ यानी चिंताजनक कहा जाता है, इनमे दिल्ली का एक्यूआई साल भर में किसी दिन भी अच्छा श्रेणी में नहीं रहता। अपवाद केवल कोरोना काल था जब 31 अगस्त 2020 को दिल्ली का एक्यूआई 41 यानी अच्छा पाया गया था। एक आंकड़े के मुताबिक साल में केवल 25 दिन एक्यूआई संतोषप्रद, 83 दिन सामान्य, 120 दिन खराब,101 दिन अत्यंत खराब तथा 25 दिन चिंताजनक श्रेणी में होता है। बताते चलें एक्यूआई का अत्यंत खराब स्टेज श्वसन की बीमारी वाले लोगों के रोग को और बढाने वाला तथा एक्यूआई का चिंताजनक स्तर स्वस्थ लोगों में भी संास की बीमारी पैदा करने वाला माना जाता है। इस क्रम में 6 नवंबर 2016 का दिन ऐसा हुआ था जब दिल्ली का एक्यूआई स्तर 497 चला गया था।
वायु प्रदूषण की बात करें तो एक्यूआई के अलावा जो दूसरा मापक पैमाना है जो पीएम यानी पार्टीकुलेट मैटर यानी हवा में विराजमान धातुकण का पैमाना होता है। इस पैमाने पर पीएम-2.5 को बेहद घातक माना जाता है जिसमे अमोनिया, सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन डायआक्साइड, कार्बन मोनो आक्साडड, ओजोन तथा शीशे ये सब साथ मिलकर इनके महीन टूकड़े जो मनुष्य के बाल का तीसवां हिस्सा होता है वह सांसों के जरिये लोगों के फेफड़े में प्रवेश कर घातक बीमारियों को जन्म देते हैं। दिल्ली की बात करें तो यहां साल के 80 फीसदी दिन पीएम-2.5 व पीएम-10 से प्रदूषित वाले होते हैं।
दिल्ली में अक्टूबर-नवंबर महीने में वायु प्रदूषण का जब खतरा बढता है तो उसके लिए पड़ोसी राज्य पंजाब, हरियाणा तथा पं०यूपी के किसानों द्वारा खरीफ सीजन की धान कटाई के उपरांत खेतों में छोड़ी डंठल पुआल यानी पराली जलाने को जिममेवार माना जाता है। राजधानी केे समूचे प्रदूषण में इसका योगदान 16 फीसदी बताया जाता है। इसके अलावा राष्ट्रीय राजधानी में चलंंत करीब डेढ करोड़ वाहन, पेट्रोलियम पदार्थों की शुद्धता का पिछड़ा पैमाना, रियल इस्टेट का तेजी से हो रहा निर्माण, औद्योगिक बस्तियों के उत्सर्जन, कचरे की डंपिंग और डिस्पोजल का अपर्याप्त इंतजाम जैसे अनेकानेक कारण हैं। यानी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण और जमुना का जल प्रदूषण एक ऐसे घातक बम का रूप ले चुके हैं जो विस्फोटक होने के बाद परमाणु बम से भी कई गुनी बड़ी तबाही ला सकते हैं। बल्कि शनै: शनै: ला भी रहे हैं और हम और हमारी सरकारें बिल्कुल लापरवाह अंदाज में इसे टूकर टूकर देखे जा रहे हैं और शासक केवल राजनीति राजनीति के खेल में मगन हंै। चूंकि दोनो सरकारों को मालूम है कि वोट प्रदूषण के आधार पर दिये नहीं जाएंगे और ना ही इसकी रोकथाम के आधार पर मांगे जाएंगे। क्योंकि भारत में वोट सदैव जाति-धर्म-मुफतखोरी और खैरात पर दिये जाते हैं।
आगामी फरवरी में दिल्ली का विधानसभा चुनाव होने वाला है। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने अपनी राजनीतिक पोस्चरिंग में जमुना के प्रदूषित जल में डूबकी भी लगा ली और वह बीमार होकर अस्पताल को भी कूच कर गए। उधर दिल्ली के प्रदूषण और जमुना के झाग पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट द्वारा सरकारों को फटकार पर फटकार लगायी जा रही हैं। पिछले साल अरविंद केजरीवाल ने शपथ लिया था कि आगामी 2025 तक दिल्ली में करीब 22 किमी लंबी जमुना को निर्मल बना देंगे अन्यथा वह दिल्ली वासियों से वोट नहीं मांगेंगे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री को चाहे उन्हें दिल्ली के वायुमंडल को स्वच्छ करने की अनेकानेक पहल करने के जरिये हो या फिर जमुना नदी को अविरल बनाने को लेकर हो, उस पर एक बड़ा कौल लेना चाहिए । सरकार को समझना होगा कि जब केन्द्र की राजधानी दिल्ली ही महफूज नहीं रहेगी तबतक देश महफूज कैसे रहेेगा? ऐसे में विकसित भारत बनाने की बात तो बहुत दूर की कोड़ी है।