गांडा जाति पर शोध के लिए डॉ राजाराम त्रिपाठी को मिली ‘डाक्टरेट’

  • सात सालों के कठिन परिश्रम एवं सतत शोध के बाद शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय से मिली यह पीएचडी
  • गांडा जाति की अनमोल परंपरागत चिकित्सा पद्धति पर यह है देश का पहला शोध प्रबंध
  • यह शोध-ग्रंथ गांडा जाति तथा भविष्य के शोधार्थियों के लिए प्रकाश-स्तंभ का कार्य करेगा‌: डॉ शिखा सरकार
  • गांडा एक गौरवशाली महान जाति, इनको समर्पित है मेरा यह शोध: डॉ राजाराम त्रिपाठी

रविवार दिल्ली नेटवर्क

जगदलपुर : शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान संकाय के तहत इतिहास विषय की पीएचडी मौखिकी का आयोजन विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन जगदलपुर के सभागार में आयोजन किया गया । जिसमें सामाजिक विज्ञान संकाय के अंतर्गत इतिहास विषय में पीएच.डी. पाठ्यक्रम में पंजीकृत शोधार्थी राजाराम त्रिपाठी द्वारा अपने शोध प्रबंध विषय “अनुसूचित जाति के अंतर्गत गांडा जाति की सामाजिक आर्थिक संरचना एवं परंपरागत चिकित्सा पद्धति का ऐतिहासिक मूल्यांकन” पर शोध कार्य पूर्ण करने उपरांत मौखिकी परीक्षा संपन्न हुई। श्री त्रिपाठी ने अपना शोध कार्य, शोध निर्देशक डॉ. शिखा सरकार, सहायक प्राध्यापक, शासकीय दंतेश्वरी महिला महाविद्यालय, दंतेवाड़ा के निर्देशन शोध केन्द्र शासकीय काकतीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जगदलपुर जिला बस्तर (छ.ग.) में पूर्ण किया।

प्रस्तुति के दौरान श्री त्रिपाठी ने सम्बंधित विषय पर प्रस्तुतीकरण देते हुये बताया कि छत्तीसगढ में अनुसूचित जातियों में से पिछड़े तबके से आता है गांड़ा समाज, जहां चहुं ओर अंधियारा छाया हुआ है। गौरतलब है कि ना तो इनमें व्यक्तिगत रूप से कोई उत्थान नजर आता है और न ही इनमें सामाजिक रूप आगे बढ़ने का प्रयास ही नजर आता है। इस वजह से यह समाज अन्य समाज की तुलना में अपनी स्थिति को नगण्य बनाता चला जा रहा है ,जिसकी वजह से इस समाज का अध्ययन और खासकर इस जाति के लेखन को आबद्ध करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। क्योंकि शोधकर्ता द्वारा जब इस संबंध में विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, पुस्तकालय, संग्रहालय या अन्य जगहों पर साहित्य संकलन का कार्य शुरू किया तो इस विषय पर किसी भी प्रकार के शोध, लेख के अंश मात्र ही मिल पाये जिससे पता चला कि इस जाति का इतिहास भी विलुप्त होने की ओर अग्रसर है। शोध प्रारंभ करने के पूर्व शोधकर्ता को ग्रंथालयों तथा अन्य पठन पाठन हेतु निर्धारित विभिन्न संस्थाओं सहित बाजार में भी इस विषय के लेख, किताब या अन्य किसी भी प्रकार के शोध नहीं मिले, यह इस जाति वंश के लिये अत्यंत दर्दनाक स्थिति है ।

ऐसे में शोधकर्ता द्वारा इस विषय का चयन कर इस विलुप्तप्राय जाति के साथ निश्चित रूप से उपकार करने तथा एक बेहतर प्रयास कर के इस जाति को विलुप्त होने से बचाने का प्रयास करने की कोशिश की गयी है।

प्रस्तुत शोध निश्चित रूप से इस जाति के लिये एक मील का पत्थर साबित होगा जो इस जाति के न केवल पुरानी बातों को उधृत करता है वरन आने वाले पीढियों के लिये यह शोध एक मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ का काम करेगा और इस जाति वंश को जिंदा रख पाने में अपनी अहम भूमिका निभायेगा ।

यह न केवल छत्तीसगढ़ के गांडा समाज की विलुप्तप्राय जानकारी देता है वरन इससे जुडे जाति वंश, समाज, आर्थिक, सामाजिक, चिकित्सा और उनके रहन सहन, आजीविका, सौन्दर्य, कला, माटी और उनके जीवन की सबसे संकल्पनाओं और वर्तमान परिदृश्य को भी परिलक्षित करता है। समग्र आकलन के आधार पर कहा जा सकता है कि, निश्चित रूप से यह जाति एक गौरवशाली महान जनजाति है।

सफल मौखिकी के उपरांत 15 दिसंबर को कुलपति प्रोफेसर मनोज कुमार श्रीवास्तव तथा रजिस्टर अभिषेक बाजपेई ने शोधार्थी राजाराम त्रिपाठी को उक्त विषय पर ‘डॉक्टर आफ फिलासफी’ की डिग्री अवार्ड किए जाने की उद्घोषणा पत्र विधिवत प्रदान किया।

इस अवसर पर कुलपति महोदय द्वारा शोधार्थी को उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए शुभकामनाएं दी गई। शोध प्रबंध प्रस्तुतीकरण के इस कार्यक्रम में अभिषेक कुमार बाजपेयी कुलसचिव, विषय विशेषज्ञ – प्रो. डॉ. प्रवीण कुमार मिश्रा, डीन सामाजिक विज्ञान संकाय केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर , डॉ. शिखा सरकार, शोध – निर्देशक,आरडीसी अध्यक्ष श्री चंद्रहास डॉ. आनंद मूर्ति मिश्रा ने विशेष रूप से भाग लिया एवं सहायक प्राध्यापक श्री देवचरण गावड़े, सहायक कुलसचिव, केजू राम ठाकुर, सहायक कुलसचिव, एवं, डॉ अखिलेश त्रिपाठी अन्य शिक्षकगण, शोधार्थी एवं छात्र- छात्राओं ने उपस्थिति प्रदान की तथा शोधार्थी राजाराम त्रिपाठी को डिग्री अवार्ड होने पर बधाई दी।