डॉ.वीरेन्द्र प्रसाद : सशक्त आईएएस अधिकारी जिनके हृदय में बसती है कविताएं

Dr. Virendra Prasad: Strong IAS officer in whose heart poems reside

विनोद कुमार विक्की

हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा के माध्यम से शब्दों को काव्य रुप देने वाले असाधारण व्यक्तित्व वाले साधारण कवि डॉ.वीरेंद्र प्रसाद किसी परिचय के मोहताज नहीं है। युवा साहित्यकार डॉ वीरेंद्र प्रसाद की प्रत्येक रचनाओं में प्रेम और सकारात्मक भाव का संदेश नजर आता है। 23 फ़रवरी 1979 को बिहार के जमुई जिले में जन्म लेने वाले डॉ.वीरेंद्र प्रसाद की प्रकृति,प्रेम और यथार्थ से सरोकार रखने वाली रचनाएं हताशा और नकारात्मकता के भावों से कोसों दूर रहती हैं।

सर्च आफ सोल(अंग्रेजी),शेष कितना तमस एवं रात बीती, पर कथा है शेष पुस्तकों के रचयिता डॉ. वीरेंद्र प्रसाद में जिम्मेदार व्यक्तित्व एवं कोमल कवि मन का वास है। यही कारण है कि अति व्यस्त प्रशासनिक शेड्यूल एवं जिम्मेदारियों के बावजूद स्वयं को साहित्यिक सृजन से दूर नहीं रख पाते। साहित्य से इनका नाता छात्र जीवन से ही रहा है। कॉलेज के दौरान ही वो लिखने लगे थे। अपने कॉलेज से प्रकाशित होने वाली मैग्जीन के संपादकीय टीम से भी जुड़े रहे। साहित्य सेवा और समर्पण का परिणाम है कि उन्होंने अपने सेवा काल में कई बेहतरीन कविताओं की रचना की है। भाषा से करियर को संवारने की इच्छा रखने वाले वीरेंद्र प्रसाद ने पशु चिकित्सा विज्ञान में स्नातकोत्तर, दूरस्थ शिक्षा के द्वारा अर्थशास्त्र एवं वित्तीय प्रबंधन में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। देश की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिता परीक्षा 2004 में उत्तीर्ण कर भारतीय प्रशासनिक सेवा में अपना योगदान दिया।

वर्तमान में बिहार सरकार कृषि विभाग में विशेष सचिव के पद पर सेवारत हैं। पेशे से देश की सर्वोत्तम सेवा के लिए प्रतिबद्ध अधिकारी हैं, जबकि शौक से उम्दा लेखक और कवि मन है।

डॉ.वीरेन्द्र का मानना है कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में मोबाइल फोन एवं मशीनी तंत्र, मानव तंत्र पर हावी हो कर मानवीय मूल्यों, विचारों और भावनाओं का क्षय करने की कोशिश कर रहा है। उक्त परिस्थितियों में काव्य एवं काव्यात्मक साहित्य मानवीय मूल्यों और विचारों को अक्षुण्ण बनाए रखने में महती भूमिका निभा रहा है। आरंभ से ही मुद्रित सामग्री से मंच तक काव्य प्रवाह ने दिल और दुनिया को जोड़ने का काम किया है। जुड़ने और जोड़ने के सारस्वत अनुष्ठान में किसी भी संग्रह की कविताएं कपोल कल्पना मात्र नहीं बल्कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जन सामान्य के जीवन से जुड़ी परिस्थितियों का ताना-बाना होता है। शब्दों के संयोजन से कलमबद्ध शब्दों, छंदों एवं पंक्तियों का सरोकार मानवीय चेतनाओं, विचारों और संवेदनाओं से होता है,अर्थ से होता है, यथार्थ से होता है,स्व से होता है परमार्थ से होता है,वास्तविकता से होता है, तो सकारात्मकता से होता है।

कविता लिखने के लिए समय निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है। कविता स्वतः ही मन से प्रस्फुटित होती है। उनका मानना है कि कभी-कभी मन से अनजाने में ही कोई बहुत अच्छी कविता अकस्मात् फूट पड़ती है और कभी कोई पंक्ति महीनों तक मन में अटकी रह जाती है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, बागवानी के शौकीन डॉ. वीरेन्द्र को प्रकृति से अगाध प्रेम है। जिसकी छवि इनकी कविताओं में दिख जाती हैं।

शेष कितना तमस एवं रात बीती पर कथा है शेष पुस्तकों से उद्धृत पंक्तियां कवि मन के भाव को परिलक्षित करता है।

“उस रात नहीं मैं रोया जब बालक सा व्याकुल
तेरी गोद में छिपकर सोया उस रात नहीं मैं रोया।

तेरा दिल खोल के हँसना,मेरा बंधन खोल रहा है।
सोना तेरी इन आंँखों में,मेरा जीवन बोल रहा है।।

अवनि अंबर मन के अन्दर हर सांस तुम्हारे होने का।
क्यों लगता अनंत विस्तार मुझे? क्यों तुमसे न हो प्यार मुझे?”

मानव तो ऐसे होते हैं मुक्ता का भार न ढोते हैं।
जग में रहकर भी जग से अलग राह पर जीते हैं।।’

एक कवि के रूप में दैनिक भास्कर,सामना, राष्ट्रीय सहारा,राजस्थान पत्रिका, प्रभात खबर,अजीत समाचार,हम हिंदुस्तानी,प्रयास इंडिया,लोक सत्य,संपर्क भाषा भारती,लोक पहल, प्रगतिशील साहित्य, लोकतंत्र की बुनियाद, जयवर्धन, मुस्कान,कर्म श्री, सरस्वती सुमन, साहित्य अमृत,सृजन कुंज, प्रखरगूंज,ककसाड़़, अरण्य वाणी,शबरी, हाट लाइन, रेशम वाणी आदि सहित विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं नियमित प्रकाशित होती रहती है। बतौर लेखक वीरेंद्र प्रसाद की ना सिर्फ़ साहित्यिक कृति का प्रकाशन हुआ है बल्कि द सौतार, भारत की राज व्यवस्था, भारत की अर्थव्यवस्था,झारखंड समग्र आदि सहित दर्जन से अधिक प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी है।