कंचन तनवे
आदिवासी समाज आज़ादी के बाद दशकों तक वंचित और शोषित रहा। इन्हें लोकतंत्र में वोट बैंक तक सीमित मान लिया गया था, लेकिन अब वक्त के साथ इस सोच में बदलाव आया है। विशेषकर मोदी सरकार के आने के पश्चात जनजातीय समाज का पुनरूत्थान हो रहा है। जनजातियों का गौरव पुनः वापस लौटाने की दिशा में प्रयास चल रहा है। जनजातीय समाज की आर्थिक और सामाजिक स्थितियों में बदलाव आ रहा है। जनजातीय समाज के लोगों में उम्मीद की नई किरण जाग उठी है। यह समाज एक बार फिर से देश के विकास में भागीदार बन रहा है। अब उनकी सामाजिक और आर्थिक दोनों रूपों में प्रगति हो रही है। जनजातीय समाज के प्रति मोदी सरकार की संवेदना ही है। जो अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनजातीय समाज के नायकों का योगदान याद करना नहीं भूलते! विगत आठ-नौ वर्षों में जनजातीय समाज के नवोत्थान के लिए अनगिनत प्रयास हुए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक गरीब, पिछड़े और आदिवासी तबके के लोगों को कैसे मिल सके। इसके लिए सतत निगरानी की जा रही है। अंतिम जन का कल्याण ही मोदी सरकार का मूलमंत्र है। जिस जनजातीय समाज को पूर्ववर्ती सरकारों ने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया। उस समाज को मुख्यधारा में लाने का सफ़ल प्रयास भाजपानीत की सरकार में हो रहा है। विपक्षी दल मोदी सरकार पर आरोपों की झडी लगाते हैं कि यह सरकार दलित, वंचित और गरीबों की विरोधी है, लेकिन इस बार के बजट ने भी विपक्षी दलों के मुँह पर तमाचा मारने का काम किया। जनजातीय समाज के लिए पीएमपीबीटीजी विकास मिशन की शुरुआत की गई है। यह मिशन जनजातीय समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाएगा और पीबीटीजी बस्तियों को मूलभूत सुविधाओं से परिपूर्ण किया जा सके। इसके लिए आगामी तीन वर्षों में 15,000 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। सच पूछिए तो अमृत काल का यह बजट जनजातियों के लिए नया सवेरा लाने वाला है, क्योंकि इसी बजट में 3.5 लाख जनजातीय छात्रों के लिए 740 एकलव्य विद्यालयों में 38,800 अध्यापकों की नियुक्ति की बात कही गई है। अब जनजातीय समाज का बच्चा भी पढ़-लिखकर आगे बढ़ने का सपना देख सकता है। बजट में 2047 तक सिकल सेल एनीमिया मुक्त भारत की घोषणा की गई है। जो सरकार का एक स्वागतयोग्य कदम है, क्योंकि सिकल सेल ऐसा साइलेंट किलर है। जिससे प्रभावित सबसे ज़्यादा आदिवासी समाज है। अब अगर सिकल सेल मुक्त भारत बनेगा, तो निश्चित बात है कि यह जनजातीय समाज के लिए एक अच्छी खबर है।
वैसे नरेंद्र मोदी जी ने सिकल सेल को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी कार्य किया है। साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जी जब जापान यात्रा पर गए थे। उस समय उन्होंने वहां औषधि क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता एस. सामानका से सिकल सेल एनीमिया के इलाज की संभावनाओं को लेकर चर्चा की थी। पीएम मोदी की यह तड़प प्रदर्शित करती है कि वो जनजातीय समाज को इस कलंक से मुक्त करना चाहते हैं। जिसका विजन अमृतकाल के पहले बजट में रखा गया है। सिकल सेल एनीमिया के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में सामने आते हैं। जनजातीय कार्य मंत्रालय के मुताबिक, आदिवासी क्षेत्रों में जन्म लेने वाले हर 86 बच्चों में से एक सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है। लोकसभा में सरकार ने जो आंकड़ा पेश किया है। उसके मुताबिक, देश के आदिवासी क्षेत्रों में आईसीएमआर और बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट की मदद से 2022 तक 1,13,83,664 लोगों की जांच की गईं। जिसमें तकरीबन 8.75 फीसदी लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई।
एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक 3 प्रतिशत जनजातीय आबादी सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है, और 23 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनमें ये रोग फैल सकते हैं। यह पीढ़ी दर-पीढ़ी चलने वाला ऐसा आनुवांशिक रोग है, जिसमें रोगी के गुर्दे, फेफड़े, हृदय और लिवर तक खराब हो जाते हैं। हीमोग्लोबिन की लगातार कमी से कभी-कभी 6 से 3 ग्राम तक खून रहता है और ऐसी स्थिति में दर्द से तड़पते मरीज को तत्काल खून चढ़ाना पड़ता है और देरी होने से मृत्यु हो जाती है। महिलाओं में खून की कमी के कारण अनेकों बीमारियां घेर लेती हैं और ऐसे में उनका जीवन दूभर हो जाता है। इस बीमारी की भयावहता इस बात से भी समझी जा सकती है कि इसकी चपेट में आने से लगभग 20 प्रतिशत आदिवासी बच्चों की दो साल की आयु तक पहुंचने से पहले ही मृत्यु हो जाती है और 30 फीसदी बच्चे वयस्क होने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। ऐसे में ये रोग एक साइलेंट किलर की भांति है। जो पूरे परिवार को तबाह कर सकता है। जिसे रोकने के लिए देश के अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग मुहिम चल रही। अब केंद्र सरकार ने भी दृढ़ इच्छाशक्ति जाहिर की है तो उम्मीद की जा सकती है कि 2047 तक सचमुच में जनजातीय समाज इस भयावह बीमारी की चपेट से मुक्त हो सकेगा।
बजट में कहा गया है कि 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए एक मिशन शुरू किया जाएगा, जिसमें जागरूकता पैदा की जाएगी और प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों में 7 करोड़ लोगों की सार्वभौमिक जांच की जाएगी। गौरतलब हो कि केंद्रीय बजट में ऐलान से पूर्व मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 15 नवंबर 2021 को जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर “मप्र राज्य हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन” की शुरुआत की थी। जिसके तहत मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल आलीराजपुर और झाबुआ जिले में सिकल सेल एनीमिया स्क्रीनिंग का कार्य पूर्ण किया गया। इसके अलावा विश्व सिकल सेल दिवस (19 जून) पर देश के अनूठे आयोजन में सिकल सेल पीडितों के हेल्थ रिकार्ड के लिए लॉच किये गये पोर्टल को केन्द्र सरकार द्वारा आदर्श के रूप में अंगीकृत किया गया। मौजूदा मोदी सरकार कई मायनों में जनजातीय समाज के सर्वांगीण विकास पर बल दे रही है। उसी का एक हिस्सा सिकल सेल मुक्त भारत की परिकल्पना है।