सीता राम शर्मा ‘चेतन’
भयावह सच और उसके आधार पर यह दावा है कि आपमें से कोई भी एक ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसके किसी परिचित व्यक्ति या रिश्तेदार की मौत नशों से नहीं हुई हो ! बावजूद इसके घोर आश्चर्य की बात यह भी कि आपमें से किसी भी व्यक्ति का परिचय क्षेत्र ऐसा नहीं होगा, जिसमें आज भी एक भी व्यक्ति निरंतर नशों का शिकार नहीं हो रहा हो और आप तथा उसके परिजन, परिचित बहुत चाहकर भी उसे नशों के चंगुल से नहीं निकाल पा रहे हों ! आए दिन जहरीली शराब और अन्य मादक पदार्थों, नशों से होने वाली मौतों और त्रासदियों को लेकर मीडिया और पक्ष-विपक्ष के नेताओं, राजनीतिक दलों में खूब सवाल-जवाब होते हैं, शोर शराबा मचाया जाता है, पर इन नशों से होने वाली कुछ मौतों से हजारों लाखों गुना ज्यादा जितने लोग प्रति दिन प्रति पल नशों के शिकार होते तिल-तिल कर मर रहे हैं, उस पर खुद को देश समाज का बड़ा हितैषि और जिम्मेवार बना इनमें से कोई भी तबका कभी कोई प्रभावशाली बात और सार्थक प्रयास नहीं करता ! जबकि यदि यह तबका पूरी ईमानदारी और जिम्मेवारी से चाहे और काम करे तो नशों के दलदल में फंसकर करोड़ों तिल-तिल मरते लोगों और उनसे त्रस्त परिजनों, परिचितों के साथ आम निर्दोष नागरिकों की नशों की त्रासदी से सुरक्षा के लिए बहुत कुछ कर सकता है । गौरतलब है कि आज देश समाज के साथ पारिवारिक शांति, सुरक्षा और विकास की राह में नशाखोरी एक बड़ी समस्या है, जिससे देश समाज और हर दूसरा परिवार त्रस्त है । नशों के चंगुल में फंसे व्यक्ति कई सामाजिक और राष्ट्रीय अपराध को जन्म देते हैं । कई बार तो कुछ षड्यंत्रकारी ताकतें सुनियोजित षड्यंत्र के तहत कुछ लोगों को नशों का शिकार बना उन्हें देश समाज के विरुद्ध कार्य करने को तैयार और विवश कर देती है । वर्तमान समय में नशों के कारोबार से उपार्जित धन का दुरुपयोग जहां देश और समाज विरोधी षड्यंत्रों और आतंकवादी वारदातों में किया किया जा रहा है वहीं एक दूरगामी षड्यंत्र के तहत पूरे क्षेत्रीय, सामाजिक और राष्ट्रीय मानवीय व्यवस्था को अस्त-व्यस्त और तहस-नहस करने का काम बहुत सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है । दुर्भाग्य से हमारी सत्ता और प्रशासनिक व्यवस्था भी कहीं ना कहीं या तो इसमें लिप्त है या फिर इसके प्रति आवश्यक गंभीरता और जिम्मेवारी से लापरवाह बनी हुई है । छोटी सी दिखाई देती इस भूल, लापरवाही, अदूरदर्शिता और खुदगर्जी का कितना भयावह दुष्परिणाम भविष्य में देश और देश की जनता के लिए हो सकता है, इसे समय रहते जानने समझने और फिर उससे उबरने की जरूरत है । पिछले दिनों देश के गृह मंत्री अमित शाह ने देश में बढ़ती नशाखोरी और नशों के कारोबार पर अपनी चिंता प्रकट की थी, पर इस समस्या पर उन्हें अभी और ज्यादा गहराई से समझने की जरूरत है । नशों का अर्थ सिर्फ ड्रग्स नहीं और ड्रग्स के कारोबार की समस्या अब ड्रग्स की सिर्फ अंतरराष्ट्रीय तस्करी भर नहीं रह गई है । नक्सलवाद का खात्मा और दिखाई देती कमी ड्रग्स के उत्पादन और व्यापार में बढ़ोतरी के साथ एक नई बड़ी अमानवीय और आपराधिक समस्या के रूप में पनप रही है । पिछले कुछ वर्षों में भारत के कई हिस्सों में ड्रग्स की खेती का बेतहासा उत्पादन और विस्तार हुआ है जिस पर सरकार को कठोर नीति नियम बनाने के साथ उन्हें लागू करते हुए दोषियों पर पूरी कठोरता के साथ कार्रवाई करने की जरूरत है । ड्रग्स के साथ शराब, सिगरेट और तंबाकु जैसे नशों से भी पूर्ण मुक्ति का प्रयास सरकार को पूरी गंभीरता से करना चाहिए ।
अब बात मिलावटखोरी की, तो अज्ञानतावश या जानते समझते हुए तात्कालिक लाभ, लोभ और अत्यधिक उत्पादन के लिए मिट्टी की दीर्घकालिन उत्पादक क्षमता को नष्ट करते अत्यधिक हानिकारक उर्वरकों से जहां अन्न, फल, फूल जैसे प्रमुख खाद्यान्नों में उत्पादन के दौरान ही जो जहर मिलाया जा रहा है और उनकी मूलभूत पौष्टिकता को नष्ट कर स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है, उसकी बात छोड़ भी दें और उत्पादन के बाद उनके प्रारुप और बचे गुणों की गुणवत्ता बचाने की बात करें तो वहां भी भारी अनियमितता बरती जा रही है । आधुनिकता के चमक दमक में भटकी हमारी मानसिकता का भरपूर दुरुपयोग व्यवसायिक जगत भी सभी खाद्य पदार्थों को रसायनिक पदार्थों से चमकीला बनाने में कर रहा है । गेहूं, चावल, दाल, चीनी, जैसे प्रमुख अनाजों से लेकर फलों और सब्जियों तक को पाॅलिस कर बाजार में बेचा और खरीदा जा रहा है ! कई फलों और सब्जियों के आकार में तो अत्यंत हानिकारक रसायनिक तत्वों का उपयोग कर उनके आकार और वजन को बढ़ाने का खेल भी बिना किसी भय और रोक-टोक के जारी है । मिलावटखोरी का आलम यह है कि अनाज के साथ उनसे बनने वाले खाद्यान्नों, तेलों और डिब्बाबंद तैयार सामग्रियों में भी भारी मिलावट हो रही है । भारतीय जीवन पद्धति में भोजन और पेय पदार्थ के रूप में हर घर में जरुरी तौर पर ग्रहण किए जाने वाले दुध में तो मिलावट की बात ही दूर, पूरा का पूरा दुध ही कृत्रिम तरीके से धड़ल्ले से खूब बनाया और बेचा जा रहा है । कृत्रिम दुध से तैयार दही, मलाई, मक्खन, पनीर, घी और मिठाईयों का कारोबार खूूब फल फूल रहा है और इनकी चपेट में हैं लाचार, विवश, निराश और हताश आम उपभोक्ता । अनियंत्रित और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी व्यवस्था का शिकार हुआ आम उपभोक्ता मिलावटखोरी की आग में झुलसता ना सिर्फ अपने खून पसीने की कमाई से मिलावटी और हानिकारक खाद्यान्नों का उपयोग करने को अभिशप्त है बल्कि वह लाख सावधानियों के बावजूद भी बेवजह असमय तरह-तरह की मिलावट जनित बीमारियों का भी शिकार हो रहा है और इसकी सबसे बड़ी दोषी है हमारी राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था, जो मिलावटखोरी को अब कोई समस्या मानने की बजाय इसे अपने स्वार्थ, लापरवाही और भ्रष्टाचार की नैसर्गिक व्यवस्था समझने लगी है । मिलावटखोरी की बड़ी समस्या पर राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था का काला सच समझना हो तो प्रायः त्यौहारों के मौसम में होटलों में बनने बिकने वाली मिठाईयों की औपचारिक जांच और फिर दोषियों पर लगाए जाने वाले जुर्माने के समाचारों का सच समझना होगा । क्या मिठाईयों में होने वाली मिलावट और उनमें उपयोग में लाए जाने वाले अत्यंत हानिकारक रंग और पदार्थों के लिए, जिनके उपयोग से कैंसर जैसी घातक बीमारियों के होने की संभावना बताई जाती है, उनके निर्माणकर्ता और विक्रेता को कभी कठोर दंड दिए जाते देखा है ? यदि नहीं तो क्या खुलेआम जानलेवा मिठाईयों और खाद्यान्नों को बनाने बेचने का अधिकार थोड़े से आर्थिक दंड भर के प्रावधान के साथ देना न्यायोचित है ? मिलावटखोरी पर चर्चा करते हुए झारखंड की राजधानी में कुछ वर्ष पूर्व एक ईमानदार अधिकारी भोर सिंह यादव के द्वारा की गई कठोर कार्रवाईयों की याद आना स्वाभाविक है । बेहद अफसोस की बात है कि उस दौरान जनता के स्वास्थ्य के कई दुश्मनों और मिलावटखोरों पर हो रही कार्रवाईयों को बाधित करने का काम तब की राज्य सरकार ने किया था और जनता उस अधिकारी की समर्थक होने के बावजूद मूकदर्शक बने रहने को विवश हो गई थी । सार यह कि कभी सत्ता तो कभी प्रशासन, तो कभी दोनों के गठजोड़ से मिलावटखोरी निरंतर जारी है ! ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह कि मानवीय स्वास्थ्य को कमजोर और रोगग्रस्त करने की इस प्रक्रिया का जो परिणाम भविष्य के राष्ट्रीय जीवन पर पड़ेगा, उसकी चिंता कौन करेगा ? कोई नहीं करेगा तो भविष्य की भावी पीढ़ियों को रोगग्रस्त और कमजोर करने के भयावह दुष्परिणाम क्या होंगे ? यहां एक बात का जरुरी जिक्र यह भी कि अब तो खाद्यान्नों के साथ पीने के पानी को स्वच्छ बनाने के लिए भी जिन केमिकल पदार्थों का धड़ल्ले से खूब उपयोग किया जा रहा है, खबर है कि पानी में उनकी अधिक मात्रा मनुष्य को नपुंसकता का शिकार कर सकती है । अर्थात पेयजल बनाने बेेचने वाली कंपनियों और दुकानों की भी जांच जरूरी है, पर करेगा तो कौन और कितनी ईमानदारी से ? मिलावटखोरी के जिक्र की सूची लंबी है, मिलावटी और नकली दवा, मिलावटी डीजल-पैट्रोल के साथ कई अन्य उत्पादों में मिलावट खुलेआम जारी है ! पर समाधान क्या ? नशाखोरी हो या मिलावटखोरी, समाधान भाषण नहीं कठोर कार्रवाई है, जिसके लिए ईमानदार और कठोर सत्ता और प्रशासन चाहिए । गृहमंत्री जी ने नशाखोरी के लिए दो साल का समय दिया है ! क्या इसके लिए देश भर में काम करते हर अधिकारी और कार्यालय प्रारंभिक कुछ दिनों में प्रतिदिन सूचीबद्ध दो नये पुराने दोषियों पर कार्रवाई कर सकते हैं ? फिर इन दो से दस का पता लगाना कितना आसान है, ये सब बखूबी जानते हैं । पर सवाल फिर वही – – –