एक ओंकार : गुरु नानक देव जी के महान आदर्श

Ek Omkar: The Great Ideal of Guru Nanak Dev Ji

दिलीप कुमार पाठक

गुरु नानक जी की जयन्ती हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है l सिक्ख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक जी को याद किया जाता है l इस दिन को गुरुपर्व, प्रकाश उत्सव भी कहते हैं l गुरु नानक जयंती शुरू होने से पहले मुख्य सिक्ख क्षेत्रों में केंद्रीय स्थानों पर लगातार पाठ किया जाता है; जिसे अखंड पाठ के रूप में जाना जाता है। यह कार्यक्रम 48 घंटे तक चलता है।

पंचांग के अनुसार, गुरु नानक जी की जयंती हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है l गुरु नानक जी का जन्म 1469 ई. को पंजाब (अब पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ था, हालांकि अब गुरु नानक जी का ये जन्म स्थल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मौजूद ननकाना साहिब में है। इस जगह का नाम नानक देव के नाम से जाना जाता है। यहां देश-विदेश से लोग चर्चित गुरुद्वारा ननकाना साहिब के दर्शन के लिए आते हैं। सिक्ख साम्राज्य के राजा महाराजा रणजीत सिंह ने यह गुरुद्वारा ‘ननकाना साहिब’ बनवाया था। गुरु नानक देव ने मूर्ति पूजा को निरर्थक माना और हमेशा ही रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में रहे। गुरु नानक जी ने ही सिक्ख समाज की नींव रखी थी। इस कारण से ही उनकी विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। गुरु नानक देव को उनके भक्त नानक देव, बाबा नानक और नानकशाह के नाम से पुकारते हैं। इतना ही नहीं, कहा जाता है कि लद्दाख और तिब्बत क्षेत्र में ‘नानक लामा’ भी कहा जाता है। नानक जी की मृत्यु 22 सितंबर, 1539 ईस्वी को हुई। उन्‍होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो बाद में गुरु अंगददेव नाम से जाने गए।

प्रकाश पर्व का उत्सव भारतीयों के लिए इतना पवित्र क्यों है, इस बात को समझना आवश्यक है कि नानक जी के कार्यों ने भारत के संपूर्ण इतिहास को कैसे आकार दिया। सन 1469 में गुरु नानक देव के जन्म से पहले भारत को मूल रूप से जाति प्रथा के रूप में प्रसिद्ध सामाजिक श्रेणी द्वारा परिभाषित किया जाता था। इस प्रथा की वजह से गरीब लोग गरीब ही रहते थे और अमीर लोग निरंतर रूप से अपनी शक्ति को विस्तारित करते थे। गुरु नानक जी ने यह समझ लिया था कि यह प्रथा गलत है, इसलिए उन्होंने इससे लड़ने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था l ध्यान और आत्म-चिंतन के बाद गुरु नानक को एक स्वप्न आया जिसने उन्हें परमात्मा का सच्चा उद्देश्य दिखाया। इस स्वप्न के अनुसार, परमात्मा से जुड़ने के लिए औपचारिक संस्थान और जाति प्रथा आवश्यक नहीं है। गुरु नानक के स्वप्न का मूलभूत पहलू यह था कि सभी मनुष्यों का परमात्मा से सीधा संपर्क है। इसके बाद गुरु नानक जी ने पुजारियों और जाति प्रथा को अस्वीकार कर दिया। गुरु नानक ने हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथ, वेदों का ज्ञान लेने से भी मना कर दिया। सबसे पहले, गुरु नानक जी को विधर्मी के रूप में माना गया जिन्होंने परमात्मा को अस्वीकार किया था, इस स्थिति में तब परिवर्तन हुआ जब दलितों और निम्न वर्ग के लोगों को यह अनुभव हुआ कि गुरु नानक के सिद्धांत के अंतर्गत उनका जीवन ज्यादा बेहतर हो सकता है। इसके बाद जल्दी ही गुरु नानक को कई लोगों के द्वारा एक नायक के रूप में देखा जाने लगा। गुरु नानक ने अपने अनुयायियों को यह शिक्षा भी दी कि उपवास और तीर्थस्थलों जैसे पारंपरिक साधनों के माध्यम से परमेश्वर से नहीं जुड़ा जा सकता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को नैतिक जीवन का आनंद उठाते हुए प्रार्थना के माध्यम से परमात्मा से जुड़ने की सलाह दी। जाति प्रथा को नष्ट करने के बाद गुरु नानक पुजारियों और मुग़ल शासकों के राजनैतिक शत्रु बन गए। मुग़ल राजा बाबर को चुनौती देने के कारण गुरु नानक को बंदी बना लिया गया। उनकी मृत्यु के पश्चात गुरु नानक की बुद्धिमता और भावना नौ सिक्ख गुरुओं को मिली। किसी भी महान चिंतक के चले जाने के बाद उनका ज्ञान एवं उनकी साधना लोगों को प्रेरित करती है, यही कारण है कि सिक्खों के अलावा भी गुरु नानक देव जी के उपदेश लोगों को अच्छे लगते हैं जिनमे से उनके द्वारा दी गई शिक्षा कुछ इस तरह है –

गुरु नानक देव जी ने ‘इक ओंकार का नारा’ दिया था, परम -पिता परमेश्वर एक है l हमेशा एक ईश्वर की साधना में मन लगाओ। दुनिया की हर जगह और हर प्राणी में ईश्वर मौजूद हैं। स्त्री – पुरुष समान हैं, हमें स्त्रियों के प्रति कृतज्ञ एवं उनका सम्मान करना चाहिए l ईश्वर की भक्ति में लीन लोगों को किसी का डर नहीं सताता। ईमानदारी और मेहनत से पेट भरना चाहिए। बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न ही किसी को सतायें। हमेशा खुश रहना चाहिए, ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा याचना करें। मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरत मंद की सहायता करें। सभी को समान नज़रिए से देखें, स्त्री-पुरुष समान हैं। भोजन शरीर को जीवित रखने के लिए आवश्यक है। परंतु लोभ-लालच के लिए संग्रह करने की आदत बुरी है l