यूपी के आधे से अधिक जिलों में बिजली सप्लाई निजी हाथों में जाएगी

Electricity supply will go into private hands in more than half of the districts of UP

अजय कुमार

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बिजली विभाग के कर्मचारियों के विरोध के बीच प्रदेश की विद्युत वितरण व्यवस्था निजी हाथों में देने के लिये बड़ा बदलाव करने की तैयारी कर रही है। योगी सरकार ने इस ओर आगे कदम बढ़ाना जारी रखा तो सबसे पहले प्रदेश के 42 जिलों कि विद्युत व्यवस्था निजी आपरेटरों के हाथों में चली जायेगी। सरकार यह फैसला लगातार जारी लाइन लॉस और बिजली विभाग के बढ़ते घाटे को ध्यान में रखकर लिया है। जिसके लिये नियम कायदे भी तय किये जा रहे हैं। सबसे पहले दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के बाद दोनों डिस्कॉम में कार्यरत अभियंताओं और कर्मियों को तत्काल निजी कंपनी से छुटकारा नहीं मिलेगा। एक वर्ष तक सभी को निजी कंपनी में ही काम करना होगा। दूसरे वर्ष में भी सिर्फ एक-तिहाई ही पावर कारपोरेशन के अन्य डिस्कॉम में जा सकेंगे। आउटसोर्स कार्मिकों की भी मौजूदा अनुबंध की अवधि तक ही निजी कंपनी में कुर्सी सलामत रहेगी। अनुबंध की समाप्ति के बाद निजी कंपनी ही तय करेगी किसे बनाए रखना है और किसकी छुट्टी करनी है।

पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने बढ़ते घाटे के मद्देनजर पहले-पहल जिन दो डिस्कॉम पूर्वांचल और दक्षिणांचल की बिजली व्यवस्था पीपीपी मॉडल पर निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है उनमें 42 जिलों के लगभग 1.71 करोड़ उपभोक्ता हैं। इन उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति के लिए लगभग 16 हजार नियमित अभियंता व अन्य के साथ ही 44 हजार संविदा कर्मी दोनों डिस्कॉम में कार्यरत हैं। पीपीपी मॉडल में दोनों डिस्कॉम को निजी हाथों में सौंपने पर अपने भविष्य को लेकर चिंतित इंजीनियर व अन्य कार्मिक निजीकरण का लगातार विरोध कर रहे हैं। हालांकि, कारपोरेशन प्रबंधन का दावा है कि निजीकरण में तीन विकल्पों के माध्यम से सभी इंजीनियर व कार्मिकों के हित सुरक्षित रहेंगे और संविदा कर्मियों को नहीं हटाया जाएगा।

ध्यान देने वाली बात यह है कि निजी सहभागिता से बिजली आपूर्ति संबंधी फैसला अंडमान विद्युत वितरण निगम के आरएफपी (प्रस्ताव के लिए अनुरोध) के आधार पर कारपोरेशन प्रबंधन द्वारा तैयार किए गए हैं जिस आरएफपी को मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की अध्यक्षता वाली एनर्जी टास्क फोर्स/इंपावर्ड कमेटी ने मंजूर किया है उसमें मौजूदा अभियंताओं व कार्मिकों को एक वर्ष तक किसी भी विकल्प का लाभ नहीं मिलेगा।निजी कंपनी के बिजली व्यवस्था संभालने के एक वर्ष तक सभी को जहां हैं वहीं काम करना होगा। अन्य डिस्कॉम में स्थानांतरित किए जाने का विकल्प देने वालों में से कारपोरेशन प्रबंधन सिर्फ एक-तिहाई को दूसरे वर्ष के अंत में मौका देगा। शेष दो-तिहाई को निजी कंपनी से निकलने के लिए अगले दो वर्ष तक इंतजार करना पड़ेगा। निजी कंपनी में बने रहने का विकल्प देने वालों की नौकरी भी तभी सुरक्षित रहेगी जब उसके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई न हो। वीआरएस लेने का विकल्प भी एक वर्ष बाद लागू होगा। आउटसोर्स कर्मचारियों के संबंध में स्पष्ट किया गया है कि मौजूदा अनुबंध की अवधि तक ही सभी अपने पदों पर बने रहेंगे। अनुबंध अवधि खत्म होने के बाद निजी कंपनी इन कर्मचारियों को रखने के लिए बाध्य नहीं होगी।