आर्थिक आशंकाओं के बीच खेती

Farming amid economic fears

विजय गर्ग

पिछले दिनों दिल्ली में प्रधानमंत्री और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) में प्रगति की सराहना करते हुए कहा कि इससे दोनों देश लाभान्वित होंगे। उल्लेखनीय है कि तेजी से आगे बढ़ रहे द्विपक्षीय कारोबारी समझौते में भारत द्वारा अमेरिका से कृषि आयात पर शुल्क कमी के प्रावधान भी हैं। भारत ने प्रारंभिक रूप से अमेरिका को बादाम, अखरोट, क्रैनबेरी, पिस्ता और दाल जैसे कृषि उत्पादों पर | शुल्क कटौती पर सहमति के संकेत दिए हैं। इस समय अमेरिका में चीन के कई कृषि उत्पादों पर लागू 245 फीसद शुल्क की तुलना में १० | 90 दिन बाद भारत के कृषि निर्यात पर लगाए जाने वाले 26 फीसद शुल्क का परिदृश्य अमेरिका में भारत के खाद्यान्न और खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों के निर्यात के मौके बढ़ाने वाला है। चूंकि इस वर्ष वैश्विक खाद्यान्न व्यापार के घटने की रपट आ रही है, ऐसे में कृषि उत्पादों का अधिक निर्यात भारत के लिए विदेशी मुद्रा की अधिक कमाई का माध्यम भी बन सकेगा।

इसमें कोई दो मत नहीं कि जिस तरह पांच साल पहले कोरोना से जंग में हमारे खाद्यान्न भंडार देश के हथियार बन गए थे, उसी प्रकार इस समय अमेरिकी शुल्क की मार के साथ-साथ शुल्क और गैर- शुल्क बाधाओं को कम करने से होने वाली किसी भी प्रकार की हानि को कम करने के मद्देनजर देश में रिकार्ड पैदावार और खाद्य प्रसंस्करण उत्पाद एक मजबूत हथियार दिखाई दे रहे हैं। हैं। अगर हम वर्ष 2024-25 के लिए जारी मुख्य कृषि फसलों (खरीफ एवं रबी) की पैदावार के र के दूसरे अनुमान की और देखा, की ओर देखें, तो पाते हैं चावल, गेहूं, मक्का, मूंगफली एवं सोयाबीन के साथ-साथ तुअर और चने की भी रेकार्ड पैदावार की उम्मीद जताई गई है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि देश में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 33 करोड़ टन से भी अधिक होने का का अनुमान है।

इसी तरह फल और सब्जी उत्पादन में भी तेज वृद्धि होगी। नहीं, वर्ष f 2024-25 5 के सकल घरेलू उत्पाद में (जीडीपी) में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के योगदान में 4.6 फीसद वृद्धि हो सकती है। पिछले वर्ष यह वृद्धि दर 2.7 फीसद थी। अच्छा मानसून भी कृषि विकास को नई ऊंचाई दे सकेगा। पिछले दिनों मौसम विभाग ने इस साल देश में मानसून के दौरान औसत से पांच फीसद अधिक वर्षां का अनुमान जताया है। इससे ग्रामीण भारत सहित पूरे देश की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा और कृषि निर्यात भी बढ़ेगा।

निश्चित रूप से से देश में बढ़ता खाद्यान्न उत्पादन और मजबूत होती ग्रामीण आर्थिकी देश की आर्थिक शक्ति बन गई है। इस समय देश में खाद्यान्न भंडार भरे हुए हैं और अनाज निर्यात बढ़ रहा है। हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, वित्तवर्ष 2024-25 के दौरान शुल्क चुनौतियों और विश्व व्यापार को लेकर जारी अनिश्चितता के बीच भारत के कृषि निर्यात में मजबूत वृद्धि दर्ज की गई है। देश का कुल कृषि निर्यात 50 अरब डालर के पार पहुंच गया है। भारत के कृषि क्षेत्र के निर्यात में हुई बढ़ोतरी का मुख्य कारण चावल के निर्यात में 20 फीसद की तेज बढ़ोतरी को माना जा रहा है। सरकार ने धान की बंपर पैदावार और काफी अधिक अनाज जमा होने की संभावनाओं को देखते हुए एक साल बाद पिछले वर्ष सितंबर 2024 में चावल के निर्यात पर प्रतिबंधों में ढील देना शुरू कर दिया था। 2024-25 में चावल का निर्यात 20 फीसद बढ़कर 12.47 अरब डालर से अधिक हो गया है। एक दशक से भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक बना हुआ है।

इस तरह, जहां देश में खाद्यान्न की कमी से खाद्यान्न अधिशेष की ऊंचाइयां देश के लिए लाभप्रद बन गई है, वहीं भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र भी शुल्क संग्राम में भारत की आर्थिक ताकत बन गया है। वित्तवर्ष 2023-24 की तुलना में भारत का कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का निर्यात वित्तवर्ष 2024-25 में 13 फीसद बढ़ कर 25.14 अरब डालर हो गया है। यह एक ऐसा उभरता उद्योग है, जिसमें पिछले दस वर्षों 1 वर्षों में 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी हुआ है। इस परिप्रेक्ष्य में पीएचडी चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआइ) की खाद्य प्रसंस्करण पर प्रकाशित शोध अध्ययन रपट उल्लेखनीय है। इसके मुताबिक भारत के खाद्य प्रसंस्करण का क्षेत्र वर्ष 2023 में 307 अरब डालर का था, यह तेजी से बढ़ कर वित्तवर्ष 2030 तक 700 अरब डालर, वर्ष 2035 तक 1100 अरब डालर, वर्ष 2040 तक 1500 अरब डालर और वर्ष 2047 तक 2150 अरब डालर तक पहुंचने की उम्मीद है। रपट में कहा गया है कि कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से निर्यात लगातार बढ़ते हुए वर्ष 2030 तक 125 अरब डालर, वर्ष 2035 तक 250 अरब डालर, वर्ष 2040 तक 450 अरब डालर और वर्ष 2047 तक 700 अरब डालर की ऊंचाई पर पहुंच जाएगा।

इस नए व्यापार युग में कृषि और ग्रामीण विकास के आधारों को और मजबूत बनाना 1 बनाना होगा। निश्चित रूप से अमेरिका की ओर से थोपे गए शुल्क से इस समय देश की आर्थिकी को होने वाले किसी भी नुकसान भरपाई के साथ भविष्य में भी अन्य किसी भी वैश्विक आर्थिक चुनौती का का मुकाबला करने के लिए कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संवारने पर तेजी से काम करना होगा। कृषि के बुनियादी ढांचे और निवेश पर पिछले एक दशक में रणनीतिपूर्वक ध्यान दिए जाने के अच्छे परिणाम मिले हैं। सूचना प्रौद्योगिकी तक पहुंच बढ़ने से ग्रामीण-शहरी दूरियों में कमी ला दी है। भारतीय किसान तेजी से डिजिटल भुगतान, फसल बीमा और बैंकों से औपचारिक ऋण की सुविधाओं की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। उम्मीद कि अमेरिका के साथ पारस्परिक उत्पादों भारत-अमेरिकी ” कारोबार पर शुल्क की कमी और प्रस्तावित शुल्क पर सहमति, कृषि समझौते को तेजी से अंतिम रूप देने की रणनीति दोनों देशों के लिए लाभप्रद होगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार ने जिन कृषि उत्पादों पर 50 फीसद से अधिक के अतिशय शुल्क लगाए हैं, उन्हें तार्किक बनाने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। यह भी उम्मीद करें कि सरकार भारत के अधिक मूल्य वाले कृषि निर्यातों जैसे आम, केला, अंगूर, अनार आदि को अमेरिका के बाजारों में वरीयता के आधार पर पहुंच दिलवाने के साथ-साथ जिन कृषि उत्पादों को लंबे समय से अमेरिका में नियामकीय अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है, उनके लिए रणनीतिपूर्वक वार्ता के लिए अवश्य आगे बढ़ेगी। व्यापार युद्ध के इस नए दौर में भारत दमदार कृषि आधार तैयार करते हुए आगे बढ़ेगा। रेकार्ड खाद्यान्न उत्पादन बढ़ता खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और बढ़ता कृषि और खाद्य प्रसंस्करण निर्यात नए व्यापार जंग में भारत के लिए एक मजबूत और असरकारक आर्थिक उपकरण के रूप में दिखाई देगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब