रविवार दिल्ली नेटवर्क
डीडवाना कुचामन जिले में हुआ पहला देहदान जसवंतगढ़ कस्बे के सेवानिवृत व्याख्याता हुलास चंद्र जोशी के निधन पर देहदान, हुलास चंद्र जोशी ने स्वैच्छिक देहदान की कर रखी थी घोषणा, सीकर के कल्याण मेडिकल कॉलेज को हुलास चंद्र जोशी की देह परिजनों द्वारा किया गया सुपुर्द, परिजनों ने देह को सीकर के लिए किया रवाना
डीडवाना : अगर समाज के लिए अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो इंसान मरने के बाद भी लोगों का भला कर सकता है। ऐसा ही उदाहरण पेश किया है डीडवाना – कुचामन जिले के जसवंतगढ़ निवासी हुलास चंद्र जोशी ने, जिनकी मृत्यु के बाद उनकी देह का दान कर दिया गया।
हुलास चंद्र जोशी ने अपने जीवित रहते ही देहदान की स्वीकृति प्रदान कर दी थी। उनकी अंतिम इच्छा को देखते हुए ही उनके पुत्र योगेश जोशी और पूरे परिवार ने भी आज उनकी देह को सीकर के कल्याण मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया। आपको बता दें कि हुलास चंद्र जोशी का आज सुबह निधन हो गया। उसके बाद परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा को देखते हुए उनके क्रियाकर्म करने के पश्चात शव की अंतिम यात्रा निकाली। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग उमड़ पड़े और हुलास चंद्र जोशी को श्रद्धांजलि अर्पित की। उसके बाद उनके शव को गाजे बाजे के साथ एंबुलेंस के जरिए सीकर रवाना किया गया।
अब हुलास चंद्र जोशी की देह सीकर मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की पढाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए शरीर विज्ञान के अध्ययन के काम आएगी। जोशी की देह के द्वारा मेडिकल स्टूडेंट शरीर के विभिन्न अंगों के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर पाएंगे।
मेडिकल की पढ़ाई में \’साइलेंट टीचर\’ यानि मूक शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन मृतक की देह करती है।
आपको बता दें कि मेडिकल साइंस में देहदान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। जिंदा रहकर हर कोई तरह-तरह के दान करता है, लेकिन जो व्यक्ति अंगदान या देहदान करके जाता है, वह मरने के बाद भी कई लोगों को नई जिंदगी देकर जाता है। इसलिए देहदान को सबसे महान दान माना गया है।
अपनी मृत्यु के बाद अपना पूरा शरीर चिकित्सा विज्ञान के लिए दान करने को ही देहदान कहा जाता है। देहदान से चिकित्सा अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा मिलता है। मृत शरीर वहां के छात्रों के रिसर्च के काम आता है। रिसर्च में शोधकर्ता इंसानी शरीर को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। कुछ व्यक्ति मरने से पहले अपना शरीर दान करके जाते हैं। हालांकि देहदान के लिए एनाटॉमिकल संस्थान से सहमति लेनी होती है, जिसके लिए एक हस्तलिखित घोषणा (कोडिसिल) देनी होती है। देहदान के बाद, शरीर का अंतिम संस्कार किया जा सकता है। परिवार के अनुरोध पर, शरीर के अवशेष वापस भी लिए जा सकते हैं।