
डॉ. बी.आर. नलवाया
पूर्व विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापक वाणिज्य राजीव गांधी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मन्दसौर (म.प्र.)
मनुष्य का स्वभाव ही सुख अथवा आनन्द में रहना। हम सभी हर पल, हर घड़ी आनन्द में रहना, जीना चाहते। इसी कारण हम हर पल आनन्द में लगे रहते हैं। आनन्द प्राप्ति के लिए अच्छा खाते हैं, अच्छा पहनते हैं. अच्छा घर में रहकर अच्छा सजाकर रखना भी आनन्द ही है । इसी प्रकार, कई मनुष्यों को पढ़ने में आनन्द आता है, किसी को लिखने में। कोई चापलूसी करने में आनन्द प्राप्त करता है, तो किसी को चापलूसी करवाने में आनन्द की प्राप्ति होती है। लेकिन जितना हम आनन्द पाने के लिए भाग-दौड़ करते हैं, छटपटाते हैं, आनन्द उतना ही हमसे दूर भागता है। फिर कैसे प्राप्त करें आनन्द ? जीवन को कैसे खुशियों से भरे ?
आनन्द क्या है ? इसे इसे कैसे जाना जाता है? क्या वर्तमान में हम जी रहे हैं, तो इसमें आनन्द नहीं है क्या? ऐसे कई प्रश्न हमारे मस्तिष्क में आते हैं। वास्तव में आनन्द एक ऐसी अनुभूति है जो अंतक्ष की गहराइयों में महसूस होती है। आनन्द वह है, जो मनुष्य को या हर प्राणी को मन के अन्दर तथा शारीरिक रूप से आंतरिक सुख व शांति से भी ऊपर कर अहसास होता है, वह आनन्द है। आनन्द दुख नहीं होने की दशा में सुख है, लेकिन सुखी होने का अर्थ आनंदित होना नहीं है। आनन्द तो सुख की दशा में होने वाला वह अतिरिक्त भाव है, जो चित्त को प्रसन्न एवं तरोताजा कर परमात्मा से एकाकार होने को प्रवृत्त करता है। यहां यह स्पष्ट है कि किसी कम्पनी के वार्षिक लाभ में से कर्मचारियों को नियमित वेतन के बाद लाभ का हिस्सा दिया जाता है, जिसे बोनस कहते है, उसमें ही अधिक आनन्द आता है। इसी प्रकार, आनन्द सुख की दशा में अतिरिक्त सुख प्राप्त होने वाला बोनस ही आनन्द होता है।
आनन्द के लिए धन की नहीं, मन की आवश्यकता होती है। आनन्द दिल की गहराई से निकलने वाला सुख होता है। अपने आसपास के परिवेश में सूक्ष्म निरीक्षण करें, तो कई आश्चर्यजनक तथ्य प्रकट होंगे। मनुष्य अपनी मर्जी का मालिक होता है। आनन्द लेने के लिए जैसे किसी को फूल चुनने में आनन्द आता है, किसी को सब्जी सुधारने में भी आनन्द आता है, तो किसी को घर की बालकनी में बैठकर सड़क पर आने-जाने वाले व्यक्तियों, वाहनों को देखकर आनन्द लेते हैं। इस तरह की छोटी-छोटी बातें किसी के जीवन में आनन्द का सूजन कर सकती है। आनन्द अकल्पनीय है. आनन्द अनायास है, आनन्द अयाचित है, आनन्द अनन्त है। आनन्द प्राप्ति के निम्न सूत्र हो सकते हैं-
(1) आनन्द का सीधा सम्बन्ध है सहजता और सरलता से। हम जितने सहज और सरल होंगे, उतना ही हम अधिक आनन्द में रह सकेंगे ।
(2) सच्ची खुशी या आनन्द पाने के लिए बाहर तलाश करने के बजाय उसे अपने अंदर खोजो। आनन्द का वास्तविक स्रोत आपके भीतर ही है।
(3) सकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत मनही सच्चा आनन्द प्रदान करने में सक्षम है।
4) खुशियां तो हमारे चारों और बिखरी पड़ी है, इसके लिए पार्क में दौड़ने या टहलने चले जाए.
( वहां प्रकृति की प्रदत्त पेड़-पौधे, फूल-पत्तियाँ, सब आपसे मिलने को वैचेन है। रुकिए, जरा उनसे मिलिए, सचमुच आनन्द आएगा ।
(5) बच्चों के साथ दुकान पर जाते हैं। बच्चा कहता है, वह नहीं लेना, आप वही दिलवाते हैं. जो आपको अच्छा लगता है। क्या आपको आनन्द की प्राप्ति होगी, नहीं ? वास्तव में सच्चा आनन्द दूसरों को आनन्दित करने में है।
(6) किसी मजदूर या अन्य जैसे कूरियर वाले को भरी दुपहरी में आपके घर के दरवाजे की घंटी बजाता है, उसे एक गिलास पानी पीला दो, जो प्यासा होने पर आपसे मांगने पर झिझकता है, उसे पानी पिलाने का सही में कितना आनन्द आएगा ।
(7) किसी भिक्षुक को घर के बाहर बरामदे में ही सही अपने हाथों से भोजन करा के देखिए, कितनी तृप्ति मिलेगी आपको ? क्या यह सच्चा आनन्द नहीं होगा ?
(8) दूसरों की प्रशंसा करना सीखें एवं प्रशंसा करके उनका मनोबल बढ़ेगा, तो वह बहुत प्रसन्न होगा, इससे आपको आत्मसंतुष्टि का आनन्द आयेगा ।
(9) कुछ समय आप ध्यान, पूजा पाठ में भी रूचि लेवें। इससे मन को शांति मिलेगी, इससे घर का वातावरण शुद्ध होगा, मन निश्चित ही प्रसन्न होगा, वही आनन्द की अनुभूति होगी।
(10) कभी भी किसी दूसरे व्यक्ति से ईर्ष्या न करें। इससे आप कभी भी घबरायेंगे नहीं, हर दम अच्छा अनुभव करते रहेंगे ।
(11) आत्मविश्वास से बढ़कर दूसरी कोई शक्ति नहीं है। अपनी क्षमताओं, योग्यताओं, सामर्थ्य एवं संभावनाओं को पहचानों और पूर्ण आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ो। जैसे-जैसे सफलता मिलेगी रहेगी, जीवन जीने का आनन्द आता रहेगा।
(12) राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम बचपन से अखबार बांटा करते थे। उनका सपना एरोनाटिकल इंजीनियर बनने का। अंतरिक्ष विज्ञान में असाधारण शोध का कार्य किया और सफलता मिली। यह उनकी ऊंची कल्पना और ऊंची उड़ान भरने का आनन्द उन्हें हासिल किया।
(13) मन की शक्ति अपार है। उसे पहचाने, आपका मनोबल ही आपको सफलता की मंजिल तक ले जायेगा। किसी काम को करने की मन में ठान लें, उसमें जी जान कर पूरा करे, उससे आनन्द की प्राप्ति निरंतर बनी रहेगी ।
(14) एकाग्रता, इच्छाशक्ति एवं कर्मठता के होते हुए भी यदि मनुष्य प्रयत्नशील नहीं रहता, तो सफलता प्राप्त नहीं होती है। इसलिए आनन्द में जीने के लिए सतत् प्रयास की आवश्यकता है।
(15) आपकी बातचीत से, आपके व्यवहार से, आपके हावभाव से लोगों को प्रसन्नता का संचार होगा, तो आपके आते ही लोगों के चेहरे खिल जाएंगे। आपको सभी आदर सत्कार करेंगे, तो निश्चित ही आपके मन को अच्छा सुकून मिलेगा ।
आनन्द बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियों में तो है ही, परन्तु रोजमर्रा की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में ज्यादा है। हर व्यक्ति को अपनी आंतरिक शक्ति को जगाकर आनन्द का अनुभव करना चाहिए। आत्मा का आनन्द सदा आपका है और आप असर पाएंगे कि इसे आसानी से पा सकते है। दुख का मूल कारण बाहरी संसार में नहीं, आपके भीतर बसे अहं में है। अहं ही सारी अप्रसन्नता का मूल है। इसी से सारी समस्याएं जन्म लेती है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक क्षण और गौरव के साथ जीवन जीने का आनन्द लेते रहना चाहिए । आनन्द के लिए जो उचित बने, वही करो, जैसे- मधुर संगीत पीने के लिए क्रोध, निगलने के लिए अपमान, खाने के लिए गम, व्यवहार के लिए नीति, लेने के लिए ज्ञान, देने के लिए दान, जीतने के लिए प्रेम, धारण करने के लिए धैर्य, तृप्ति के लिए संतोष, त्यागने के लिए लोभ, करने के लिए सेवा, प्राप्त करने के लिए यश, फेंकने के लिए ईर्ष्या, छोड़ने के लिए मोह, रखने के लिए इज्जत और बोलने के लिए सत्य। एक दूसरे के लिए जीने का नाम ही जिन्दगी है। इसलिए वक्त दो उन्हें जो दिल से तुम्हें चाहते हैं। सबका ख्याल रखना, पर अपना भी ख्याल रखना । हमेशा मुस्कराते रहना। कभी अपने लिए, कभी अपनों के लिए ।