
सुनील कुमार महला
हर वर्ष 10 सितंबर को ‘विश्व आत्महत्या निवारण दिवस’ मनाया जाता है। वास्तव में इस दिवस को मनाने के पीछे उद्देश्य आत्महत्या को रोकने(टू प्रिवेंट सुसाइड) के लिए जागरूकता फैलाना है। पाठकों को बताता चलूं कि यह दिवस इंटरनेशनल एसोसिएशन फोर सुसाइड प्रिवेंशन (आईएएसपी) द्वारा 2003 से मनाया जा रहा है।विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ)इसमें अपना सहयोग देता है।इस दिवस का मुख्य उद्देश्य आत्महत्या से होने वाली मौतों को कम करना, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर खुलकर बात करना, समर्थन, देखभाल और उपचार की पहुँच बढ़ाना तथा आत्महत्या करने वाले लोगों, उनके परिवारों और दोस्तों को सहायता देना है। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि 2024 से 2026 तक विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का त्रिवार्षिक विषय ‘आत्महत्या पर कथा को बदलना’ है, जो आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुली चर्चा का आग्रह करता है, कलंक को समझ और समर्थन के साथ बदलता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस वर्ष का अंतर्राष्ट्रीय विषय: ‘चेंजिंग द नेरेटिव आन सुसाइड ‘(आत्महत्या पर दृष्टिकोण बदलना) रखी गई है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह विषय आत्महत्या के बारे में हमारी सोच और संवाद को बदलने की आवश्यकता को उजागर करता है। पाठक जानते हैं कि विश्व में हर वर्ष लाखों लोग आत्महत्या करते हैं। मानसिक तनाव, अवसाद, नशा, आर्थिक समस्याएँ, अकेलापन और सामाजिक दबाव इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आत्महत्या एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है – इसे छिपाना नहीं, समझना ज़रूरी है। बहरहाल, यदि हम यहां पर भारत में आत्महत्या के प्रमुख आंकड़ों की बात करें तो भारत में 2022 में कुल 1,70,924 आत्महत्याएँ हुईं, जो 2021 की तुलना में 3.3% अधिक हैं। चिंताजनक बात यह है कि यह आंकड़ा पिछले 56 वर्षों में सबसे अधिक है। आत्महत्या की दर की यदि हम यहां पर बात करें तो साल 2022 में आत्महत्या की दर 12.4 प्रति 1,00,000 जनसंख्या थी। वास्तव में यह बहुत ही चिंताजनक बात है कि 18-30 वर्ष की आयु वर्ग में कुल आत्महत्याओं का 35% हिस्सा है, जबकि 30-45 वर्ष की आयु वर्ग में 32% आत्महत्याएँ हुईं। वहीं दूसरी ओर यदि हम महिलाओं में आत्महत्या की यदि यहां पर बात करें तो महिलाओं में आत्महत्या की दर 80 प्रति 1,00,000 है, जबकि पुरुषों में यह दर 34 प्रति 1,00,000 है। इतना ही नहीं साल, 2022 में 11,290 किसानों और कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की, जो कुल आत्महत्याओं का 6.6% है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के समय में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ, जैसे कि अवसाद, चिंता, द्विध्रुवी विकार, और स्किज़ोफ्रेनिया, आत्महत्या के प्रमुख कारण हैं।यह भी एक तथ्य है कि कृषि संकट, जैसे सूखा, फसल विफलता, और कर्ज़ का बोझ, किसानों में मानसिक तनाव और आत्महत्या के मामलों में वृद्धि का कारण बनते हैं। हाल फिलहाल, आत्महत्या का निवारण एक बहुत ही संवेदनशील और बहुस्तरीय विषय है। आत्महत्या से बचाव केवल व्यक्तिगत प्रयास नहीं, बल्कि परिवार, समाज, स्वास्थ्य तंत्र और नीति निर्माण का साझा दायित्व है। आज जरूरत इस बात की है कि हम विशेष रूप से अपने युवाओं में अवसाद (डिप्रेशन), चिंता (एंग्ज़ायटी), नशे की आदत जैसी समस्याओं की समय रहते पहचान करें। समय पर मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श लेना बहुत ही महत्वपूर्ण, जरूरी और आवश्यक है। हमें यह याद रखना चाहिए कि योग, ध्यान, व्यायाम और सकारात्मक सोच से मानसिक संतुलन को बनाए रखा जा सकता है। आज हमारी कमी यह है कि हम दूसरों की भावनाओं की कद्र नहीं करते हैं। होना तो यह चाहिए कि हम किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को सुनें, उसका कभी भी मज़ाक न उड़ाएँ। अकेलेपन, असफलता, तनाव, पारिवारिक झगड़े आदि पर खुलकर बातचीत करें। यदि कोई व्यक्ति तनाव और अवसाद से पीड़ित है तो हमें यह चाहिए कि हम उस व्यक्ति विशेष को ‘तुम अकेले नहीं हो, हम तुम्हारे साथ हैं’ जैसा भरोसा दें, ताकि वह जीवन में सहज हो सके और उसे तनाव और अवसाद महसूस न हो।बच्चों, किशोरों और युवाओं के साथ क्वालिटी टाइम बिताया जा सकता है। हमें यह चाहिए कि हम अपने बच्चों के लिए भी पर्याप्त समय निकालें और उन पर पर्याप्त ध्यान दें। बच्चों की दिनचर्या, उनके व्यवहार और मानसिक स्थिति पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मोबाइल की लत तनाव और अवसाद का बड़ा कारण हो सकती है। हमें यह चाहिए कि हम बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने का प्रयास करें और उन्हें खेल के मैदानों, नैतिक कहानियों, पुस्तकालयों, हमारी सनातन संस्कृति आदि से जोड़ें।संकट की स्थिति में उन्हें दोषी न ठहराकर उनकी सहायता करें। उन्हें संबल दें।
बच्चों में सकारात्मक सोच विकसित करना बहुत ही जरूरी है। वास्तव में, सकारात्मक सोच वह मानसिक शक्ति है जो हमारे दृष्टिकोण, व्यवहार और जीवन की दिशा बदल देती है। यह सिर्फ सोच बदलने का तरीका नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक शैली है। जब हम सकारात्मक सोच अपनाते हैं, तो कठिनाइयाँ भी अवसर बन जाती हैं। सकारात्मक सोच का फायदा यह है कि यह हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाती है, हमारे तनाव और अवसाद को कम करती है तथा यह हमारी प्रोडेक्टीविटी (उत्पादकता) में इजाफा करती है। वास्तव में,सकारात्मक सोच का जादू कोई असंभव चीज़ नहीं है। यह रोज़मर्रा की आदतों से पैदा होता है। शुरुआत छोटे कदमों से की जा सकती है, फिर धीरे-धीरे हमारी सोच, दृष्टिकोण और जीवन में बदलाव साफ दिखाई देंगे। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि एक सकारात्मक विचार पूरी दुनिया बदल सकता है और इसकी शुरुआत हम अपने भीतर से कर सकते हैं। इसके अलावा, शराब, ड्रग्स और अन्य लत मानसिक तनाव बढ़ाते हैं। नशा छुड़ाने के लिए पेशेवर सहायता ली जा सकती है। बच्चों में जीवन कौशल का विकास किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं,समस्या समाधान की क्षमता विकसित की जानी चाहिए तथा बच्चों का आत्मसम्मान और आत्मविश्वास बढ़ाया जाना बहुत जरूरी है। समय प्रबंधन, भावनाओं को संभालने और तनाव कम करने की तकनीकें सीखना भी जरूरी है। हमारी ओर से सामाजिक समर्थन और नीतिगत पहलें की जानी चाहिए। मसलन, क्लब, खेल, सामाजिक समूहों में शामिल होकर सकारात्मक नेटवर्क बनाए जाने चाहिए तथा मदद मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए। इसके अलावा मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और आसान उपलब्धता आवश्यक है।स्कूलों और कार्यस्थलों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि भारत सरकार ने आत्महत्या की रोकथाम और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए कई महत्वपूर्ण पहलें की हैं। मसलन,आज हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 लागू है। इस अधिनियम ने आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से बाहर किया है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले व्यक्तियों को सहायता प्राप्त करना आसान हुआ है। गौरतलब है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के अधिकार को सुनिश्चित करने, मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों की गरिमा और उनके अधिकारों की रक्षा करने और भारत के मानसिक स्वास्थ्य कानूनों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ एकीकृत करने के लिए अधिनियमित किया गया था। इस अधिनियम ने 1987 के मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम का स्थान लिया और भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाओं में कई प्रगतिशील बदलाव पेश किए, जैसे सस्ती और गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार और भारत में आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर करना। इतना ही नहीं, केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के लिए 24×7 टोल-फ्री हेल्पलाइन सेवा ‘किरण’ की भी शुरुआत की है। यह हेल्पलाइन चिंता, तनाव, अवसाद और आत्मघाती विचारों से जूझ रहे व्यक्तियों को सहायता प्रदान करती है। यह सेवा 13 भाषाओं में उपलब्ध है और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा संचालित है, जो उपयोगकर्ताओं को परामर्श, मार्गदर्शन और आवश्यकतानुसार चिकित्सकीय सहायता प्रदान करते हैं। मनोदर्पण पहल भी एक अन्य पहल है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू की गई यह पहल छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक कल्याण के लिए मनोसामाजिक सहायता प्रदान करती है। इसमें ऑनलाइन परामर्श, वीडियो, पॉडकास्ट और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जानकारी शामिल है, जो मानसिक तनाव और चिंता से निपटने में मदद करती है। इसके अलावा, राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति, 2022
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल, जागरूकता, शिक्षा, और आपातकालीन सेवाओं के समन्वय पर केंद्रित है। इस रणनीति का उद्देश्य आत्महत्या की दर को कम करना और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बढ़ाना है। अंत में यही कहूंगा कि जीवन अनमोल है और हर व्यक्ति महत्वपूर्ण है। ईश्वर ने हमें जीवन सेवा, प्रेम, करुणा और आत्म-विकास के लिए दिया है।हमें यह जीवन मिला है, इसलिए हमें इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि हर दिन, हर सांस, एक नया अवसर है।हमें मानसिक स्वास्थ्य(मेंटल हेल्थ) पर खुलकर बात करनी चाहिए, और इस कलंक को समाप्त करना चाहिए और हर उस व्यक्ति का साथ देना चाहिए जो संघर्ष कर रहा हो। विश्व आत्महत्या निवारण दिवस हमें प्रेरित करता है कि हम करुणा, संवाद और सहयोग से जीवन को नई दिशा दें। यही सच्चा संकल्प है – ‘जीवन को चुनें, आशा को बढ़ावा दें।’ हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि हमारी सोच जितनी उजली होगी, हमारी राह उतनी ही सरल होगी।