नरेंद्र तिवारी
भारत देश अपनी सांस्कृतिक विशेषता के कारण दुनियां में एक अलग पहिचान रखता है। यही सांस्कृतिक विशेषता हमारे देश को श्रेष्ठता प्रदान करती हैं, इस विशेषता के दर्शन तीज त्यौंहार, उत्सव, परंपराओं में होते है। इसी तरह की सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता भारत में नवदुर्गा उत्सव के बाद किसी सांस्कृतिक पर्व में नजर आती है तो वह है, दस दिवसीय गणेश उत्सव, इस उत्सव ने सम्पूर्ण देश को एकता के मोती में गूथ दिया। यह उत्सव किसी विशेष जाति, वर्ग का नहीं होकर राष्ट्रीय उत्सव नजर आता है। गणेश उत्सव ने देश की राष्ट्रीय चेतना जगाने और सामाजिक समरसता स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। महाराष्ट्र राज्य से शुरू हुआ यह उत्सव समय के साथ सम्पूर्ण भारत में मनाया जाना लगा। इस उत्सव की खास बात यह है की यह समाज के सभी वर्गों में समान उत्साह, उमंग और उल्लास के साथ मनाया जाता है। जातिपाती और आर्थिक मतभिन्नता के परे इस उत्सव में गजब की सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता के दर्शन होते है। गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र के पुणे से हुई थी। गणेश चतुर्थी का इतिहास मराठा साम्राज्य के सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा है। ऐसी मान्यता है की भारत में मुगल शासन के दौरान अपनी सनातन संस्कृति को बचाने हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी माता जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी यानी गणेश उत्सव की शुरुआत की थी। यह उत्सव हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी (चार तारीख चौदह तारीख तक) दस दिवस तक चलता है। गणेश जी निराकार दिव्यता हैं जो भक्त के उपकार हेतु एक अलौकिक आकार में स्थापित हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार वह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र है। गण का अर्थ है समूह। यह पूरी सृष्टि परमाणुओं और अलग–अलग ऊर्जाओं का समूह है। यदि कोई सर्वोच्च नियम इस पूरी सृष्टि के भिन्न–भिन्न संस्थाओं के समूह पर शासन नहीं कर रहा होता तो इसमें बहुत उथल–पुथल हो जाती। इन सभी परमाणुओं और ऊर्जाओं के समूह के स्वामी हैं गणेशजी। वे ही वह सर्वोच्च चेतना है, जो सर्वव्यापी है, और इस सृष्टि में एक व्यवस्था स्थापित करती है। आदि शंकराचार्य ने गणेश जी के सर का बहुत सुन्दरता से गणेश स्त्रोत में विवरण प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार हालांकि, गणेश जी की पूजा हाथी के सिर वाले भगवान के रूप में होती है, लेकिन यह आकार या स्वरूप वास्तव में उस निराकार परब्रह्म रूप को प्रकट करता है। वे ’ अजं निर्विकल्प निराकारमेकम’ है। अर्थात गणेश जी अजं (अजन्मे) हैं, निर्विकल्प ( बिना किसी गुण के) हैं, निराकार (बिना किसी आकार के) हैं और वे उस चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी है। गणेश जी वही ऊर्जा है जो इस सृष्टि का कारण है। यह वही ऊर्जा हैं‚ जिसमे सबकुछ प्रकट होता है और जिसमे सबकुछ विलीन हो जाता है। भगवान गणेश जी के जन्म की कहानी हम सभी उस कथा को जानते हैं, कि कैसे गणेश जी हाथी के सिर वाले भगवान बने। गणेश जी भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। पुरातनकाल से हिंदू समाज कोई भी शुभ कार्य निर्विघ्न संपन्न करने के लिए उसका आरंभ गणपति की पूजा से होता है। गणेश जी सुख–समृद्धि, वैभव एवं आनंद के अधिष्ठाता हैं। समाज में सभी शुभ कार्यों का प्रारंभ उनके दिव्य स्वरूप का स्मरण करके किया जाता है। व्यापारी अपने बहिखातों पर ’श्री गणेशाय नम:’ लिखकर ही नए वर्ष का प्रारंभ करता है। विवाह के मांगलिक अवसर पर भी गणेश पूजा की जाती है। श्री गणेश जी की अराधना से जुड़े इस उत्सव का राष्ट्रीय महत्व भी है। पेशवाओं ने गणेश उत्सव को बढ़ावा दिया। कहते है पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को राष्ट्रीय स्वरूप दिया। इससे पूर्व गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा। बल्कि आजादी की लड़ाई, तात्कालीन समाज में व्याप्त छुआछूत दूर करने और जाति, वर्ग,अमीर, गरीब के भेद से ऊपर उठकर समाज को एक रुपता प्रदान करने के लिए इससे बढ़कर उसे अंग्रेजो के खिलाफ एक आंदोलन का स्वरूप दिया। बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशउत्सव का जो सार्वजनिक पौधारोपण किया वह समय के साथ बढ़ता चला गया। अंग्रेजो के विरुद्ध आजादी की लड़ाई में गणेश उत्सव से निर्मित सामाजिक और राष्ट्रीय एकता हथियार के रूप में सामने आने लगी। तिलक ने गणेश उत्सव को सांस्कृतिक एवं सामाजिक समरसता का रूप दिया। उसके बाद महाराष्ट्र से यह उत्सव सम्पूर्ण भारत और दुनियां में मनाया जाने लगा। इस दस दिवसीय उत्सव का उल्लास पुणे और मुंबई में बड़े रूप में देखने को मिलता है। यहां विशाल गणेश पांडालों में झांकियां सजाई जाती है। देश के अन्य राज्यों में भी गणेश उत्सव परंपरागत उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। घरों, संस्थाओं, गली मोहल्लों में गणेश जी प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है। प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। बच्चो से जुड़ी प्रतियोगिताएं, खेलकूद, नाच, गाना, बजाना, सभी गली मोहल्लों, कालोनियों के लोगो को आपस में जोड़ देते है। गणेश उत्सव के दौरान बने रिश्ते समाज को आपस में जोड़ने का काम करते है। सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता की स्थापना में सहायक भूमिका निभाते हैं। पुणे के चर्चित गणेश पांडालों में जहां कस्बा गणपति, तांबड़ी जोगेश्वरी, गुरुजी तालीम, तुलसीबाग, केसरीवाड़ा दगडू सेठ गणेश पांडाल शामिल है तो देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में लालबागचा राजा, अंधेरीचाराजा, गणेश गली मुंबईचा राजा, खेतवाड़ी चा राजा, जीएसबी सेवा मंडल और गिरिगांव चा राजा गणेश पांडाल लोकप्रिय है। महाराष्ट्र से सटा एमपी भी अब गणेश पांडालों से सुसज्जित होने लगा है। यहां अनंत चतुर्दशी पर झिलमिलाती झांकियों का कारवा बरसों से निकल रहा है। एमपी के इंदौर में विभिन्न मिलो की झांकियां श्रमिको द्वारा बनाई जाती थी। समय के साथ नवीन गणेश मंडलों द्वारा झांकियां निकाली जाती हैं। दस दिन विशाल पांडाल में झांकियां सकती है, प्रसाद और भंडारों का दौर चलता है। गणेश उत्सव की इस कड़ी में एमपी की सीमा पर स्थित महाराष्ट्र से सटे अपने शहर सेंधवा का भी नाम शामिल करना चाहूंगा। जहां गणेश उत्सव की परंपरा बरसो से जारी है। दस दिवसीय गणेश उत्सव शहर के विभिन्न चौक चौराहों और कालोनियों में उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यहां अनेकों सामाजिक संगठन अनंत चतुर्दशी के चल समारोह में भागीदारी करते हुए झांकियों का निर्माण करते थै। इनमे महाराष्ट्र समाज सेवा संगठन, हिंदू समाज सेवा संगठन, दिनेश गंज एकता संगठन, जय भवानी एकता संगठन, पालीवाल समाज एकता संगठन, जय हिंद एकता संगठन, महाराज गली एकता संगठन आदि प्रमुख है। इन संगठनों में से कुछ अभी भी झांकियों का निर्माण करते है, कुछ नए संगठनों द्वारा झांकियां निकाली जाती है। दिनेशगंज एकता संगठन दस दिवसीय गणेश पंडाल का निर्माण करता है। यह क्रम अब भी जारी है। यह पांडाल निमाड़ में सबसे प्रसिद्ध पंडांलो में शुमार है। गणेश उत्सव सांस्कृतिक रूप से भारतीय जनमानस में एकता स्थापित करने का प्रमुख सांस्कृतिक उत्सव है। बाल गंगाधर तिलक ने जिस सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता के स्थापन के लिए सार्वजनिक गणेश उत्सव मनाए जाने की प्रक्रिया का प्रारंभ किया था। इस उत्सव ने अंग्रेजों से आजादी के दौरान तो भारत को एक सूत्र में बांधने का काम किया था। आजाद भारत में भी गणेश उत्सव सामाजिक समरसता का प्रतीक बना हुआ है।