गणेश हैं विघ्नहर्ता-मंगलकर्ता एवं जीवंत राष्ट्रीयता के प्रतीक

Ganesha is the destroyer of obstacles and the symbol of auspiciousness and vibrant nationalism

ललित गर्ग

भारतीय संस्कृति और धर्मजगत में गणेशजी का स्थान अद्वितीय है। वे विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता, मंगलकर्ता और उन्नत राष्ट्र-निर्माता हैं। वे न केवल भारतीय संस्कृति एवं जीवनशैली के कण-कण में व्याप्त है बल्कि विदेशों में भी घर-कारों-कार्यालयों एवं उत्पाद केन्द्रों में विद्यमान हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत उनके पूजन के बिना अधूरी मानी जाती है। उनके स्वरूप में ही गहन प्रतीकात्मकता निहित है, हाथी का विशाल मस्तक विवेक और दूरदर्शिता का प्रतीक है, छोटा मुख संयमित वाणी का द्योतक है, बड़े कान अधिक सुनने और कम बोलने की शिक्षा देते हैं, छोटा नेत्र गहराई से देखने की प्रेरणा देता है और विशाल उदर सहिष्णुता व समावेशिता का बोध कराता है। मनुष्य के दैनिक कार्यों में सफलता, सुख-समृद्धि की कामना, बुद्धि एवं ज्ञान के विकास एवं किसी भी मंगल कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न करने हेतु गणेशजी को ही सर्वप्रथम पूजा जाता है, याद किया जाता है। प्रथम देव होने के साथ-साथ उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है, लोकनायक का चरित्र हैं। गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं, ऐसे सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक लोकप्रियता वाले देव का जन्मोत्सव भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को सम्पूर्ण दुनिया में उमंग एवं हर्षोल्लास से मनाया जाता है। गणेशोत्सव हिन्दुओं का एक उत्सव है।

भारतीय धर्म-दर्शन में गणेश जी ‘आरंभ के देवता’ हैं। वैदिक परंपरा से लेकर पुराणों और लोककथाओं तक, वे हर युग में ‘मार्गदर्शक’ बने रहे हैं। यही कारण है कि उन्हें ‘सर्वाेपास्य’ देवता कहा गया, सभी पंथों, संप्रदायों और वर्गों के लोग उनके पूजन में समान रूप से भाग लेते हैं। गणेशजी को प्रथम लिपिकार माना जाता है उन्होंने ही देवताओं की प्रार्थना पर वेद व्यासजी द्वारा रचित महाभारत को लिपिबद्ध किया था। जैन एवं बौद्ध धर्मों में भी गणेश पूजा का विधान है। अनंतकाल से अनेक नामों से गणेश दुख, भय, चिन्ता इत्यादि विघ्न के हरणकर्ता के रूप में पूजित होकर मानवों का संताप हरते रहे हैं। गणेश जी का पूजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय एकता का माध्यम भी है। स्वतंत्रता संग्राम के दौर में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप दिया। इससे गणेश चतुर्थी केवल पारिवारिक पर्व न रहकर जनजागरण और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बन गई। तिलक ने इसे सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय चेतना के मंच के रूप में स्थापित किया, जिसने भारत को स्वतंत्रता संग्राम के लिए एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वर्तमान काल में स्वतंत्रता की रक्षा, राष्ट्रीय चेतना, भावनात्मक एकता और अखंडता की रक्षा के लिए गणेशजी की पूजा और गणेश चतुर्थी के पर्व का उत्साहपूर्वक मनाने का अपना विशेष महत्व है। आज के समय में जब समाज विभिन्न मत-मतांतरों, भाषाओं और संस्कृतियों में बंटा दिखाई देता है, तब गणेशजी पुनः राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बनकर सामने आते हैं। उनका स्वरूप हमें विविधता में एकता, सहिष्णुता, धैर्य और विवेकपूर्ण निर्णय की प्रेरणा देता है। गणेश जी हमें बताते हैं कि बुद्धि और करुणा का समन्वय ही प्रगति का मार्ग है। आज जब विश्व हिंसा, कट्टरता और असहिष्णुता से जूझ रहा है, तब गणेश चतुर्थी का पर्व हमें समन्वय और सहयोग का संदेश देता है। वे केवल धार्मिक आस्था के देवता ही नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक और राष्ट्रीय एकता के जीवंत प्रतीक हैं।

हिन्दुओं में गणेशजी के जन्म के विषय में अलग-अलग कथाएँ प्रचलित हैं। वराह पुराण के अनुसार स्वयं शिव ने पंच तत्त्वों को मिला कर गणेश का निर्माण बहुत तन्मयता से किया। जिससे वे अत्यंत सुन्दर और आकर्षक बने तो देवताओं में खलबली मच गयी, स्थिति को भांप कर शिव ने गणेश के पेट का आकार बढ़ा दिया और सिर को गजानन की आकृति का कर दिया ताकि उनके सौन्दर्य और आकर्षण को कम किया जा सके। शिव पुराण के अनुसार एक बार पार्वती ने अपने उबटन के मैल से एक पुतला बनाया और उसमें जीवन डाल दिया। इसके उपरांत उन्होंने इस जीवधारी पुतले को द्वार पर प्रहरी के रूप में बैठा दिया और उसे आदेश दिया कि वह किसी भी व्यक्ति को अंदर न आने दे। इसके बाद वे स्नान करने लग गई। संयोगवश कुछ ही समय बाद शिव उधर आ निकले। उनसे सर्वथा अपरिचित गणेश ने शिव को भी अंदर जाने से रोक दिया। इस पर शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का मस्तक काट दिया। पार्वती ने यह देखा तो वे बहुत दुखी हुईं। तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेश के धड़ से लगाकर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। तभी से गणेश, गजानन कहलाए। लेकिन बालक की आकृति से पार्वती बहुत दुखी हुई तो सभी देवताओं ने उन्हें आशीर्वाद और अतुलनीय उपहार भेंट किए, उन्हें प्रथम देव के रूप में सभी अधिकार प्रदत्त किये। इंद्र ने अंकुश, वरुण ने पाश, ब्रह्मा ने अमरत्व, लक्ष्मी ने ऋद्धि-सिद्धि और सरस्वती ने समस्त विद्याएँ प्रदान कर उन्हें देवताओं में सर्वोपरि बना दिया।

ऋद्धि-सिद्धि गणेशजी की पत्नियाँ हैं। वे प्रजापति विश्वकर्ता की पुत्रियां हैं। गणेश की पूजा यदि विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख-शांति-समृद्धि और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है। सिद्धि से ‘क्षेम’ और ऋद्धि से ‘लाभ’ नाम के शोभा सम्पन्न दो पुत्र हुए। जहां भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं तो उनकी पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि यशस्वी, वैभवशाली व प्रतिष्ठित बनाने वाली होती है। वहीं शुभ-लाभ हर सुख-सौभाग्य देने के साथ उसे स्थायी और सुरक्षित रखते हैं। जन-जन के कल्याण, धर्म के सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने एवं सुख-समृद्धि-निर्विघ्न शासन व्यवस्था स्थापित करने के कारण मानव-जाति सदा उनकी ऋणी रहेगी। आज के शासनकर्ताओं को गणेश के पदचिन्हों पर चलने की जरूरत है।

गणेशजी की सम्पूर्ण शारीरिक रचना के पीछे भगवान शिव की व्यापक सोच रही है। एक कुशल, न्यायप्रिय एवं सशक्त शासक एवं देव के समस्त गुण उनमें समाहित किये गये हैं। गणेशजी का गज मस्तक हैं अर्थात वह बुद्धि के देवता हैं। वे विवेकशील हैं। उनकी स्मरण शक्ति अत्यन्त कुशाग्र हैं। हाथी की भ्रांति उनकी प्रवृत्ति प्रेरणा का उद्गम स्थान धीर, गंभीर, शांत और स्थिर चेतना में है। हाथी की आंखें अपेक्षाकृत बहुत छोटी होती हैं और उन आँखों के भावों को समझ पाना बहुत कठिन होता है। दरअसल गणेश तत्ववेत्ता के आदर्श रूप हैं। गण के नेता में गुरुता और गंभीरता होनी चाहिए। उनके स्थूल शरीर में वह गुरुता निहित है। उनका विशाल शरीर सदैव सतर्क रहने तथा सभी परिस्थितियों एवं कठिनाइयों का सामना करने के लिए तत्पर रहने की भी प्रेरणा देता है। उनका लंबोदर दूसरों की बातों की गोपनीयता, बुराइयों, कमजोरियों को स्वयं में समाविष्ट कर लेने की शिक्षा देता है तथा सभी प्रकार की निंदा, आलोचना को अपने उदर में रख कर अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है। छोटा मुख कम, तर्कपूर्ण तथा मृदुभाषी होने का द्योतक है।

गणेश का व्यक्तित्व रहस्यमय हैं, जिसे पढ़ पाना एवं समझ पाना हर किसी के लिये संभव नहीं है। शासक भी वही सफल होता है जिसके मनोभावों को पढ़ा और समझा न जा सके। इस प्रकार अच्छा शासक वही होता है जो दूसरों के मन को तो अच्छी तरह से पढ़ ले परन्तु उसके मन को कोई न समझ सके। दरअसल वे शौर्य, साहस तथा नेतृत्व के भी प्रतीक हैं। उनके हेरांब रूप में युद्धप्रियता का, विनायक रूप में यक्षों जैसी विकरालता का और विघ्नेश्वर रूप में लोकरंजक एवं परोपकारी स्वरूप का दर्शन होता है। गण का अर्थ है समूह। गणेश समूह के स्वामी हैं इसीलिए उन्हें गणाध्यक्ष, लोकनायक, गणपति आदि नामों से पुकारा जाता है। इसलिए गणेश चतुर्थी मनाना केवल धार्मिक परंपरा का निर्वाह नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने, सामाजिक समरसता को मजबूत करने और राष्ट्रीय एकता को पुष्ट करने का संकल्प है।